Book Title: Pasanahchariyam
Author(s): Padmkirti
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 521
________________ माया हो । १३.५०) में इसके शुभ ह टके शभ होनेके बारम के स्वरको २१६] पार्श्वनाथचरित जिन-जिन ग्रन्थों में उन वस्तुओं या प्राणियों के दर्शनको शुभ बताया है. उनका उल्लेख नीचे किया जा रहा है : -गय (गज)-मु. चिं. (११. १००) तथा भ. सं. (१३. ४९) में गजको शुभ माना है। बृ. सं. के ९९ वें अध्यायमें गजकी भिन्न-भिन्न चेष्टाओंके फलोंपर विस्तारसे विचार किया गया है। -वसह (वृपभ)-भ. सं (१३.५०) में इसे शुभ माना है किन्तु वहाँ श्वेत वृषभका उल्लेख है। मु. चि. में गौ को शुभ बताया है। -सौह (सिंह)-भ. सं. ( १३. ५०) में इसके शुभ होनेका उल्लेख है। -कोइल (कोकिल ), पारावय (पारावत) तथा हंसके निनादके शुभ होनेके बारेमें उल्लेख प्राप्त नहीं हो सका । बृ. सं. (८६.२६) में यह कहा गया है कि वसंतके समय कोकिल निष्फल होता है। क्रौंचके स्वरको भ. सं. ( १३-५०)में राजाके लिए जय-सूचक बताया है। मु.चिं. (११. १०५, १०७) में कपोत, खंजन आदि पुरुष-संज्ञक पक्षियोंको वाम भागमें तथा सब पक्षियोंको दाहिनी ओर शुभ बताया है। १०.५.२. चामियर, दोव्व तथा तिलके यात्रामें शुभ होनेका उल्लेख प्राप्त नहीं हो सका। -रयण (रत्न)-मु. चिं. (११.१००) में रत्नोंको शुभ कहा है। रत्नोंमें मोत्तिय, पावाला तथा सेयगुजका भी समावेश होता है। इन तीनोंका उल्लेख अगली सातवीं पंक्तिमें किया गया है। -पउमपत्त (पद्मपत्र)-इसके शुभ होनेका उल्लेख प्राप्त नहीं है। मु. चिं. (११.१००) में कमलको शुभ बताया है। १०. ५. ३ सरिसव ( सर्षिप), गोरोयण (गोरोचन ), इच्छु ( इक्षु ) कुमारि तथा वत्थ (वस्त्र) के शुभ होनेका उल्लेख मु. चिं ( ११. १००, १०१) में प्राप्त है। -सालि (शालि ) सास (शस्य ) तथा तन्दुलके दर्शनके शुभ होनेका उल्लेख कहीं प्राप्त नहीं है किन्तु मु. चि. ( ११.१०१ ) में अन्नके दर्शनको शुभ बताया है। -जएणत्तलोउ-यज्ञ करनेवाले मनुष्योंके दर्शनके शुभ होनेका उल्लेख कहीं प्राप्त नहीं हो सका। मु. चिं ( ११. १०१ ) में वेदध्वनिके शुभ होनेका उल्लेख है। १०. ५. ४ सिरिखण्ड ( श्रीखण्ड )- चन्दनके दर्शनके शुभ होनेका उल्लेख रि. स. ( १८९) में किया गया है किन्तु वहाँ यात्राका उल्लेख नहीं है। -धरणिफल-इसका अर्थ पृथिवीपर गिरे हुए फल किया गया है। पृथिवीपर गिरे हुए फलोंको मु. चिं (११. १०० ) में शुभ बताया है। -सियवत्थ ( सितवस्त्र)-रि. स. ( १८९) में इसका दर्शन शुभ माना गया है, किन्तु वहाँ यात्राका उल्लेख नहीं है। केस (केश)- इसके यात्राके समय शुभ होनेका उल्लेख कहीं प्राप्त नहीं है। भ. सं (१३-५७) में इसके दर्शन को स्पष्टरूपसे अशुभ बताया है। छूटे हुए केशोंको मु. चिं. (११. १०२) में भी अशुभ कहा है। -सुरगन्धवास-देवों द्वारा की गई पुष्पवृष्टि तो शुभ होती ही है, उसके शभ होनेका उल्लेख आवश्यक क्यों कर हो? १०.५.५ गोमउ तथा पियंगु के शुभ होनेका उल्लेख प्राप्त नहीं हो सका। १०. ५. ५ भिंगारु कुंभु (शृंगारः कुम्भम् ) कलश तथा कुंभको क्रमशः रि. सं ( १८९) तथा मु. चिं. में शुभ बताया है किन्तु मु. चिं. में भरे हुए कुम्भका उल्लेख है। -पजलंतहासणु (प्रज्वलन हुताशनः)-जलती हुई अग्निको मु. चि. (११. १००) तथा. भ. सं. (१३.४९)में शुभ कहा गया है। -रयणथंभु ( रत्नस्तम्भु)-इसके शुभ होनेका उल्लेख प्राप्त नहीं। १०.५.६ बालवाण, काहल, वंश तथा तूरके यात्राके समय शुभ होनेका अलगसे तो उल्लेख नहीं है किन्तु वाद्योंको मु. चिं. (११. १००) में शुभ बताया है। भ. सं. (१३. ११९)में यह कथन किया गया है कि भेरी, शंख, मृदंग आदि वाद्योंके अच्छे या बुरे स्वर क्रमशः शुभ या अशुभ होते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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