Book Title: Pasanahchariyam
Author(s): Padmkirti
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 527
________________ २२२] पार्श्वनाथचरित हनयां कुरुते । कन्याकी .सं.१०२२ नहीं हाल छठवें नहीं हा की साढ़ेसप्तमीसे शुक्ल पक्षकी साढ़ेसप्तमी तकका चन्द्र अशुभ होता है। शेष समयका चन्द्र शुभ होता है। साथ ही यदि शुभदायक चन्द्रमा पापग्रहोंके बीच हो या पापग्रहसे युक्त हो तथा पापग्रहसे सातवें हो तो अशुभ होता है तथा अशुभ चन्द्रमा भी यदि शुभग्रहके नवांशमें हो या मित्र के नवांशमें हो तथा बृहस्पतिसे देखा जाता हो तो शुभप्रद होता है (मु. चिं. ४.७)। १३.८.३ पावग्गह"सिद्धि-विवाह-लग्नकी प्रथम राशिमें भिन्न-भिन्न ग्रहोंके फलका यहाँ विवरण दिया गया है। बृ. सं. (१०२.१) के अनुसार पहिली राशिमें पापग्रह वैधव्य, सन्तानदुख तथा दारिद्य् लाते हैं; सौम्यग्रह कन्याको साध्वी बनाते हैं तथा चन्द्रमा आयुका क्षय करता है। १३. ८. ४ धनु राशि लग्नका दूसरा स्थान है। इसमें चन्द्रमा नारीको सन्तानबाली बनाता है नारी प्रभूततनयां कुरुते शशाङ्कः-बृ. सं.१०२.२ । १३. ८. ५ तीसरे स्थानमें सब ग्रह शुभ होते हैं, केवल राहु कन्याकी मृत्यु करता है मृत्यु ददाति नियमात् खलु सैंहिकेयः-बृ.सं.१०२.३।। मु. चिं. (६.८६ ) के अनुसार तीसरे स्थानमें शुक्र तथा क्रूर ग्रह अच्छे नहीं होते। १३. ८. ८ वराहमिहिरके अनुसार छठवें स्थानका चन्द्र कन्याको विधवा बनाता है तथा छठवें स्थानका शुक्र दारिद्य् लाता है (बृ. सं. १०२.६) । मु. चिं (६.८६) के अनुसार छठवें स्थानके चन्द्र और शुक्र शुभ नहीं होते।। १३. ८.९ सातवे स्थानके मंगल,बुध, बृहस्पति, राहु, सूर्य, चन्द्र तथा शुक्रका फल क्रमशः वैधव्य, बन्धन, वध, क्षय, धननाश, व्याधि, प्रवास तथा मृत्यु है (बृ. सं. १०२.७) सातवें स्थानको जामित्र कहा जाता है । उसमें किसी भी ग्रहकी उपस्थिति सदोष होती है एको वा यदि जामित्रे पत्युः प्राणहरो भवेत्-सप्तर्षिः जामित्रगा नेष्टफलास्तु सर्वे-वामदेवः १३. ८.१० आठवें स्थानमें मंगल तथा राहुके फलके विषयमें प्रस्तुत ग्रन्थ, बृहत्संहिता तथा मुहूर्त चिन्तामणिमें मत-वैषम्य है। प्रस्तुत ग्रन्थके अनुसार आठवें स्थानमें मंगल शुभ है किन्तु बृ. सं (१०२.८ ) तथा मुहूर्त चिन्तामणि (६.८६,८७) के अनुसार वह अशुभ है। आठवें स्थानका राहु प्रस्तुत ग्रन्थ तथा मु. चिं. के अनुसार शुभ है किन्तु बृ. सं. के अनुसार वह अशुभ है। १३. ८. ११–बृ. सं ( १०२.९) के अनुसार नौवें स्थानका रवि शुभ तथा शनि अशुभ होता है। मु. चिं. के अनुसार नौवें स्थानमें बुध, शुक्र तथा गुरु शुभ होते हैं। १३. ८. १२–बृ. सं (१०२.९) के अनुसार दसवें स्थानमें राहु, रवि, शनि, मंगल तथा चन्द्र अशुभ तथा शेष ग्रह शुभ होते हैं। मु. चिं. (६.८६,८७) के अनुसार दसवें स्थानका मंगल अशुभ तथा बुध, गुरु और शुक्र शुभ होते हैं। १३.८.१३ मु. चिं. के अनुसार ग्यारहवें स्थानमें मंगल, चन्द्रमा, बुध, बृहस्पति तथा शुक्र शुभ होते हैं। १३.८.१४ सोमगह दिट्ठ-अन्य ग्रन्थों के अनुसार बारहवें स्थानमें सौम्यग्रह शुभ होते हैं। इस कारणसे यहाँ 'सयल दिट्ट' का अर्थ सर्वैः शुभाः दृष्टाः किया है। मु. चिं. में बारहवें स्थानके शनिको अशुभ तथा बुध और शुक्रको शुभ बताया है। १३.८.१५ बृ. सं. के अनुसार बारहवें स्थानमें शनि या मंगल होनेसे स्त्रीका मन सुरापानमें आसक्त रहता है-अन्ते... पानप्रसक्तहृदयां रविजः कुजश्च-बृ.सं.१०२.१२ १३.८.१७ गोधूलिवेला सब ज्योतिषाचार्यों द्वारा सब कार्योंके लिए शुभ बताई गई है क्योंकि गौवोंके खुरोंसे उड़ाई गई धुलि सब अशुभोंका नाश करती है-गोधूलिः सा मुनिभिरुदिता सर्वकार्येषु शस्ता। तथा ख्यातः पुसा सुखार्थ शमयति दुरितान्युत्थितं गोरजस्तु । गोधूलिका मुहूर्त भिन्न-भिन्न ऋतुओं में सूर्यको अपेक्षासे भिन्न-भिन्न है। वह मुहूर्त हेमन्त और शिशिरमें सूर्यके पिण्डीभूत होकर मृदु होनेपर, ग्रीष्म और वसन्तमें सूर्यके अर्ध अस्त होने पर तथा वर्षा और शरमें पूर्णास्त होने पर है गोधूलि त्रिविधां वदन्ति मुनयः नारीविवाहादिके हेमन्ते शिशिरे प्रयाति मृदुतां पिण्डीकृते भास्करे । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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