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खण्ड-३, गाथा-६
२२३ युक्तिसंगतः। यदि ह्यतीतानागतवर्तमानकालभेदसङ्गतिमासादयेयुः कार्याणि तदा क्रमवन्ति भवेयुः। न च कार्यपरम्पराव्यतिरिक्तः कालः सौगतैरभ्युपगत इति भिन्नफलमात्रमेव । न च फलभेदमात्राद् हेतुभेदव्यवस्था कर्तुं शक्या, एकस्यापि प्रदीपादेरेकदाऽनेककार्यकरणात्।
अथ वैशेषिकादिपरिकल्पितः पदार्थव्यतिरिक्तः कालोऽभ्युपगम्यते, तथापि तस्यैकत्वाद् न तद्भेदनिमित्त कार्यभेदो युक्तिसंगतः। न चैककालानुषङ्गात् कार्याणि क्रमवन्ति भवन्ति योगपद्याभावप्रसक्तेः। 5 न कालस्यैकत्वेऽपि क्रमवद्वर्षातपादिसम्बन्धात् क्रमः, इतरेतराश्रयप्रसक्तेः। तथाहि- कालक्रमाद् वर्षादेः क्रमः तत्क्रमाच्च कालक्रमः इति कथं नेतरेतराश्रयत्वम् ? न च कालक्रमहेतुरपरः कालोऽभ्युपगमविषयः अनवस्थाप्रसक्तेः कालक्रमनिमित्तापरकालाभ्युपगमाऽनिष्ठितेः । न च कालः स्वरूपादेव क्रमवान् कार्याणामपि स्वरूपत एव क्रमवत्त्वप्रसक्तेः, एवं च कालपरिकल्पनावैयर्थ्यप्रसक्तिः। तन्न कालाभ्युपगमेऽपि कार्यक्रमो युक्त्या सङ्गच्छत इति कथं कार्यक्रमो हेतुभेदमवगमयति ? न च कार्यक्रमाभ्युपगमेऽपि हेतुरनित्यता- 10 मासादयतीत्युक्तम्। अथ क्रमेण कार्योदयेऽनेककर्तृत्वसङ्गतेरनित्यता, ननु कार्यक्रमदर्शनात् यदि नाम कारणस्य क्रमः, स्वभावभेदस्तु कथं सिध्यति ? होने से कालभेदमूलक अर्थक्रियाक्रम युक्तिसंगत नहीं है। बौद्ध मत में यदि कार्यकलाप अतीत-वर्तमानभाविकाल भेद से अनुबद्ध होने का सिद्ध हो तभी कार्यों में (अर्थक्रिया में) क्रमिकता सिद्ध हो सकती है, किन्तु कार्यसन्तान से पृथक् काल की सत्ता बौद्धमत में मान्य नहीं है अतः उन के मत में तो 15 कालविहीन भिन्न भिन्न कार्यवृन्द ही शेष रहा। कार्यभेद रहे तो भले रहे किन्तु कार्यभेद से कारणभेद की स्थापना करना अशक्य है। दिखता है कि प्रदीप (आदि) भाव एक होते हुए भी कज्जल, प्रकाश, वर्तिध्वंसादि अनेक कार्य करता है।
[काल स्वीकारने पर भी कार्य भेद अयुक्तिक] यदि वैशेषिकआदिदर्शनप्ररूपित पृथ्वी आदि पदार्थ से भिन्न काल तत्त्व का स्वीकार किया जाय 20 तो उस से कालभेदमूलक कार्यभेद सिद्ध नहीं हो सकता क्योंकि वह काल एक ही है। एककाल के संसर्ग से कार्यों की क्रमिकता सिद्ध नहीं होती, अन्यथा यौगपद्य (समकालीन) का सर्वथा उच्छेद हो जायेगा क्योंकि एक काल समस्त कार्यों में क्रम प्रयुक्त करेगा। शंका :- काल एक होने पर भी वर्षाऋतु - ग्रीष्मऋतु आदि के क्रम सम्बन्ध से काल का क्रम सिद्ध हो जायेगा। उत्तर :- ऐसा मानने पर अन्योन्याश्रय दोष होगा। देखिये- कालक्रम से वर्षा आदि में क्रम सिद्ध होगा और वर्षादि के क्रम से कालक्रम सिद्ध 25 करेंगे तो अन्योन्याश्रय क्यों नहीं होगा ? यदि कालक्रम वर्षादिमूलक न मान कर अन्यकाल की कल्पना कर के उस से प्रथम काल में क्रम संगत करेंगे तो दूसरे के लिये तीसरे काल की... चौथे काल की...इस तरह अनवस्था दोष प्रसक्त होगा। कारण :- कालक्रम की सिद्धि के लिये आप के अन्य अन्य काल स्वीकार का अन्त नहीं होगा। यदि कहें कि – ‘काल स्वतः क्रमिक है' – तब तो कार्यों का क्रम भी स्वतः ही बन जायेगा, तो फिर कार्यक्रम के द्वारा कारणभेद का अनुमान कैसे हो सकता है ? 30 पहले तो हमने कह दिया है कि कार्यों का क्रम बन जाने पर भी कारण की अनित्यता सिद्ध नहीं हो सकती। यदि कहें – ‘कार्यों का क्रमिक उदय अनेककर्तृत्व के साथ ही संगत होता है अतः अनित्यता
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