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श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र
हुआ यह नाशवान परिग्रह अवश्य ही धोखा देकर चला जायगा , फिर पछताने के सिवाय मनुष्य कुछ भी नहीं कर सकेगा । अतः इस का दानादि धर्म के पालन के रूप में सदुपयोग कर लेना चाहिए।
गाथा में उक्त 'च' और 'एव' शब्द-इस गाथा में जो 'च' शब्द है, वह समुच्चय के लिए है । इसी कारण 'अब्रह्म और परिग्रह' इन दोनों का समुच्चय-संयोजन करने के लिए 'च' शब्द का प्रयोग किया गया है। और 'एव' शब्द अवधारणार्थक है, निश्चय अर्थ में है । यानी 'एव' शब्द से यह सूचित किया गया है, कि हिंसा आदि भेदों से ही आश्रव ५ प्रकार का है , लेकिन प्रकारान्तर से इसके अनेक भेद हो सकते हैं । इसलिए प्रसंगवश अब हम आश्रव के उन ४२ भेदों को बताते हैं ।
आश्रव के ४२ भेद-प्रकारान्तर से आश्रव के ४२ भेद भी होते हैं; एक गाथा में उसका दिग्दर्शन कराया जाता है
'इदिय-कसाय-अन्वय-किरिया पण-चउर-पंच-पणवीसा॥
जोगा तिन्नेव भवे बायाला आसवो होइ॥' अर्थात्-५ इन्द्रियाँ, ४ कषाय, ५ अवत, २५ क्रियाएँ और ३ योग ; इस . प्रकार आश्रव के ४२ भेद होते हैं।'
पांच इन्द्रियाँ-पांच इन्द्रियाँ आश्रव तभी कहलाती हैं, जब वे विषयों के . मैदान में बेलगाम खुल्ली छोड़ दी जाय । पांच इन्द्रियां इस प्रकार हैं- स्पर्शन, रसन, घ्राण, चक्षु और श्रोत्र।
चार कषाय-क्रोध, मान, माया और लोभ । ये चारों कषाय कर्मों के आगमन के कारण होने से आश्रव कहे गए हैं।
पांच अवत-हिंसा, असत्य, चोरी, अब्रह्मचर्य (मैथुन) और परिग्रह । इन पांचों का विवेचन तो प्रस्तुत सूत्र में विस्तार से किया है।
पच्चीस' क्रियाएँ-१ कायिकी, २ आधिकरणिकी, ३ प्राद्वेषिकी, ४ पारितापनिकी, ५ प्राणातिपातिकी, ६ आरंभिकी, ७ पारिग्रहिकी, ८ मायाप्रत्ययिकी, ६ मिथ्यादर्शन-प्रत्ययिकी, २० अप्रत्याख्यानिकी, ११ दार्शनिकी, १२ स्पार्शनिकी, १३ प्रातीत्यिकी, १४ सामन्तोपनिपातिकी १५ नैशस्त्रिकी, १६ स्वाहस्तिकी, १७ आनयनिकी, १८ वैदारणिकी, १६ अनाभोगिकी, २० अनवकांक्षाप्रत्ययिकी २१ प्रायोगिकी, २२ सामुदायिकी, २३ प्रेय (राग) प्रत्ययिकी, २४ द्वेषप्रत्ययिकी, २५ऐपिथिकी । ये पच्चीस क्रियाएँ कर्मों के आगमन की कारण होने से आश्रव कही गई हैं।
१ इन क्रियाओं का विशेष विवरण स्थानांगसूत्र स्थान ५ उ०२ तथा स्थान
२ उ. १ में देखें।