________________
१२४
सन्मतितर्कप्रकरण-काण्ड - १
यल्लौकिकं प्रतिभातं तत् किं सत्यतया उताऽसत्यतया ? यद्यसत्यतया कथं प्रवृत्तिः ? अथ सत्यतया, कथमलौकिकं रूपं तस्य सिध्येत् ? किंच, यद्यलौकिकं रूपं प्रतिभातं स्वरूपेण न गृह्यते किं वा लौकिकत्वं परेणाऽलौकिकेतररूपेण गृह्यते तदप्यपरेणेति निरवसाना लौकिकपरम्परा समासज्येत ? ]
[ ?? यदि पुनर्वितथदर्शनं विपरीतख्यातिरभ्युपेयते, तत्रापि वक्तव्यम्- किं विपरीता ख्यातिः 5 आहोस्विद् विपरीतस्य वस्तुनो विपरीताकारेण ख्यातिर्विपरीतख्यातिः ? तत्र प्रथमे विकल्पे किं A1 स्वरूपापेक्षया विपरीतख्यातिः ? A2 आहोस्वित् ख्यात्यन्तरापेक्षया सर्वैव ख्यातिः विपरीतख्यातिः ? आहो ( ?द्यः ) ? तदात्रापि वक्तव्यम् किं A1 तदेव A1b उत्तरकालं (वा) ? यदि 1a तदैव तदा विरोधः । तथाहि— यदि तदा ख्यातिः कथं स्वरूपविरहलक्षणा विपरीतता ? अथ स्वरूपप्रच्युतिः कथं ( किं ? ) सा ख्यातिः ? A1bअथोत्तरकालं ख्यातेरभावस्तथापि कथं विपरीता - ( सर्वासां ) ख्यातीनामुत्तरकालप्रच्युतेर्विपरीतख्याति10 प्रसक्तेः । अथ द्वितीयो विकल्पः, तत्रापि ख्यात्यन्तरापेक्षया सर्वेव ख्यातिर्विपरीतख्यातिरिति सर्वख्याते - वे सब सत्य नहीं होते ।
[ रजत का लौकिकरूप से ग्रहण में अनवस्था प्रसंग ] और एक बात : अलौकिक रजतादि लौकिकरूप से सिद्ध सत्य है या असत्य ? असत्य है तो भासित कैसे होता है ? 15 भेद न रहा (सत्य और भ्रमज्ञान के रजत में ) । यदि कहें कि
अलौकिक होते हुए भी लौकिक अरे यहाँ भी वे ही प्रश्न ऊठेंगे
रूप भासित होता है तब लौकिकरूप से उस को सत्य मानेंगे। कि अलौकिक में लौकिकरूप से भासित होनेवाला रजत सत्यत्वेन दिखता है या असत्यत्वेन ? यदि असत्यत्वेन दिखेगा तो ग्रहणार्थ प्रवृत्ति कैसे होती है ? यदि सत्यत्वेन दिखेगा तो फिर उस के अलौकिकरूप
की सत्ता कैसे मान्य होगी ? और भी एक दोष 20 है तो स्वरूप से गृहीत क्यों नहीं हुआ ? यद्वा
अनवस्थारूप लगेगा। अलौकिकरूप प्रतीत होता अलौकिक रूप में प्रतिवादी लौकिकत्व को लौकिकरूप से गृहीत करने का दिखायेगा तो उस लौकिकरूप का भी नये लौकिकरूप से ग्रहण करना पडेगा, उस का भी नये लौकिकरूप से... इस तरह अन्त ही नहीं होगा ।, अनन्त काल तक यही लौकिक परम्परा प्रसक्त होती रहेगी।
-
Jain Educationa International
अन्य ख्यातियों की
यदि आप मिथ्या दर्शन को 'विपरीत ( अन्यथा ) ख्याति' कहते हैं तो यहाँ दो विकल्प हैं 25 Aविपर्ययभूता ख्याति ( = ज्ञान ), Bअथवा विपरीत वस्तु की विपरीताकार से प्रतीति- विपरीतख्याति । A प्रथम विकल्प में दो प्रश्न हैं - B1 स्वरूपापेक्षया विपरीत भान ? या B2 अन्य अपेक्षया प्रत्येक ख्याति विपरीतख्याति ? पहले प्रश्न के ओर भी दो उपप्रश्न A1a स्वरूपापेक्षया उसी काल में विपरीत ख्याति या A2b स्वरूपापेक्षया उत्तरकाल में विपरीत ख्याति ? A1aउसी काल में विपरीत मानने में विरोध आयेगा । देखिये यदि विपरीत का अर्थ है स्वरूपशून्यता, तो एक 30 ओर स्वरूपापेक्षया ख्याति है तो दूसरी ओर उसी काल में स्वरूपशून्यतारूप विपरीतता कैसे रहेगी ? अथवा यदि उसी काल में स्वरूपशून्यता है तो वहाँ ख्याति की सत्ता कैसे होगी ? A1b यदि उत्तरकाल में स्वरूपशून्यता को विपरीत ख्याति कहेंगे तो भी विपरीतता किस तरह ? ऐसे तो सभी ख्यातियाँ
-
होने का बताया, वह लौकिक रूप सत्य है तब तो व्यवहार से कोई
For Personal and Private Use Only
-
www.jainelibrary.org.