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सन्मतितर्कप्रकरण-काण्ड-१
अपि च, यद्यग्न्यादिभ्योऽभावो भवेत् तद्भावे काष्ठादयः किमिति नोपलभ्यन्ते ? न ह्यग्न्यादिभ्यो ध्वंससद्भावेऽपि काष्ठादयो निवृत्ताः ध्वंसोत्पादन एव अग्न्यादीनां चरितार्थत्वात्। 'काष्ठोपमर्दैन ध्वंसस्योत्पत्तेः न तेषामुपलब्धिरि ति चेत् ? कुतः पुनस्तदुपमर्दः ? न तावत् प्रध्वंसाभावात्, काष्ठादिसत्ताकाले तस्या
भावात्। नाग्न्यादिभ्यः, ध्वंसाविर्भाविन (वन) एव तेषां व्यापारात् । न चोत्पन्नः प्रध्वंसाभावः काष्ठादीनुपमर्दयति, 5 तद्योगपद्यप्रसङ्गात् तथा च सत्यविरोधप्राप्तिः। ध्वंसेन च काष्ठादेविनाशने विकल्पत्रयस्य (७९-५)
तदवस्थत्वात् ततश्चानवस्था। न च ध्वंसेनावृतत्वात् काष्ठादेरनुपलम्भः, तदवस्थे तस्मिन्नावरणाऽयोगात्। ततो विकारभावे वा पुनरपि विकल्पत्रयानतिवृत्तिः।
किञ्च, यदि हेतुमान् विनाशः, तदा हेतुभेदात् म(? स) भेदं किं नानुभवेत् ? कार्यात्म()नो हि घटादयः कारणभेदात् भेदमनुभवन्तोऽध्यक्षत एवावसीयन्ते, नैवमनासादितभावान्तरसम्बन्धः प्रच्युतिमात्रस्वभावो 10 विवेक - यानी शून्यतत्त्व। यदि शून्यत्व का निरूपण मानेंगे तो पर्युदास नहीं चलेगा।
[अभाव (ध्वंस) काल में काष्ठानुपलब्धि की संगति कैसे ? ] यह भी विचारना है कि अगर अग्निआदि से (काष्ठादि का) अभाव होता है, भले हो, लेकिन तब (अभाव के रहते हुए) काष्ठादि का उपलम्भ क्यों नहीं होता ? अग्निआदि से ध्वंसोत्पत्ति होने
पर भी काष्ठादि की निवृत्ति क्यों ? अग्नि आदि तो सिर्फ ध्वंस को उत्पन्न कर के सार्थक बन 15 गये – उस से काष्ठादि पर कौन सा प्रभाव पड़ा कि वे नहीं दिखाई देते ? यदि कहें कि - "ध्वंस
काष्ठादि का उपमर्दन करता हुआ ही स्वयमुत्पन्न होता है - इस लिये काष्ठादि नहीं दिखते।' - तो यहाँ प्रश्न है – काष्ठ का उपमर्दन किया किसने ? काष्ठ की सत्ता के काल में प्रध्वंस तो था नहीं तो प्रध्वंस उपमर्दन हो नहीं सकता। क्या अग्निआदि ने किया ? नहीं - वे तो ध्वंस
का आविर्भाव करने में व्यग्र हैं। प्रध्वंस उत्पन्न हो कर काष्ठ का उपमर्दन करे यह शक्य नहीं क्योंकि 20 तब प्रध्वंसक्षण में भी काष्ठ की सत्ता स्वीकारनी पडेगी - जो अनिष्ट है। तथा, दोनों की एक
कालीनता मानने पर वास्तविकता से विरोध आयेगा। तथापि ध्वंस से काष्ठादि का विनाश मानेंगे तो पुनः पूर्वोक्त तीन विकल्प (७९-२३) - अग्निसंयोग होने पर इन्धनादि तदवस्थ रहते हैं ? bकुछ विकार होता है ? या तुच्छ स्वभावप्राप्ति होती है ? - ये तीन विकल्प ‘अग्निसंयोग' शब्द के
बदले ध्वंसशब्दप्रयोग कर के पुनः खडे होंगे। उपरोक्त प्रकार से उन का उत्तर देने में पुनः ये तीन 25 विकल्प खडे होंगे – आखिर अनवस्थादोष लगेगा। यदि कहें कि – 'ध्वंस से आवृत होने के कारण
काष्ठादि का उपलम्भ नहीं होता' – तो कहना होगा कि प्रथम विकल्प में जब काष्ठादि तदवस्थ (अनावृत) ही हैं तो उन का आवरण हो नहीं सकेगा। यदि कहें कि - 'ध्वंस से काष्ठादि को विकार प्राप्त होगा' - तो यहाँ भी ध्वंस से विकारावस्था में काष्ठादि का क्या होता है ? तदवस्थ रहते हैं... इत्यादि तीन विकल्प पीछा नहीं छोड़ेंगे।
[ सहेतुक विनाश में वैविध्य की आपत्ति ] यह भी विचारणीय है - विनाश यदि सहेतुक है तो हेतुभेद से विनाश में भी भेद यानी वैविध्य होना चाहिये। प्रत्यक्ष से दिखता है कि कपालादि एवं तन्तुआदि कारण-भेद रहने पर घट
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