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प्रस्तावना
में जल्दी उठकर पहले स्नान करती थी फिर धार्मिक विधि और तदनंतर भिक्षार्थियों को दान-आदि देती थी। इन सबसे निबटकर ही वे अपने शरीर की साज-सजा की ओर ध्यान देती थी।' स्त्रियां अपने शरीर को सुन्दर बनाए रखने के लिए कस्तुरी, चन्दन और केशर के लेप करती थी, आंखों में कजल लगाती थी और ताम्बूल का उपयोग करती थी। स्त्रियों के नाना आभूषण धारण करने का उल्लेख पा. च. में अनेक स्थानों पर हुआ है किन्तु उन आभूषणों के नामों का उल्लेख उसमें नहीं किया गया । मनुष्य की शारीरिक सज्जा में आभूषणों का विशिष्ट स्थान था । वे शरीर पर केयूर, हार, कुंडल आदि धारण करते थे तथा चन्दन का लेप लगाते थे ।
पा. च. में चित्रित समाज में अनेक वायों के प्रचुर उपयोग में लाए जाने के उल्लेख हैं । तूर्य, पटु, पटह काहल, णंदि, णंदिघोष, सुघोष, टट्टरी, कंसाल, भेरी, भम्भेरी, भम्भा, वीणा, वंश, मृदंग, हुडुला, झल्लरी, सद्दाल, आलापगी आदि का उपयोग उचित समयों पर किया जाता था। किसी विशिष्ट अतिथि के नगर में आने पर उसके स्वागत में इनमें से तूर आदि वाद्य बजाए जाते थे; साथ ही स्थान पर तोरण बांधे जाते थे, चौराहों पर साथिए बनाए जाते थे और भरे कुंभ रखे जाते थे । उस समाज में शकुनों पर अत्यन्त विश्वास था । ग्रन्थ में पार्श्व के युद्ध के प्रयाण करते समय नाना शकुन होने का उल्लेख है ।" पद्मकीर्ति का कथन है कि ये शकुन फल देने में चन्द्र, सूर्य, नक्षत्र आदि की अपेक्षा अधिक समर्थ हैं" । शकुनों के साथ उस समाज में ज्योतिष शास्त्रमें भी अटूट श्रद्धा पाई जाती है। विवाह की चर्चा प्रारंभ होते ही वर-वधू की कुंडलियों तथा शुद्ध तिथि, वार आदि का विचार आवश्यक ही नहीं अनिवार्य प्रतीत होता है। ग्रन्थ में ग्रह-नक्षत्र, तिथि-वार आदि की शुद्धता और अशुद्धता पर विस्तृत विवेचन किया गया है जिससे प्रतीत होता है कि पद्मकीर्ति ज्योतिषशास्त्र के अच्छे ज्ञाता थे | पद्मकीर्ति द्वारा चित्रित समाज में यह प्रायः अनिवार्य था कि वृद्धावस्था के लक्षण प्रगट होने पर मनुष्य अपनी गृहस्थी का भार अपने पुत्र पर सापकर वैराग्य ग्रहण करे और परमार्थ का चिन्तन करे ।
प्राचीन काल में किसी भी समाज में राजा का स्थान बहुत ऊंचा था । यथार्थतः राजा ही सामाजिक व्यवस्थाओं को बनाए रखने के लिए उत्तरदायी था । अपने इस उत्तरदायित्व को निभाने के लिए राजा के द्वारा राज-पद ग्रहण करते ही अपने विश्वासपात्र व्यक्तियों को भिन्न भिन्न पदों पर नियुक्त किया जाता था। पद्मकीर्तिने नये राजा द्वारा भिन्न भिन्न पदों पर नये नए पदाधिकारि नियुक्त करने का उल्लेख किया है। इससे ज्ञात होता है कि स्वयं राजा धर्माध्यक्ष, मंत्री, सेनापति तथा कोटवाल की नियुक्ति करता था ।" इनके अतिरिक्त राजा अपने वैयक्तिक सेवकों तथा राजप्रासाद के कर्मचारियों को भी नियुक्त करता था । ये नियुक्तियां अत्यन्त सोचविचारकर और संबंधित व्यक्तियों की जांच-पड़ताल के पश्चात् की जाती थीं। राजप्रासाद के कर्मचारियो में अन्तःपुर अध्यक्ष, नर्म सचिव, ज्योतिषी, पुस्तकवाचक, दूत रसोइया, कञ्चकी, पुरोहित, प्रतिहार, लेखक, भंडारी, पानीलानेवाला, शय्यापाल, खड्गधर (अंगरक्षक,) दूधलानेवाला, तथा रत्नों का पारिखी प्रमुख थे।" इनमें से भण्डारी के पद पर तथा खड्गधर आदि वैयक्तिक सेवकों के पद पर उन व्यक्तियों को ही नियुक्त किया जाता था
१. पा. च. ८. ८.१-२ २. पा. च. ६. ११. १२३ पा. च. ६. ११. १३४. पा. च. ८. ८.२ ५. वही १. ९. ४, ५. २.६ ६. पा. च. २. १६. ८ ७. वही. ९ ५. ७. ८. वही ८. ७. १-७; ८. १८. २-३; ९. ५. ८; ९. १४. १, ९. वही १३. ५. ५-९१०. पा. च. १०. ५. १-८ । इस स्थान पर कविने उन ४८ वस्तुओं और प्राणियों का उल्लेख किया है जिनका दर्शन शुभ माना जाता था। इनके सम्बन्ध में टिप्पणियां पृ. २१६ देखिए । ११. पा. च. १०. ५. १०-११. १२. पा. च. १३. ६, ७ और ८ वें कडवक । इनपर विशेष विचार टिप्पणियां पृष्ट २२१ और २२२ पर किया गया है । १३. पा. च. २. ३. ११; ४. ७. ३, ५. ५. ९-१०; ६. १८.६ । १४. पा. च. ६.६. ३-६ १५. पा. च. ६. ६. ७ से १३ तथा ६. ७. १ से.११%8
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