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खण्ड-३, गाथा-५
१४५ तत्र प्रतिभासनात्। अननुवृत्ता(व)पि नाभावः अप्रतिभास()त्। न च तद्विविक्तत्वात् तद(भा)व(?)प्रतिपत्तिः, तदवभासे तद्विविक्तताऽप्रतिपत्तेः। न स्मृतौ प्रतियोगिप्रतिभासात् तद्विविक्ततावगतिः, यथाप्रतिभासमवभासाऽसिद्धेः। यथा(?दा) च न प्रतिभासस्तथापि निषेधाऽयोगात्। इत्यभावाकारस्य प्रतियोग्यभेदे तत्प्रतिभासे न तन्निराकृति: भेदेपि न प्रतियोगिप्रतिषेध इति न बाधाभावावगमः । अपि च बाधाभावप्रतीतिरपि यदि अपरबाधाऽप्रतीते(:) श(?स)त्या तदानवस्थाप्रसक्तिः। नापि सत्यविषयप्रतिभासा तत्प्रतीति: सत्या, 5 इतरेतराश्रयदोषात्। तद् न प्रसज्यरूपो बाधाभावो भाव(त)स्तद्भावव्यवस्थापकः ??]
[?? नापि पर्युदासरूपो बाधकामावस्तद्व्यवस्थापकः तस्य विषयोपलम्भस्वभावत्वात्। स च यथा न प्राक्कालभावी अर्थतथाभावव्यवस्थापकः तथोत्तरकालभाव्यपि, प्रतिभासाऽविशेषात् । पुनरप्युत्तरकालभाविपर्युदासरूपबाधाभावात्मन्यव्यवस्थायां चोद्यपरिहारानवस्थाप्रसक्तिरिति न बाधाभावादर्थतथात्वसिद्धिः। न च स्तम्भादीनां परमार्थतस्तत्त्वं सम्बन्धस्य प्रतिभास()विषयत्वात् । अप्रतिभासविषयत्वे कथं न तदभाव: 10 यदि होती है तो उस का प्रतिषेध नहीं हो सकता क्योंकि उसमें वह भासता है। यदि नहीं होती, उसी हेतु से, यानी नहीं होती झाँखी इतने मात्र से उस का निषेध नहीं हो सकता। यदि कहें कि - ‘अभाव की प्रतीति में प्रतियोगी उस से सर्वथा अलिप्त ही होने से प्रतियोगी के अभाव की प्रतीति हो सकती है' - तो सुन लो कि कैसे भी प्रतियोगी यदि भासता है तो उस में अलिप्तता हो ही नहीं सकती। यदि कहें कि - ‘प्रतियोगी का अवभास अभाव की प्रतीति में नहीं किन्तु स्मृति में 15 होता है अतः अभाव की अलिप्तता प्रतियोगी में भासित हो सकती है' - तो यह भी निषेधार्ह है क्योंकि आपने जैसा कहा वैसा अवभास ही असिद्ध है। आप के कथनानुसार अवभास यदि नहीं होता ता प्रतियोगी का निषेध भी नहीं हो सकता। तदुपरांत, यदि अभावाकार प्रतियोगि से भिन्न नहीं है प्रतियोगिरूप ही है तब तो उस का प्रतिभास अभाव के साथ होने से उसका निषेध अशक्य है। यदि भेद है, तब तो अभावप्रतीति से अभावभिन्न प्रतियोगी का निषेध कैसे हो सकता है ? 20 सारांश, किसी भी तरह बाधाभाव अथवा बाधकाभाव का भान शक्य नहीं है।
यदि बाधाभाव की प्रतीति भी उस में अन्य बाधकाभाव से ही सत्य मानेगें तो उस अन्य बाधकअभाव की प्रतीति भी अन्य अन्य बाधकाभाव से ही सत्य माननी पडेगी - तब अनवस्था दोष गले पडेगा। यदि सत्य प्रतीति का आधार सत्य विषय के प्रतिभास से मानेंगे तो सत्यविषय प्रतिभास का आधार भी सत्य प्रतीति को मानना पडेगा फलतः अन्योन्याश्रयदोष घुस जायेगा। निष्कर्ष :- प्रसज्यनञर्थरूप 25 बाधाभाव (या बाधकाभाव) तत्त्वतः किसी भाव का स्थापक नहीं हो सकता ।
[पयुदासरूप बाधकाभाव से अर्थतथात्वव्यवस्था अशक्य 1 पर्युदासरूप बाधकाभाव अर्थतथाभाव की स्थापना नहीं कर सकता, क्योंकि उस का स्वभाव है भावात्मक विषय का उपलम्भ मात्र जैसे पूर्वकालीन बाधकाभाव अर्थतथाभावस्थापक नहीं होता (यह तो स्पष्ट ही है) वैसे उत्तरकाल भावी भी नहीं हो सकता क्योंकि दोनों तुल्य प्रतिभासरूप है। यदि 30 उत्तरकाल भावि बाधाभाव से प्रतिभासतुल्यता के रहते हुए भी अर्थतथात्वव्यवस्था का स्वीकार करेंगे तो उत्तरकालभावी बाधाभाव के लिये पुनः वे ही प्रश्न खडे होंगे, उन के वे ही उत्तर करते रहेंगे
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