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उपोद्घात
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बड़ी तिजोरियों में बड़े-बड़े खंभाती ताले लगा कर रखेगा तो भी रह नहीं सकेगा । स्वस्थ और सुडौल शरीर भी रोगग्रस्त हो जाता है । साधनों के लिए आपस में कलह होने लगेंगे या प्राप्त इष्ट साधन भी अनिष्ट के रूप में बदल जायेंगे, उनका दुरुपयोग होने लगेगा ।
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अतः इन सबको रोकने में यदि कोई समर्थ है, तो वह है धर्म । धर्म सेवन रूपी जल से पुण्यरूपी वृक्ष को सींचते रहेंगे तो ये इष्ट साधन टिके भी रहेंगे और इनका दुरुपयोग न होने से वे अनिष्ट के रूप में भी नहीं बदलेंगे । और अन्त में, इन्हीं धन, शरीर आदि इष्ट साधनों द्वारा मोक्षप्राप्ति के लिए पुरुषार्थ करके मोक्षफल भी प्राप्त किया जा सकेगा ।
इतना समझते हुए भी जो कामभोगों में आसक्त हो कर बाह्य और आभ्यन्तरपरिग्रह को अनाप- सनाप तौर से बढ़ाता रहेगा, परिग्रह की लालसा में डूबा रहेगा, वह अपने हाथ में आए हुए मानव जीवनरूप चिन्तामणिरत्न को खो बैठेगा और सदा पछताएगा, बार-बार चतुर्गति वाले संसार वन में भटकता रहेगा और जन्ममरण के दुःख उठायेगा । साथ ही वह परिग्रह लालसा के कारण इष्टवियोग और अनिष्टसंयोग के रूप में अनेक दुःखों को जन्म-जन्मान्तर में भोगता रहेगा ।
यदि साधु की तरह कोई व्यक्ति पूर्णतया परिग्रहवृत्ति का त्याग न कर सके, तो कम से कम परिग्रह की सीमा ( मर्यादा) करके अनुचित लोभलालसा का त्याग करे, अन्याय-अनीति से धन या साधन उपार्जित करने का त्याग तो अवश्यमेव करे और शुभकर्मवशात् प्राप्त धन या साधनों में ही संतुष्ट रहे, अधिक धन या साधनों के स्वामियों को देखकर मन में उनके प्रति ईर्ष्या, द्वेष, घृणा, संघर्ष, या प्रतिस्पर्धा की भावना जरा भी न लाए । संतोष रखकर कम से कम साधनों से मस्ती के साथ जीवन निर्वाह करने का अभ्यास हो जाने से मनुष्य को स्वतः ही अपरिग्रह का आनन्द मिलेगा, चिन्ताओं, लालसाओं और दुविधाओं से दूर रहकर वह निश्चितता से आत्मचिन्तन कर सकेगा, धर्मध्यान में लीन हो सकेगा और स्वस्थतापूर्वक धर्माचरण करके मोक्षसुख का साक्षात्कार कर सकेगा । इसलिए अच्छी बात तो यह होगी कि यदि किसी के पास पूर्वकृत पुण्य के फलस्वरूप धन या साधन के रूप में परिग्रह है भी तो उसे वह साधनहीनों, असहायों, दीनदुःखियों, अनाथों, विधवाओं, अपाहिजों को उदारता से दान दे, सहायता करे, धर्मपरायण त्यागी महापुरुषों की प्रेरणा से चल रही सुसंस्थाओं को कर्त्तव्य भाव से प्रेरित होकर दे, निर्धन बालकों की शिक्षा-दीक्षा और संस्कारवृद्धि के कार्यों में उसे
लगाए ।
अन्यथा, मूर्च्छापूर्वक संचित धन या साधन के रूप में परिग्रह अनेक प्रकार के पापों को जन्म देगा, जीवन को हिंसा, झूठ, दम्भ, व्यभिचार, दुर्व्यसन आदि अनेक दुर्गुणों का अड्डा बना देगा, और एक दिन आसक्ति करके संचित किया