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सन्मतितर्कप्रकरण-काण्ड-१ प्रसिद्ध्यभ्युपगमादनवस्थाप्रसक्तेः।
अपि च, किं तद् बाधकं प्रमाणमिति वक्तव्यम् । अथाऽर्थक्रियालक्षणं सत्त्वं नित्ये क्रमयोगपद्याभ्यामर्थक्रियाविरोधात् ततो व्यावर्त्तमानमनित्ये एवाऽवतिष्ठते इति तेन व्याप्तं तत् सिध्यति इत्येतद्
बाधकं प्रमाणम् । असदेतत्- सत्ता-नित्यत्वयोर्विरोधाऽसिद्धेः। विरोधो हि भवन् सहानवस्थानलक्षण: 5 परस्परपरिहारस्थितिलक्षणो वा तयोर्भवेत् ? न तावत् स्थायिता-सत्तयोराद्यो विरोधः सम्भवी, स हि
पदार्थस्य पूर्वमुपलम्भे पश्चात् पदार्थान्तरसद्भावादभावावगतौ निश्चीयते शीतोष्णवत्। न च नित्यतावभासि दर्शनमुदयमासादयति तदभ्युपगमे वा विशददर्शने नित्यतायाः प्रतिभासात् सा विद्यमानैवेति कथं क्षणक्षयिण: सर्वे भावाः स्युः।
___Bनापि द्वितीयो विरोधस्तयोः सम्भवति, नित्यतापरिहारेण सत्तायाः सत्तापरिहारेण वा स्थायितायाः 10 अनवस्थानात्। क्षणिकतापरिहारेण ह्यक्षणिकता व्यवस्थिता अक्षणिकतापरिहारेण च क्षणिकता-इत्यनयोः परस्परपरिहारस्थितिलक्षणताविरोधः। न चार्थक्रियालक्षणा सत्ता क्षणक्षयितया व्याप्तेति नित्यताविरोधिनी
[ स्थायित्वबाधक प्रमाण की समालोचना ] क्षणिकवादी को और एक प्रश्न है - स्थायित्व का बाधक प्रमाण कौन-सा है ? यदि कहें - 'अर्थक्रियाकारित्वरूप सत्त्व अनित्यत्व के साथ ही बैठ सकता है, नित्यत्व के साथ नहीं क्योंकि 15 नित्य पदार्थ में क्रमिक अथवा युगपद् अर्थक्रिया के साथ विरोध है, अतः उस से वह दूर भागता
है। अनित्यत्व से व्याप्त सत्त्व सिद्ध हो कर स्थायित्वप्रत्यक्ष का बाध करेगा।' – तो यह गलत है, सत्ता के साथ नित्यत्व का विरोध असिद्ध है। यदि विरोध है तो कौन-सा ? सहानवस्थानस्वरूप या bपरस्परपरिहारवृत्तिस्वरूप ?
स्थायित्व और सत्ता में प्रथमस्वरूप विरोध निरवकाश है, क्योंकि सहानवस्थानरूप विरोध वहाँ 20 होता है जहाँ एक पदार्थ पहले अनुभवारूढ होता है जैसे शीत, बाद में उष्णतारूप अन्य पदार्थ का
आगमन होने पर शैत्य का वहाँ विरह दिखता है, तब निश्चित होता है कि एक अधिकरण में शीत और उष्णता एक साथ नहीं रह सकते। सत्ता और नित्यत्व में ऐसा विरोध सम्भव नहीं है क्योंकि सत्तादर्शन के बाद नित्यताप्रदर्शक दर्शन का कभी उदय नहीं होता। अगर, नित्यत्व का स्पष्ट
दर्शन हो सकता है तब तो उस का प्रतिभास ही नित्यता के सद्भाव को सिद्ध कर देगा, फिर 25 पदार्थों की क्षणिकता की सिद्धि को अवकाश कहाँ मिलेगा ? bपरस्पर परिहारस्वरूप विरोध भी सिद्ध
नहीं क्योंकि ऐसा दिखता नहीं कि सत्ता हो वहाँ नित्यता न हो और नित्यता हो वहाँ सत्ता न हो। हाँ ऐसा हो सकता है, क्षणिकता रहे वहाँ अक्षणिकता नहीं रहेगी (उदा० बीजली) अक्षणिकता रहे वहाँ क्षणिकता नहीं रहती (उदा० समुद्र)। यहाँ 'क्षणिकता-अक्षणिकता में परस्परपरिहारस्वरूप विरोध
रहता है। ऐसा बोलना नहीं कि - 'अर्थक्रियास्वरूप सत्ता क्षणिकता से अविनाभाविनी होने से नित्यता 30 की विरोधिनी फलित होगी' – इस में तो स्पष्ट अन्योन्याश्रय दोष होगा। देखिये- अर्थक्रियारूप सत्ता
नित्यताविरोधिनी होने से क्षणिकता की व्याप्य सिद्ध होगी, दूसरी ओर सत्ता क्षणिकता की व्याप्य
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