________________
"हमसे कहती हो तो कहें।"
"प्रभु से छिपा रखने की बात क्या है? पर आज ही क्यों धीरे-धीरे सब-कुछ बता दूँगी।"
"क्या आप सोचती हैं कि हेगड़े को यहाँ बुलवा लेने से भी बातें उठ सकती हैं, टीका-टिप्पणी हो सकती हैं:"
"अब तक जो हुआ है, इससे तो ऐसा हो लगता है।""
"तो क्या करना चाहिए ?"
"सिंगमय्या यहाँ हेगड़े के सहायक बनकर रहें। हेग्गड़े भी वहीं रहें। जब हेगङ्ग्रेजी यहाँ से लौटने लगें तब उन्हें बता दें कि वहाँ के कार्य निर्वहण के लिए सिंगमय्या को विधिवत् तैयार करें। तक उन्हें यह बात सूझेग ही कि शायद स्थान परिवर्तन होना सम्भव है। और तब तक यहाँ की परिस्थिति का भी अध्ययन कर लिया जाय। इसके बाद प्रभु स्वयं निर्णय कर सकते हैं। अब आइन्दा कुछ भी करना हो, उसके औचित्य के बारे में पहले अप्पाजी को भी समझा दिया करें, ऐसा मुझे लगता है।" युवरानी ने कहा ।
"ठीक है। युवरानी को सलाह मान्य है ।"
“अब प्रभु आराम करें। मुझे आज्ञा दें।" कहकर एचलदेवी उठ खड़ी हुई । एरेयंग ने स्वीकृति दे टी एचलदेवी यहाँ से बाहर निकल आयीं ।
I
"हे भगवान, मुझे अपने भीतर के भय को किसी से स्पष्ट कहना भी दुस्साध्य हो रहा है ! तेरी मर्जी ।" यो एरेयंग प्रभु अपने-आप से कहते हुए छाती पर हाथ रख आँखें मूंडे लेटे रहे।
राजकुमार बिट्टिदेव में नया उत्साह, नयी स्फूर्ति आयी थी। अब उसे मालूम हो गया था कि उसका भाई पूरी तरह बदल गया है। इस कारण से उन दोनों में सुप्त भ्रातृप्रेम अब प्रकट रूप से व्यक्त हो उठा था। उसमें आत्मीयता, परस्पर विश्वास की भावना जड़ पकड़ने लगी थी। भैया से बड़े विस्तार से युद्ध के प्रसंगों को वह बड़ी तन्मयता से सुन रहा था। वहाँ की बातें जानकर और भैया के कार्यों का विवरण सुनकर उसके मन में भाई के प्रति आत्मगौरव बढ़ गया। बास्तव में उसके लिए भाई एक स्वाभिमान का प्रतीक बन गया था। उसे जो आनन्द हुआ उसे उसने छिपाया नहीं, खुलकर व्यक्त किया। छोटे भाई के इस अभिमान की बात बल्लाल को भी अच्छी लगी थी। उसने जान लिया था कि उसका छोटा भैया उससे भी ज्यादा होशियार है। पहले पहल एक तरह से घमण्ड था सो वह भी उसे स्मरण था, परन्तु अब दूसरों के बराबर अपने ही बल पर सिर उठाने की आत्मशक्ति उसमें आ गयी थी। इसलिए अपने छोटे भाई विट्टिदेव की ग्रहण शक्ति का मूल्य दे सकता था। अपना किस्सा सुना चुकने के बाद उसने छोटे भैया
32 : पट्टमहादेवी शान्तला भाग दो