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खण्ड - ३, गाथा - १७
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करुणौदासीन्याद्यनेकाकारविवर्त्तात्मकैकचेतनास्वरूपम् तदात्मकहर्षाद्यनेकविकारानेकात्मकं च स्वसंवेदनाध्यक्षप्रतीतम् तस्य भेदाभेदैकान्तरूपताभ्युपगमे दृष्टाऽदृष्टविषयसुख-दुःखसाधनस्वीकार - त्यागार्थप्रवृत्ति - निवृत्तिस्वरूपसकलव्यवहारोच्छेदप्रसक्तिरिति प्रतिपादयितुमाह
(मूलम् ) ण य दव्वट्ठियपक्खे संसारो णेव पज्जवणयस्स ।
सासय-वियत्तिवायी जम्हा उच्छेअवाईआ । । १७ ।।
द्रव्यार्थिक-पर्यायार्थिकनयद्वयाभिमते वस्तुनि न संसारः सम्भवति, शाश्वतव्यक्तिप्रतिक्षणान्यत्वैकान्तात्मकचैतन्यग्राहकविषयीकृतत्वात् पावकज्ञानविषयीकृते उदकवत् । तथाहि - संसारः संसृतिः सा चैकान्तनित्यस्य पूर्वावस्थाऽपरित्यागे सति न सम्भवति तत्परित्यागेनैव गते : भावान्तरापत्तेर्वा - संसृतेः सम्भवात् । नाप्युच्छेदे = उत्पत्त्यनन्तरनिरन्वयध्वंसलक्षणे संसृतिः सम्भवति, गते : भावान्तरापत्तेर्वा कथञ्चिद् अन्वयि - रूपमन्तरेणाऽयोगात्। अथैकस्य पूर्वापरशरीराभ्यां वियोग-योगी संसारः, असावपि सदाऽविकारिणि न 10 से, इतना मत समझना, अरे ! आन्तरिक हर्ष-शोक-भय-करुणा- औदासीन्य इत्यादि विविधाकार विवर्त्तात्मक एक-चेतना के परिणामस्वरूप पदार्थ भी (सा. वि.) उभयात्मक है । प्रत्यक्ष से यह सिद्ध है क्योंकि एकचेतनामय हर्षादि अनेक विकाररूप से अनेकात्मक आन्तर वस्तु स्वप्रकाश संवेदनात्मक प्रत्यक्ष से अनुभूत होता है। यदि इन आन्तर पदार्थों को एकान्ततः अभिन्न या एकान्त भिन्न स्वरूप मानेंगे तो सकल व्यवहार के उच्छेद की आपत्ति होगी दृष्ट ( = इहलौकिक ) अदृष्ट (= पारलोकिक) विषयों से प्रेरित 15 सुख या दुःख के साधनों का कोई स्वीकार करता है उन के लिये प्रवृत्ति करता है, तो कोई त्याग करता है उन के लिये निवृत्ति करता है। ये सब व्यवहार लुप्त हो जायेंगे। इस वृत्तान्त का निरूपण गाथा १७ में
गाथार्थ :- न तो द्रव्यार्थिक मत संसार (घट सकता है), न पर्यायार्थिकमत में, क्योंकि शाश्वतवादी ( द्रव्या० ) या ( प्रतिक्षण भिन्न) व्यक्तिवादी ( व्यवहार के) उच्छेदवादी हैं ।।१७।।
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[ एकान्तवाद में संसार की अनुपपत्ति ]
व्याख्यार्थ :- द्रव्यार्थिक या पर्यायार्थिक नय द्वारा स्वीकृत (नित्य अथवा एकान्त अनित्य ) वस्तु होने पर संसार ( जन्मादि व्यवहार) संगत नहीं हो सकते, जैसे अग्निज्ञानविषयीभूत वस्तु में जल की संगति नहीं होती । कैसे यह देखिये- संसार यानी संसृति (संसरण) मतलब परिवर्त्तनशील । एकान्त नित्य वस्तु पूर्वावस्था छोडे बिना ( परिवर्त्तनरूप) संसार कैसे घटेगा ? पूर्वावस्था छोडेगा तभी अन्य 25 गति अथवा अन्य भावप्राप्ति रूप संसार घटेगा । पर्यायनयसंमत एकान्त क्षणिकतापक्ष यानी उत्पत्ति के बाद तुरंत निरन्वयविनाशपक्ष में संसार सम्भव नहीं, क्योंकि किसी एक स्थायि कथंचिद् अन्वय रूप के बिना गत्यन्तर या भावान्तर की प्राप्तिरूप संसार कैसे घटेगा ?
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शंका :- संसार है पूर्वशरीर त्याग उत्तरशरीर संयोग, तो यह एकान्त नित्य में क्यों नहीं घटेगा ? उत्तर :- अत्यन्त अविकारी वस्तु मानने पर यह शरीरपरिवर्त्तन सम्भव नहीं है, क्योंकि एकान्त नित्य 30 आत्मा के साथ पूर्वोत्तर शरीर का त्याग - ग्रहण घट नहीं सकेगा। पर्यायनय के निरन्वयक्षणध्वंसवाद
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