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सन्मतितर्कप्रकरण-काण्ड - १
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न किञ्चिद्दूषणमुत्पश्यामः । न वाऽभावस्य भवने विरोध एव दूषणम् स्वरूपेऽबाधितप्रत्ययविषये विरोधाऽसिद्धेः, अन्यथा सर्ववस्तुषु तत्सिद्धिप्रसक्तिः । तन्न मुद्गरादिव्यापारात् प्राग् घटादेस्तद्व्यापारानन्तरमेव तस्या उपलब्धेः पदार्थात्मभूता प्रच्युतिः । अत एव तस्मिन् 'गृहीतैव प्रमाणता' इति हेतोरसिद्धतेत्यपि न वाच्यम् । यतः किं घट एव प्रच्युतिः, उत कपाललक्षणं भावान्तरम्, आहोस्वित् तदपरं पदार्थान्तरमिति विकल्पाः । 5 १ तत्र यदि घटस्वरूपमेव प्रच्युतिः तर्ह्यपरं तत्राभिधानान्तरं विहितम् घटस्वरूपं त्वविचलितं प्रतीयते कथं न नित्यम् ? अथैकक्षणस्थायि घटस्वरूपं प्रच्युतिरिति न घटस्य नित्यता, नन्वेकक्षणस्थायितया घटस्वरूपं न प्रतीतिगोचर इति कथं तस्य प्रच्युतिः ? २ अथ कपालस्वरूपमेव घटप्रच्युतिः तथापि प्राक्कपालप्रादुर्भावात् घटस्यावस्थितेः कालान्तरस्थायितैव घटस्य भवेद्, न क्षणिकता । न च कपालरूपप्रच्युत्यभ्युपगमे मुद्गरादिव्यापारानन्तरमिव 'घटस्य ध्वंसः' इति पूर्ववदुपलब्ध्यादिप्रसङ्गः, यतो न मुद्गरादिना 10 तुल्यरूप से हैं, फिर भी घट में पटरूपता या पट में घटरूपता प्रसक्त नहीं होती, क्योंकि घटप्रतीतिविषयता होने से घट में घटरूपता, पटप्रतीतिविषयता होने से पट में पटरूपता ही होती है। मतलब पदार्थ की तद्रूपता भविताप्रयुक्त नहीं किन्तु तदाकारप्रतीतिविषयतामूलक होती है। इसी तरह भाव / अभाव में भी भावाकारप्रतीतिविषयता/अभावाकारप्रतीतिविषयता से प्रयुक्त भावरूपता / अभावरूपता होती है। इस के स्वीकार में कोई दूषण दिखता नहीं । यदि दूषण दिखाया जाय - अभाव और उस का भवन यही 15 तो विरोध है तो समझ लो कि अबाधितप्रतीतिविषयभूत भवनस्वरूप चाहे भाव का हो या अभाव
का कोई विरोधगन्ध नहीं है । अन्यथा निर्बाधप्रतीतिविषय भूत प्रत्येक पदार्थं में विरोध ही विरोध प्रसक्त होगा । निष्कर्ष, मुद्गरादिव्यापार के पहले घटादि की उपलब्धि होती है और मोगरप्रहार के बाद ही घटप्रच्युति का उपलम्भ होता है, अतः सिद्ध होता है कि प्रच्युति भावात्मक नहीं होती ( किन्तु अभावरूप होती है । यही कारण है कि आप को ऐसा बोलने का अवसर ही नहीं रहता कि 20 ' ध्वंस के प्रति मोगरप्रहार की हेतुता में प्रामाण्य गृहीत है इस प्रकार का हेतु असिद्ध है' (क्योंकि उपरोक्त कथन से हेतुसिद्धि निर्बाध है ।)
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यहाँ प्रच्युति के बारे में बौद्धमत के प्रति तीन प्रश्न -विकल्प हैं - १घट ही प्रच्युति है ? २या प्रच्युति कपालस्वरूप भावान्तररूप है ? ३या कपालभिन्न कोई पदार्थान्तर है ?
[ घटस्वरूप या कपालरूप प्रच्युति का समीक्षण ]
प्रथमपक्ष :- यदि घट का स्वरूप है प्रच्युति, तो यहाँ घटक्षण को नाशादिस्वरूप प्रच्युति से कुछ सम्बन्ध नहीं रहता, सिर्फ एक नूतन नामकरण घट का हुआ 'प्रच्युति' । घट स्वरूप तो नामान्तर करने पर भी तदवस्थ प्रतीत होता है क्यों उसे नित्य न माने ? यदि कहें कि 'घटस्वरूप प्रच्युति का मतलब नित्यता नहीं है किन्तु एकक्षणस्थायित्व' तो यह प्रश्न निरुत्तर रहेगा कि घटस्वरूप एकक्षणस्थायित्व रूप प्रच्युति दृष्टिगोचर क्यों नहीं होती ? प्रतीति के बिना प्रच्युति को घटस्वरूप 30 कैसे मानेंगे ? दूसरा पक्ष : यदि प्रच्युति कपालस्वरूप है, तो भी जब तक कपाल का प्रादुर्भाव नहीं होगा, घट तदवस्थ रहने से कालान्तरस्थिति ही घट की सिद्धि होगी, क्षणिकता नहीं । तथा - 'प्रच्युति ( = ध्वंस) ' को कपालरूप मानने पर मुद्गरप्रहार के बाद जब तक कपाल रहेंगे तब तक 'घट
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