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टिप्पणियाँ
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मन्दिर बनवाकर उसमें विष्णुकी मूर्ति स्थापित करनेसे स्पष्ट है (प्रो. इ. पृ. २३८,२३९ तथा हि. पी. व्हा. ४ प्र. ८४) । ६. ४. १९ चावडा - नवीं तथा दसवीं शताब्दि के प्रारम्भ में गुजरात में राज्य करनेवाले दो राजवंश चावोटक, चाप या
चापी तथा चावडा कहलाते थे । वर्धमान तथा अन्हिलपाटक इनकी राजधानियाँ थीं । सन् ९४२ में मूलराज सोलङ्कीने इन दोनों वंशोंका अन्त किया।
- मल्ल - भगवान् बुद्धके समय मल्ल जनजाति के दो गणराज्य थे । एककी राजधानी पावा और दूसरे की कुशीनारा थी (हि. ई. पू. ४९ ) ।
—टक्क ( टंक ) - जैन-ग्रन्थों में इस देशका बहुधा उल्लेख हुआ है । उन ग्रन्थोंमें इसे एक अनार्य देश बताया है । अभीतक यह अज्ञात है कि कौनसा भूभाग टक्क नामसे ज्ञात था (ला. इं पृ. ३४२ ) ।
- कच्छाहिव ( कच्छाधिप ) - दसवीं शताब्दि के मध्य में कच्छपर फूलका पुत्र लाखा (लक्ष ) नामका राजा राज्य करता था । मूलराज सोलंकीने उसे युद्ध में परास्त कर कच्छदेशपर अपना अधिकार जमाया था। (हि. पी. ह्वा. ४. पृ. १०३ ) । सम्भव है उसी लाखासे यहाँ कविका आशय हो ।
-सेंधव - सिंधु देशके राजासे आशय प्रतीत होता है। सम्भव है कविकी दृष्टिमें आठवीं तथा नौवीं शताब्दियों में पश्चिम सौराष्ट्र पर राज्य करनेवाला सैंधव राजवंश रहा हो। इस वंशको राजधानी भूटाम्बिलिका या भूमिका थी । सन् ९१५ में या उसके आसपास इस राजवंशका अंत हो गया प्रतीत होता है । (हि. पी. ह्वा. ४. प्र. ९८, ९९, १०० ) ।
- कुडुक - कुर्गदेश स्थानीय भाषामें कोडगु कहा जाता है। कुडुक्कसे आशय उसी प्रदेशसे है। (ला. इ.पू. ३०० ) दशवीं शताब्दि के मध्य में वहाँ कोई स्वतन्त्र राज्य नहीं था ।
६. ५. १ पंचवरण ( पंचवर्ण ) - अत्यन्त प्राचीन कालमें सम्भवतः पाँच रंगोंका ही ज्ञान था जैसा कि स्था. सू. ( ४८५ ) से
ज्ञात होता है । वहाँ किण्हा (कृष्ण), नीला, लोहिया ( लोहित ), हालिद्दा ( हरित् ) तथा सक्किला ( शुक्ल ) रंगों का ही नाम बताया गया है। प्रस्तुत संदर्भ में पंचवण्ण सभाका विशेषण है इससे यहाँ उसका लाक्षणिक अर्थ रंगबिरंगी या सजी-धजी लेना अधिक उपयुक्त होगा ।
६. ६. ७ बंभव्वलु ( ब्रह्मबल: ) - यह दूतका नाम है। अन्य पार्श्वनाथ चरित्रोंमें दूतका नाम पुरुषोत्तम बताया गया है तथा उसे सागरदत्तमंत्री का पुत्र कहा है ( पार्श्व च. ४. ५४८ ) ।
६. ७. २. कुसत्थल ( कुशस्थल ) - यह कान्यकुब्ज (कन्नौज) का दूसरा नाम है । (हि. इ. पृ. ९३ )
६. ७. ३. सक्कवम्म ( शक्रवर्मा ) - यह कुशस्थलीके राजाका नाम है। अन्य पार्श्वनाथ चरित्रों में कुशस्थलीके राजाका नाम धर्म (देखिए सि.पा. पृ. १५४) या नरवर्म ( देखिए पावं. च. ४. ४४२) तथा उसके पुत्रका नाम प्रसेनजित बताया है । उन ग्रन्थों में हयसेन तथा कुशस्थलके राजाका कोई सम्बन्ध नहीं बताया किन्तु इस ग्रन्थ में शकवर्माको हयसेनका श्वसुर बतलाया है ।
६. ६. ६. यिदुहिय" · । त्रिपष्टिशलाकापुरुषचरित, सिरिपासनाहचरिय, पार्श्वनाथ चरित्र आदि ग्रन्थों में रविकीर्ति ( प्रसेनजित ) की कन्याके किन्नर - युगल द्वारा पार्श्वकी प्रशंसा सुनकर पार्श्व के प्रति अनुरक्त होनेका वर्णन है । अपनी कन्याको पार्श्व के प्रति अनुरक्त पाकर ही कुशस्थल नृपने हयसेनके पास विवाहका प्रस्ताव भेजा था । कलिंग नृप प्रसेनजितकी कन्यासे विवाह करनेका इच्छुक था अतः ज्योंही उसने उक्त प्रस्तावके भेजे जानेकी सूचना पाई त्यों ही वह कुशस्थल नगरपर आक्रमण करनेके लिए उद्यत हुआ ।
६.११.११. गज्जंतु, महामयमत्तउ तथा पवित्थरिउ ये तीनों जउण णराहिउके विशेषण हैं । इन सबमें प्रथमा विभक्ति तृतीय के अर्थ में प्रयुक्त हुई है।
दसवीं संधि
१०. ३. ६ कउ-गर्जनाके अर्थ में प्रयुक्त हुआ है ।
१०.४. ८. सेनाके वर्णनमें सिंह जुते हुए रथोंका वर्णन प्रवरसेनकृत सेतुबंध काव्यमें किया गया है। उस ग्रन्थ में विभीषण के पुत्रकी सेनाको सिंहयुक्त रथोंसे सज्जित बताया गया है (से. ब. १२.६५ ) ।
१०. ५. १. इस कडवकमें यात्राके समय जिनका दर्शन शुभ होता है ऐसी अड़तालीस वस्तुओं या प्राणियोंका उल्लेख हैं ।
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