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खण्ड - ३, गाथा-६
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न प्रतिभास:, इति समारोपिताकारग्राहि सर्वमेव ज्ञानम्' इत्युच्यते, तदप्यसारम्, नील-द्विचन्द्रज्ञानयोरविशेषप्रसक्तेः । न च बाह्यार्थवादिना तयोरविशेषोऽभ्युपगन्तव्यः प्रमाणाऽप्रमाणप्रविभागप्रलयप्रसक्तेः । न चानेन न्यायेन विज्ञाननय एवावतार्यत इति वक्तव्यम् तस्य निषेत्स्यमानत्वात् । न च ज्ञानार्थयोरेकसामग्रीजन्ययोः सहभावित्वेन वर्त्तमानग्रहणं क्षणिकत्वेऽपि वैभाषिकमताश्रयणेनाऽभ्युपगन्तव्यम्, क्रियानियमस्य कर्मशक्तिनिमित्तत्वेन व्यवस्थापितस्याऽभावप्रसक्तेः ।
भवतु वाऽनुमानात् प्राक्तनक्षणे सत्ताप्रतीतिः, तथाप्यनन्यथासिद्धेनानेनान्यथासिद्धस्य क्षणक्षयानुमानस्य बाधनात् कुतस्तत्सिद्धि: ? न च क्षणक्षयानुमानस्यान्यथासिद्धत्वाऽसिद्धिः बाधकप्रमाणबलात् सत्ताक्षणिकत्वयोरविनाभावसिद्धेरिति वक्तव्यम्, यतस्तद्बाधकं प्रमाणं सत्ताया: क्षणिकाविनाभावप्रतिपादकमध्यक्षं अनुमानं वा भवेत् ? न तावदध्यक्षरूपम् तत्र क्षणिकताप्रतिभासाभावात् । न चाऽनवभासमानक्षणक्षयस्वरूपमध्यक्षं नहीं । इस स्थिति में यही फलित होता है कि सभी ज्ञान अच्छी तरह आरोपित ( न कि वास्तव ) 10 आकार को ही ग्रहण करता है ।' तो यह निःसार कथन है । कारण, नील ज्ञान ( जो कि प्रमाण माना जाता है) और चन्द्रयुगलज्ञान ( जो अप्रमाण माना जाता है ) दोनों ही अवास्तव आरोपित आकार के ग्राहक होने से उन के आपसी भेद का उच्छेद हो जायेगा । बाह्यार्थ को स्वीकारनेवाले वादी कभी भी इन दो प्रकार के ज्ञानों का एकत्व नहीं मान सकते क्योंकि तब प्रमाण और अप्रमाण विभाजन का लोप ही प्रसक्त होगा । यदि कहें 'इष्टापत्ति, आखिर तो इस ढंग से हम विज्ञानमात्रतापक्ष 15 का ही अवतरण करना चाहते हैं' तो इस विज्ञानमात्रतापक्ष का भी हम अग्रिम चतुर्थ खंड में प्रतिकार कर दिखायेंगे याद रखना । यदि वैभाषिक मत का आशरा ले कर कहा जाय कि
इस
होने से समकालीन हो सकते हैं, अतः क्षणिक
'ज्ञान और उस का विषय ये दोनों एकसामग्रीजन्य होने पर भी अर्थ में वर्त्तमानता गृहीत होती है' जो क्रियानियम स्थापित किया गया है। उस का विषय है उस में निहित शक्ति के आधार पर पूर्वापर भाव से ही संगत होता है, समकालीन
तो यह भी निर्दोष नहीं, क्योंकि कर्मशक्तिमूलक भी लोप प्रसक्त होगा। मतलब कर्मरूप जो घटादि 20 ज्ञान ( जानाति ) क्रिया अवलम्बित होने का नियम, मानने पर उस का लोप होगा ।
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[ क्षणभंगानुमान अन्यथासिद्ध एवं बाधग्रस्त ]
कदाचित् मान ले कि पूर्वक्षणनिष्ठ सत्ता की प्रतीति प्रत्यक्ष से नहीं अनुमान से होगी । फिर भी उस से क्षणभंग की सिद्धि दुराशा है क्योंकि स्थायित्वप्रत्यक्ष अनन्यथासिद्ध है क्योंकि वह अन्यप्रमाण 25 पर निर्भर नहीं है, जब कि क्षणभंगानुमान प्रत्यक्षावलम्बि होने से अन्यथासिद्ध है, अतः प्रत्यक्ष से उस अनुमान का जरूर बाध होगा। अब क्षणक्षयसिद्धि कैसे होगी ? शंका : क्षणभंगानुमान में अन्यथासिद्धि का होना असिद्ध है, बाधक प्रमाण न होने से सत्त्व और क्षणिकत्व का अविनाभाव सिद्ध होता है । उत्तर :- ऐसा नहीं कह सकते क्योंकि प्रत्यक्षबाधक एवं सत्ता में क्षणिकत्व की व्याप्ति का निवेदक प्रमाण कौन सा है ? प्रत्यक्ष या अनुमान ? प्रत्यक्ष तो नहीं, क्योंकि प्रत्यक्ष में कभी भी क्षणिकता 30
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