Book Title: Pasanahchariyam
Author(s): Padmkirti
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 523
________________ २१८] पार्श्वनाथचरित ११. १.१३ रवि सणि मंगलु-रवि शनि तथा मंगलका योग अत्यन्त अशुभ होता है तथा उसका फल प्रायः मृत्यु है (ज्ञा. प्र. धा. का. १०.)। ११.२.१५. वेदल-(द्विदल)-दो टुकड़ेसे तात्पर्य अंग-भंग करनेसे है। ११.४.१० जालन्धर-भारतके उत्तर पश्चिममें वर्तमान एक राज्य जो त्रिगर्त भी कहलाता था। प्राचीन कालमें यह एक विस्तृत राज्य था जिसकी सीमा पूर्वमें मण्डो और सुखेत तथा पश्चिममें शतद्र तक थी (हि. ई. पृ.८६)। यहाँ उस देशके वीरोंसे आशय है। ११.४.१० खस-९.४.४ पर दी गयी टिप्पणो देखिए। -हिम्मार-हिमालयकी तराईमें वर्तमान राज्योंसे आशय प्रतीत होता है। -इस 'हिम्मार' शब्दका पाठान्तर 'हम्मीर' है। यदि यह पाठान्तर ग्रहण किया जाता है तो उसका आशय मुसलमान शासकोंसे होगा क्योंकि उनकी उपाधि अमीर थी। 'हम्मीर' 'अमीर'का ही रूप प्रतीत होता है। दसवीं शताब्दीमें सिन्ध तथा पंजाबमें मुसलमानोंके राज्य वर्तमान थे। -कीर-यह वर्तमान कांगडा क्षेत्रका पुराना नाम है। नौवीं शताब्दीमें पालवंशीय धर्मपालने वहाँ के शासकको परास्त किया था तथा कान्यकुब्जमें किए गये अपने राजदराबरमें उसे उपस्थित होने और भेंट ( उपहार) देनेके लिए वाध्य किया था (हि. पी. व्हा. ४ पृ. १२१)। -मालवीय-उज्जैन तथा विदिशाके आसपासका क्षेत्र मालवा कहलाता है। उसी देशके योधाओंसे यहाँ आशय है। ११.५.१० कोसल-महात्मा बुद्ध के समय जो सोलह महा-जनपद थे कोसल इनमेंसे एक था; इसकी राजधानी अयोध्या थी; इसे साकेत भी कहा जाता था। आठवीं शताब्दीके पश्चात्से वह क्षेत्र भी जिसे आजकल महाकोसल नाम दिया है, दक्षिण कोसल या कोसल कहलाने लगा था। यहाँ कोसल देशके वीरोंसे आशय, सम्भवतः वही पुराने कोसल क्षेत्रसे आए योधाओंसे होगा। -लाड (लाट )-पश्चिम भारतमें माही और किम नदियोंके बीचके प्रदेशको लाट देश कहा जाता था। किन्ही विद्वानोंके मतसे लाट गुजरातका पुराना नाम है । यथार्थमें लाट देशकी सीमा तथा क्षेत्रके सम्बन्धमें विद्वानोंमें बहुत अधिक मत-भेद है (हि० इं० पृ० २८७)। ११.५.११ तावियड-(तापीतट)-तापी नदीका वर्तमान नाम ताप्ती है । यह नदी वर्तमान मध्यप्रदेशके बैतूल जिले में स्थित मुलतापी नामक नगरके एक तालाबसे निकलकर पश्चिमकी ओर बहती हुई अरब सागर में गिरी है। चूँ कि ताप्तीके मुखके आसपासका क्षेत्र भृगुकच्छ नामसे विख्यात था तथा कवि उसका निर्देश पहले कर चुका है अतः यहाँ उसकी दृष्टिमें भृगुकच्छके पूर्वका प्रदेश रहा होगा । उस क्षेत्रको आज खानदेश कहा जाता है। -डिडिर-यह अज्ञात है। -जरट्ट-संभव है यह जरत्त हो। वर्तमान कच्छको जरत्रदेश भी कहा जाता था (हि० पी० व्हा०४ पृ० १०१)। किन्तु पूर्व पंक्तिमें ही कच्छका उल्लेख किया जा चुका है। ऐसी स्थितिमें यह मानना होगा कि कविने उसी क्षेत्र का उल्लेख भिन्न-भिन्न नामोंसे दो बार किया है। ११.५.१४ राहयलेण (नभस्तलेन) यहाँ तृतीया विभक्तिका उपयोग पँचमी या सप्तमी विभक्तिके लिए हुआ है। ११.६.३ पहावईवप्पु (प्रभावती-पिता)-रविकीर्तिकी कन्याका नाम प्रभावती था अतः यहाँ रविकीर्तिसे आशय है। ११.६.११ भगवई ( भगवती)-किस देवीसे यहाँ आशय है यह स्पष्ट नहीं है। सम्भव है पार्श्वनाथकी शासनदेवी पद्मावतीसे यहाँ तात्पर्य हो। ११.७.१० सलेह ( सलेखाः)-लेखा शब्द धारके अर्थमें प्रयुक्त होता है अतः धारवाले अर्थात् पैनेसे यहाँ तात्पर्य है। ११.८.१३,१४ पंच धीर–पाँच वीरोंमेंसे दोके नाम कल्याणमल तथा विजयपाल हैं; अन्य दो वीर गुर्जर तथा तडकसे निर्दिष्ट हैं किन्तु पाँचवेंके नामका निर्देश नहीं है। ११.९.९ तुम ( त्वम् )-अपभ्रंशके तुहुँका प्राकृत रूप तुमं है (हे० ८.३.९९)। ११.९.१५ सुणेऊण (श्रुत्वा)-प्राकृत भाषामें 'ऊण' प्रत्यय संस्कृतके 'क्त्वा'के अर्थमें प्रयुक्त किया जाता है (हे०८.१.२८ तथा ८.३.१५७)। ११.९.२२ गहीऊण (गृहीत्वा )-ऊण प्रत्ययके पूर्व गहधातुमें ईका आदेश होता है ( हे. ८.३.१५७ )। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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