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टिप्पणियाँ
[२३१ १६.१३.४ गंगाणई उ णीसरिउ-उन हृदोंसे निकली हुई नदियोंके नाम इस प्रकार हैं(१) पद्महदसे
गंगा, सिंधु तथा रोहितास्या। (२) महापद्महदसे रोहित तथा हरिकान्ता। (३) तिगिञ्छहदसे हरित तथा सीतोदा। (४) केसरिहदसे
सीता तथा नरकान्ता। (५) महापुण्डरीकहदसे नारी तथा रूप्यकला। (६) पुण्डरीकहदसे सुवर्णकला, रक्ता तथा रक्तोदा। इन नदियों में से गङ्गा तथा सिन्धु भरतक्षेत्र में, रोहित तथा रोहितास्या हिमवत् क्षेत्र में, हरित तथा हरिकान्ता हरिवर्ष क्षेत्र में, सीता तथा सीतोदा विदेहक्षेत्रमें, नारी तथा नरकान्ता रम्यक क्षेत्रमें, सुवर्णकूला तथा रूप्यकूला हैरण्यक्षेत्रमें एवं रक्ता तथा रक्तोदा ऐरावत क्षेत्रमें बहती हैं। प्रत्येक क्षेत्र में जिसका नाम पहले बताया गया है
वह पूर्वकी ओर तथा अन्य पश्चिमकी ओर बहती है।। १६.१३.७ लवणसमुद्रकी गहराई भिन्न-भिन्न स्थानोंपर भिन्न-भिन्न है। रत्नवेदिकासे प्रति ९५ हाथ आगे वह एक योजन
गहरा है। १६.१३.८,९,१० इन पंक्तियोंमें लवणसमुद्र के पातालोंका वर्णन किया गया है। इन पातालोंकी संख्या एक हजार आठ है ।
उनमें चार ज्येष्ठ, चार मध्यम तथा एक हजार जघन्य हैं। ज्येष्ठोंके नाम पाताल, कदम्बक, वडवामुख तथा यूपकेसरी हैं । ये सब कलशके आकारके हैं । इनका मूलविस्तार तथा मुख दस हजार तथा मध्यका विस्तार एक लाख योजन रहता है। प्रत्येक पाताल तीन विभागोंमें विभक्त होता है। प्रथम भाग (सबसे निचले भाग) में वायु, मध्यभागमें जल तथा वायु और ऊपरी भागमें जल रहता है । पूर्णिमाके दिन पातालोंकी वायुकी वृद्धि होती
है । इस वायुसे प्रेरित होकर समुद्र सीमान्तमें फैलता है। १६.१५.१ अड्राइयदीव-जम्बूद्वीप, धातकीखण्ड तथा आधा पुष्करवरद्वीप मिलकर अढाई द्वीप कहलाते हैं।
सत्तरि सउ खेत्तई-यहाँ १७० कर्मभूमियोंसे आशय है। जम्बू द्वीपमें एक भरत क्षेत्र, एक ऐरावत क्षेत्र तथा विदेहके बत्तीस विजय, धातकीखण्डमें दो भरत क्षेत्र, दो ऐरावत क्षेत्र तथा चौंसठ विजय और पुष्करार्ध द्वीपमें भी दो भरतक्षेत्र, दो ऐरावत क्षेत्र तथा चौसठ विजय होते हैं। इन सबकी संख्या १७० हई। इनमेंसे प्रत्येक
क्षेत्र में एक-एक वैताढ्य पर्वत रहता है अतः वैताढ्य पर्वतोंकी संख्या भी १७० हुई। १६.१५.६ भोयभूमीउ--अढ़ाईद्वीपमें भोगभूमियोंकी संख्या ३० है । जम्बूद्वीपमें हैमवत् , हैरण्यवत्, हरिवर्ष, रम्यक, उत्तर
कुरु तथा देवकुरु ये छह भोगभूमियाँ हैं, धातकीखण्ड तथा पुष्कराध द्वीपोंमें हैमवत् आदि क्षेत्र दो-दो होते हैं
अतः उन दोनोंमें चौबीस भोगभूमियाँ हैं । इस प्रकार अढाईद्वीपमें कुल ३० भोग भूमियाँ हैं। १६. १५.७ देवारगण (देवारण्य)-सीता नदीके उत्तरमें द्वीपोपवन सम्बन्धी वेदीके पश्चिममें, नीलपर्वतके दक्षिणमें तथा
पुष्कलावत देशके पूर्व में वन स्थित हैं जिनका नाम देवारण्य है। १६. १५. ८ भूतारण ( भूतारण्य)-द्वीपोपवन सम्बन्धी वेदीके पूर्व अपरविदेहके पश्चिम तथा नील एवं निषध पर्वतोंके
मध्यमें सीतोदा नदीके दोनों तटोंपर जो वन स्थित हैं उनका नाम भूतारण्य है। १६. १५. १० तिरियलोउ (तिर्यग्लोकः)-अढ़ाई द्वीपसे तात्पर्य है जो मनुष्य-क्षेत्र भी कहलाता है। १६. १६. ४,५ इत्थु दिवि अर्थात् जम्बूद्वीपमें दो सूर्य और दो चन्द्र, लवण समुद्रमें चार सूर्य तथा चार चन्द्र एवं धातकी
खण्डमें बारह सूर्य और बारह चन्द्र हैं। १६. १६.६ थिय दूण-इस कथनके अनुसार कालोद समुद्र में २४ सूर्य तथा २४ चन्द्र होना चाहिए किन्तु ति०प० के अनुसार
इस सागरमें बयालीस चन्द्र तथा बयालीस सूर्य चमकते हैं । ति० प० (७. ५५०) के अनुसार पुष्कराध द्वीपमें ७२ चन्द्र तथा सूर्य हैं। पुष्कर समुद्रमें चन्द्र-सूर्योंकी संख्या इससे दुगुनी है। उससे आगेके प्रत्येक द्वीप-समुद्र में
चन्द्र-सूर्योंकी संख्या दुगुनी-दुगुनी होती गई है। १६. १६.९,१० जम्बूद्वीपमें ५६ नक्षत्र, १७६ ग्रह तथा १३३९५० (एक लाख तेतीस हजार नौ सौ पचास) कोडाकोड़ी तारे
हैं। आगे-आगेके द्वीप-समुद्रोंमें इनकी संख्या चन्द्रोंकी संख्याके अनुसार है। जम्बूद्वीप तथा अन्य द्वीपोंमें प्रत्येक
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