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सन्मतितर्कप्रकरण-काण्ड-१ वर्तमानकालादितया भ्रान्तावभासनात् तत्र तद्विपरीता(?)ख्यातित्वमिदानीन्तनदेशाऽप्रतिभासमान(त्) तत्र जखादेः (?रजतादेः) पूर्वरूपताऽभावप्रसक्तेः। यतो यदेव तत्र संनिहितरूपमाभाति तदेव सदसत्तु(दस्तु) पूर्वदेशादित्वं न च भासमानं न चाभ्युपगमविषय: अन्यथा पीतादेव प्रतिभासमानस्य नीलादेः सत्त्वापत्तेः, सर्वस्य पू(?सर्वात्मकतापत्तेः।
न च सर्व सर्वे(?सर्वस्य) सर्वात्मकतापत्ते(त्तिरभ्युपगम्यते एव, प्रत्यक्षेण तथाऽप्रतिपत्तेः। न चानुमानमपि सर्वस्य सर्वात्मकतामवगमयति, प्रत्यक्ष()नवतारे तत्रानुमानस्यापा(?प्य)नव(तारा)त्। अनुमानं च सर्वात्मकत्वसाधकत्वे प्रवृत्तो(त्तौ) प्रतिनियतरूप(?)ग्राह्यवा(?ध्य)क्षमशेषं विपरीतख्यातितामनुभवेत् । न वाऽभेदग्राह्यनुमानमागमो वाऽवितथो (वितथो ?)व्यक्तं तु भेदावभासिनमस्तं (?न च तद्) वितथमित्यद्वैतापत्तिः अध्यक्षा(नु)मते भेदे अनुमानागमयोरभेदग्राहिणोः वैतथ्यापत्तेः, प्रत्यक्षतोऽवगतभेदे वस्तुन्यभेदग्राहिणोस्तयोरग्र(?न्य)थाग्रहणलक्षणस्य वैपरीत्यस्य भावात्। न चानुमाना(व?)गमबाधितत्वादभेदग्राह्यध्यक्षस्य चैतन्यं(?चाऽतत्त्व), तद्बाधितत्वेन तयोरेक(?व)चैतन्य(?चाऽतत्त्व)प्रसक्तेः । न च तत्त्वात् तस्य तदबाधकत्वप्रसक्तेः। न चानुमान(गिम)योरभेदप्रतिपादकत्वं तयोर्भेदप्रतिपादक(त्व)योः ततः प्रतिभासाऽविशेषात् । विपरीतख्यात्यभ्युपगमे सर्वासद्विपरीतख्यातिर्भवेत्। न च यदविसंवादि तन्न विपरीतख्यातिरिति वक्तव्यम्
अविसंवादित्वस्याऽसिद्धेरित्यसकृत् प्रतिपादनात् । 15 भासता है न स्वीकृत किया जाता है। एक वस्तु के भासने पर अन्य वस्तु को सत् मानेंगे तो भासमान
एक पीत से ही नीलादि की सत्ता मान लेनी पडेगी, फलतः पीतादि-नीलादि में भेद न रहने से भासमान सभी वस्तु में सर्वरूपता की आपत्ति होगी।
सभी में सर्वात्मकत्व की प्राप्ति का स्वीकार नहीं किया जा सकता, क्योंकि प्रत्यक्ष से ऐसा अवबोध नहीं होता। तथा, अनुमान भी सभी में सर्वात्मकता का बोधक नहीं है, प्रत्यक्ष अगृहीत वस्तु के 20 लिये अनुमान की पहुँच नहीं होती। यदि अनुमान वस्तु में सर्वात्मकता-साधन में सफल प्रवृत्ति करेगा,
तो सर्वरूपता के बदले प्रतिनियतरूपग्राहि सफल प्रत्यक्ष विपरीतख्यातिरूप बन जायेगा। तथा, कोई भी अनुमान या आगम अभेदग्राहक प्रसिद्ध नहीं है। उलटे, अविपरीत (= सत्य) आगम (अनुमान) तो व्यक्तरूप से भेदावभासी है। ‘अनुमान (या आगम) असत्य हो तो अद्वैतवाद प्राप्त हो जायेगा'
ऐसा नहीं कह सकते, क्योंकि प्रत्यक्ष से अनुज्ञात भेद के रहते हुए अभेदग्राहि अनुमान और आगम 25 में मिथ्यात्व की आपत्ति होगी। कारण :- भेद जब प्रत्यक्षसिद्ध है तब, वस्तुमात्र में अभेदग्राहि अनुमान
गम में अन्यथाग्रहणरूप वैपरीत्य का भाव स्पष्ट है। यदि कहें कि - "(अ?)भेदग्राहि प्रत्यक्ष अनुमान-आगम दोनों से अबाधित होने से अतत्त्व हो गया' - तो यह मिथ्या है, क्योंकि प्रत्यक्षबाधित होने से अनुमान और आगम में ही अतत्त्व प्रसक्त होगा। यदि अनुमान और आगम भी तत्त्वयुक्त (भेदग्राहि)
होंगे तो प्रत्यक्षबाधक नहीं होंगे। वस्तुतः अनुमान और आगम में अभेदप्रतिपादकत्व है नहीं। यदि 30 वे दोनों भेदप्रतिपादक होने पर भी अभेदप्रतिपादक ही माने जाय तो नील-पीतादिग्राहि किसी भी प्रतिभास
में फर्क ही नहीं रहेगा। यदि आप भेदग्राहि प्रत्यक्ष को विपरीतख्याति कहेंगे तो सर्व प्रत्यक्ष असत् ___ हो जाने से विपरीतख्याति प्रसक्त होगी। 'नहीं, जो अविसंवादी है उस में विपरीतख्याति नहीं होगी।' -
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