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सन्मतितर्कप्रकरण-काण्ड-१ तद्विरोधसिद्धिरनुपलब्धेर्व्यतिरेकनिश्चयात् तद्विपक्षे प्रत्यक्षवृत्तेरिति व्यक्तमितरेतराश्रयत्वम् ??]
क्षणिकत्वेऽपि च भावानां यथातत्त्वमुपलम्भनियमाभावाद् ग्राह्य-ग्राहकाकारसंवेदनवद् अयथातत्त्वोपलम्भसंभवाद् न क्षणिकत्वमध्यक्षगोचर इत्यतोऽप्यनेकान्तः सिद्धिमासादयति । न च सदृशापरापरोत्पत्तिरनिश्चयहेतुः,
भेदैकान्ते तस्या अप्ययोगात्। न हि तत्र सादृश्यं भावानां व्यतिरिक्तमव्यतिरिक्तं वा सम्भवति। न 5 चाऽविद्यमानमनुपलम्यमानं वा तद् विभ्रमहेतुः, अतिप्रसङ्गात् । न च विशेषाणां स्थिति-भ्रान्तिजननशक्तिरेव
सादृश्यम, क्षणिकावेदकप्रमाणान्तराभावतः स्थितिप्रतिपत्तेन्त्यसिद्धेः। न चान्यादृग्भूतं वस्तु अबाधितप्रतिपत्तिजन्मनो हेतुरभ्युपगन्तव्यम् अभ्रान्तप्रतिपत्तेर्वस्त्वव्यवस्थापकत्वेन प्रतिनियतव्यवहारोच्छेदप्रसक्तेः । अत एव उपलब्धमपि क्षणिकत्वं 'विषमज्ञ इव न निश्चिनोती'[१८५-५]त्युदाहरणमप्यसिद्धम्, यथावस्तूपलम्भनियमाभावात्।
यदपि 'ये यभावं प्रत्यनपेक्षाः ते तद्भावनियताः यथा अन्त्या कारणसामग्री स्वकार्योत्पादने, विनाशं क्षणिक में अर्थक्रिया की उपलब्धि होने पर, और क्षणिक में अर्थक्रिया की उपलब्धि की सिद्धि, अक्षणिक में अर्थक्रियाविरोध सिद्ध होने पर होगी - तो यहाँ अन्योन्याश्रय स्पष्ट ही है।
[ भाव क्षणिक मान लेने पर भी यथार्थोपलब्धिनियम नहीं ] कदाचित् मान लिया जाय कि भाव क्षणिक होते हैं, किन्तु तथापि क्षणिकत्वरूप से ही उस का 15 उपलम्भ हो ऐसा नियम नहीं है; जैसे गाह्य-ग्राहक संवेदन ग्राह्य के प्रति अयथार्थ उपलब्धि के सम्भव
से युक्त होता है। अतः यदि क्षणिकत्व भी प्रत्यक्षगोचर नहीं मानेंगे तो अनेकान्त ही सिद्धिसदनारूढ होगा। यदि कहें कि - दर्शन में क्षणिकत्व गृहीत होता है किन्तु सदृश नये नये भाव की निरंतर उत्पत्ति के कारण उस का निश्चय नहीं होता - तो यह भी भाव एवं क्षणिकत्वादि का एकान्त भेद
मानने पर नहीं घट सकता। तथा उन नये नये भावों में क्षणिकवादानुसार भाव से अभिन्न या भिन्न 20 सादृश्य का एकान्त भेदवाद में सम्भव नहीं है। जब सादृश्य कोई चीज नहीं है अविद्यमान है अनुपलभ्यमान
है तब वह किसी अभेदादि विभ्रम का हेतु नहीं बन सकता, क्योंकि अविद्यमान-अनुपलभ्यमान शशसींगादि में भी विभ्रमहेतुता मानने का अनिष्टप्रसंग होगा। यदि कहें कि - भिन्न भिन्न विशेषों (व्यक्तियों)
में जो स्थैर्य की भ्रान्ति को निपजा सके ऐसी शक्ति है वही सादृश्य है - तो यह भी निषेधार्ह __ है क्योंकि जब तक क्षणिकत्वसाधक अन्य कोई प्रमाण सिद्ध नहीं है तब तक स्थिति के भान को 25 ‘भ्रान्ति' मानना प्रमाणिक नहीं है। वस्तु यदि यथादृष्टस्वरूप नहीं है तो वह निर्बाधबोधोत्पत्ति के
कारणरूप से मान्य नहीं हो सकती। यदि अभ्रान्त प्रतीति को वस्तु-व्यवस्थाकारक नहीं स्वीकारेंगे तो 'यह अश्व यह बैल' इस प्रकार नियतरूप से व्यवहार चलता है उस का लोप प्रसक्त होगा। इसी लिये - यह जो दृष्टान्त (क्षणिकत्व दर्शनविषय बनने पर भी उस का निश्चय नहीं होता - इस
कथन की पुष्टि में विष का दृष्टान्त) दिया जाता है कि 'अज्ञानी पुरुष जहर को देखता है किन्तु 30 उसका जहररूप से निश्चय नहीं कर पाता - यह दृष्टान्त भी निरर्थक है क्योंकि 'जिन का निश्चय नहीं होता ऐसी सकल वस्तु का उपलम्भ होता ही है' ऐसा कोई नियम प्रसिद्ध नहीं है।
[अनपेक्षत्व की तद्भावनियतत्व से व्याप्ति परिणामसाधक ] बहुत पहले निरन्वयनाशसिद्धि के लिये यह जो कहा था (२०-१७) कि जो जिस भाव के प्रति
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