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मभ्युपगन्तव्यम् ।
अत एव 'उत्पाद-व्यय-ध्रौव्ययुक्तं सत्' (तत्त्वार्थ. ५-२९) इति सल्लक्षणम् अन्यस्य तल्लक्षणत्वानुपपत्तेः । न तावत् सत्तायोगः सत्त्वम्, सामान्यादिनाऽव्यापकत्वात् निषिद्धत्वाच्च सत्तायास्तद्योगस्य वेति । नाप्यर्थक्रियालक्षणं सत्त्वम् नश्वरैकान्ते तस्याऽसम्भवात् तस्य क्वचिदप्यभावात् । उत्पाद- स्थितिस्वभावरहितस्य नश्वरत्वे 5 खपुष्पादेरेव तत् स्यात् न घट - सुखादेः, क्षणस्थितिरेव जन्म विनाशश्च यद्यभ्युपगम्येत कथमनेकान्तसिद्धिर्न स्यात् ? न च क्षणात् पूर्वमस्थितौ भावानां किञ्चित् प्रमाणमस्तीति प्रतिपादितम् । न चाऽवस्थितावपि न प्रमाणमिति वक्तव्यम्, प्रत्यक्षस्य तत्र प्रमाणत्वात् । न च सदृशापरापरोत्पत्तिविप्रलम्भादनवधारितक्षणक्षयस्यैकत्वप्रतिपत्तिर्भ्रान्तेति वक्तव्यम्, निरन्चयविनाशप्रसाधकप्रमाणाभावात् । न चाऽक्षणिके क्रम-यौगपद्या - भ्यामर्थक्रियाविरोधात्ततो निवर्त्तमानं सत्त्वं निरन्वयविनश्वरस्वभावमिति सत् क्षणिकमेवेति प्रमाणम्, क्षणिकेपि 10 ग्रन्थ में निषेध किया जायेगा, तब यही विकल्प बचा कि वस्तु को कथंचित् नित्यानित्य माना जाय जिस में निर्बाध प्रमाण विषयता अक्षुण्ण है ।
[ सत्त्व का श्रेष्ठ लक्षण उत्पादादित्रय ]
एकान्ततः भेद या अभेदादि दुर्घट है इसी लिये जो तत्त्वार्थाधिगम सूत्र में श्वेताम्बरशिरोमणिआचार्य उमास्वातिजी ने ‘उत्पाद - व्यय - ध्रौव्य से युक्त सत्' ऐसा सत् का लक्षण निर्देश किया है, उत्पादादि को 15 छोड़ कर और किसी ( सत्ता सामान्यादि) में सत् का लक्षण घट नहीं सकता । सत्तासामान्य के योग से सत्त्व नहीं घट सकता क्योंकि इस वह लक्षण की सामान्यादि में व्याप्ति नहीं है, एकान्त सामान्य का निषेध हो चुका है और एकान्त सामान्य का सत् आदि में योग भी दुर्घट है । अर्थक्रिया को भी सत् का लक्षण नहीं कह सकते क्योंकि एकान्त नश्वर (क्षणिक) पक्ष में अर्थक्रिया सम्भवित नहीं है यह पहले कहा जा चुका है। कहीं भी तथाविध सत्ता का अस्तित्व नहीं है । उत्पत्ति-स्थितिविहीन 20 नश्वरता तो सिर्फ गगनपुष्पादि में ही कदाचित् हो सकती है, सद्भूत घट - सुखादि में नहीं । यदि क्षणिक स्थिति को ही आप उत्पत्ति - विनाशात्मक मान लेंगे ( जिस से घट - सुखादि में वह घट सके) तो अनेकान्तवादसिद्धि अनायास हो जायेगी । तथा, यह पहले ही कह दिया है कि क्षण के पूर्वकाल में किसी वस्तु की स्थिति नहीं होती इस बात में कोई प्रमाण नहीं । ' स्थिति होने में भी क्या प्रमाण है कोई नहीं' ऐसा मत कहना क्योंकि पहले प्रत्यक्ष प्रमाण का सबूत दिया जा चुका है । सदृश अपरापरक्षणप्रेरित एकत्व भ्रान्ति का 'उत्तरोत्तर नये सदृश घटादि क्षणों की क्षणभंग का निश्चय न होने से एकत्व की
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निरसन ]
ऐसा नहीं कहना कि है उस से छलित दृष्टा
उत्पत्ति की श्रेणि चलती रहती भ्रान्ति हो जाती है' निषेध
को
का कारण :- प्रतिक्षण निरन्वयनाश को सिद्ध करनेवाला कोई प्रमाण नहीं है । यदि ऐसा तर्क-प्रमाण दिखाया जाय कि अक्षणिक पदार्थ में क्रमशः अथवा युगपद् अर्थक्रिया को मानने में खुब विरोध 30 आता है, अतः अक्षणिक पदार्थ से पराङ्मुख बने हुए सत्त्व को आखिर निरन्वय क्षणभंग स्वभाववाला ही स्वीकारना पडेगा, अतः जो सत् है वह क्षणिक ही होता है लो यह प्रमाण ।' तो यह बेकार है, सच तो यह है कि क्षणिक पदार्थ में भी तथोक्त प्रकार से अर्थक्रिया का विरोध प्रसक्त
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सन्मतितर्कप्रकरण - काण्ड - १
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