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खण्ड-३, गाथा-७
'अर्थाभिधानप्रत्ययास्तुल्यनामधेया: ' [ ] इति अर्थ- प्रत्यययोः स्वरूपमभिधायाभिधानस्य द्रव्यास्तिक-पर्यायास्तिकस्वरूपस्य तदभिधायकस्य वा प्रतिपादनार्थमाह- पज्जवनिस्सामण्णं इत्यादि । पर्यायान्निष्क्रान्तम् - तद्विकलम् सामान्यं सङ्ग्रहस्वरूपं यस्मिन् वचने तत् पर्यायनिःसामान्यं वचनम् । किं पुनस्तत् ? इत्याह 'अस्ति' इति, तच्च द्रव्यार्थिकस्य स्वरूपम् प्रतिपादकं वा ।
यद्वा पर्यायः ऋजुसूत्रनयविषयाद् अन्यो द्रव्यत्वादिविशेषः, स एव च निश्चितं सामान्यं यस्मिंस्तत् 5 पर्यायनिःसामान्यं वचनम् द्रव्यत्वादिसामान्यविशेषाभिधायीति यावत् । तच्चाशुद्धद्रव्यार्थिकसम्बन्धि तत्प्रतिपादकत्वेन तत्स्वरूपत्वेन वा । अवशेषो वचनविधिः वर्णपद्धतिः सप्रतिपक्षः अस्य वचनस्य पर्यायार्थिकनयरूपः तत्प्रतिपादको वा पर्यायसेवनात्; अन्यथा कथमवशेषवचनविधिः स्यात् यदि विशेषं नाश्रयेत् ।।७।।
अथवा
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[ सातवीं गाथा के वैकल्पिक अवयवार्थ ]
हैं तीन में से प्रथम - तृतीय की ६ गाथा तक कहा जा अभिधान, उस का प्रतिपादन, गाथा से किया जा रहा है पर्याय ( = विशेष ) रहित है
अन्यविध अवतरणिका :- दर्शनक्षेत्र यह सुविदित तथ्य है कि अर्थ, उस का वाचक और 10 उस की प्रतीति, इन तीनों के लिये समान नामकरण होता है । उदा० घटरूप अर्थ, उस का वाचक एवं उस के ज्ञान तीनों के लिये 'घट' शब्दप्रयोग होता है । ( दूसरा नाम निक्षेप हैं और तीसरा है आगमतः भावनिक्षेप । और पहेला ज्ञशरीरभव्यशरीर व्यतिरिक्त द्रव्य निक्षेप है ।) व्याख्याकार कहते दो अर्थ एवं प्रतीति का स्वरूप पहले काण्ड में और दूसरे काण्ड चुका है। अतः अब अवसरप्राप्त है द्रव्यास्तिक-पर्यायास्तिक स्वरूप जो 15 अथवा अर्थ / प्रतीति का जो वाचक (नाम) है उस का प्रतिपादन सातवीं पज्जवनिस्सामण्णं इत्यादि पदों का अर्थ :- पर्यायों से निष्क्रान्त यानी सामान्य = संग्रहरूप जिस वचन में वह वचन पर्यायनिःसामान्य वचन है। वह कौन सा वचन है ? उत्तर :- 'अस्ति' ऐसा । यह वचन द्रव्यार्थिक का प्रतिपादक = सूचक अथवा द्रव्यार्थिक स्वरूप है ।
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और एक प्रकार से अवयवार्थ :- 'पर्याय' का मतलब है द्रव्यत्वादिरूप (अवान्तर ) विशेष जो कि यहाँ ऋजुसूत्रनय का विषय नहीं समझना । (ऋजुसूत्र नय शुद्ध विशेषवादी है द्रव्यत्व उस का विषय नहीं।) यही द्रव्यत्वादिरूप विशेष जिस वचन में सामान्यरूप से निश्चित है वैसा वचन है पर्यायनिःसामान्य वचन । (यहाँ 'नि' उपसर्ग लेकर 'निश्चित' अर्थ किया है, प्राकृतशैली से 'स्स' द्विरुक्ति समझना ।) मतलब कि द्रव्यत्वादि सामान्यविशेष का प्रतिपादक वचन | यह वचन ( किसी रूप से विशेष - 25 निरूपक होने के कारण ) अशुद्ध द्रव्यार्थिक सम्बन्धि जानना क्योंकि वह अशुद्धद्रव्यार्थिकरूप है अथवा उस का प्रदर्शक है।
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अवशेष वचनविधि का और एक अर्थ :- अवशेष यानी द्रव्यार्थिक स्पर्शरहित जो वचनविधि यानी वर्णानुपूर्वी है वह सप्रतिपक्ष (यानी द्रव्यार्थिक से विपरीत ) है यानी द्रव्यार्थिकवचन के प्रतिपक्षरूप पर्यायार्थिकनयरूप अथवा उस का प्रतिपादक है, पर्याय सेवन ( पर्याय का आश्रयण) करने से । यदि 30 यह पर्याय = विशेष का नाम नहीं जपेगा तो उसे अवशेष ( द्रव्यार्थिकभिन्न) वचनविधि कौन मानेगा ? ।। ७ ।।
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