________________
६, ११ ]
अनुवाद
[ ३३
संसार में जो खल थे उनका दमन करता था । नवनिधियोंमें जो धन अधिक होता था वह उस सबको बाँटा करता था तो भी वे अक्षय कोष खाली नहीं होते थे वरन् अनेक रत्नोंसे भरे हुए जैसेके तैसे रहते थे । वह चक्रेश्वर मनसे जिसकी इच्छा करता था कुबेर उसे ही उसी समय प्रस्तुत करता था । वस्त्र, अलंकार, विभूषण, उबटन, स्नान ( की सामग्री ), भोजनकी श्रेष्ठ वस्तु तथा क्षीरोदधिके जलको वह नील कमलके समान आँखोंवाला यक्ष उसे दिन-प्रतिदिन लाकर देता था । मेरु पर्वतके उपवनोंमें जो भी कुसुम थे वे भी चक्रेश्वर के पुण्यसे आते थे ।
वह नराधिप जो भी देखता या मनमें जिसका विचार करता, तपके प्रभावसे वह उसे पृथ्वीपर ही तत्काल प्राप्त हो
जाता था ॥ ८ ॥
कनकप्रभकी विलासवती स्त्रियोंका वर्णन
अत्यन्त तेजस्वी तथा वैभवमें इन्द्रसे भी बड़ा वह राजा अनोखे रूप और कान्तिको धारणकरनेवाली युवतियोंके साथ कामविह्वल हो अत्यन्त आनन्दपूर्वक क्रीडा करता था ।
प्रफुल्लित मुखवाली, विशाल नयनोंवाली, ललित, निर्मल, ( मदन ) विकार उत्पन्न करनेवाली, भारी नितम्बों वाली, आताम्र नखोंवाली, कोकिलके समान स्वरवाली, अनेक वेष धारण करनेवाली, अनोखे रूपवाली, उत्तम कुलमें उत्पन्न, लहलहाते यौवनवाली, गुणों से युक्त, शोभा धारण करनेवाली, भूषित शरीरवाली, कामको उत्तेजित करनेवाली, सम्मुख देखनेवाली, सरल स्वभाववाली, अनेक भावोंवाली, विशाल त्रिवलीसे युक्त, अत्यन्त सुकुमार, पुष्ट और उत्कृष्ट स्तनयुग्मवाली, कोमल अंगोंवाली, यौवनसे मत्त, क्रीडामें 'आसक्त, शंख समान योनिवाली तथा कामातुर स्त्रियोंके साथ वह नरपति इन्द्रके समान क्रीडा करता था । विषय- सुखमें आसक्त तथा सहस्रों स्त्रियोंके साथ रमण करनेवाले चक्रेश्वर कनकप्रभके एक करोड़ लाख वर्ष व्यतीत हुए ॥ ९ ॥
१०
ग्रीष्म कालका वर्णन
अन्तःपुर ( की स्त्रियों ) के साथ, उस पृथिवीसेवित, अनेक सुखोंमें प्रसक्त तथा रतिके रसरंगमें डूबे हुए नराधिपका समय सुखसे बीत रहा था ।
इसी समय तीक्ष्ण वायु से भयावनी, दुस्सह और कठोर ग्रीष्म ऋतु आई । अग्निके समान घाँय धाँय करता हुआ, कठोर, तीक्ष्ण, चपल और शरण स्थानोंको ध्वस्त करता हुआ वातूलयुक्त पवन तेजीसे बहने लगा । वह संसारको प्रलयाग्निके समान तपाता था । रविकी किरणोंसे दाह उँडेलता हुआ अचिन्त्य पौरुषवाला ग्रीष्मकाल धरातलपर उतर आया । सूर्य अपनी किरणों से महीतलको त्रस्त करता मानो ग्रीष्म- नृपके द्वारा वह तपाया गया हो । मनुष्य त्रस्त हो मण्डपोंकी शरण पहुँचे । वे रात्रि में करवटें बदलते और दिनमें म्लान रहते । रविकी किरणोंसे सकल महीतल तप गया। नदियों और तालाबोंका अगाध जल सूख गया । जब रविकी किरणोंका समूह पृथ्वीपर उतरा तो भुवन और अन्तरिक्ष मद और तृष्णासे क्षुब्ध हुआ ।
समस्त संसारको ग्रीष्मकालने रविकी किरणोंके द्वारा संतप्त किया पर पृथ्वीपर विचरण करते हुए गधेके अंगों को वह त्रस्त न कर सका ॥१०॥
११
कनकप्रभकी जल-क्रीडाका वर्णन
अति दुस्सह ग्रीष्मकालको ( आया ) देख छत्रयुक्त और शत्रुओं का निवारण करनेवाला ( वह राजा ) युवतियोंको साथ लेकर नगरवासियोंके साथ जलक्रीड़ाके लिए आनन्दसे निकला ।
५
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org