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९.४.८
पार्श्वनाथचरित
कथाओंमें आज भी सुरक्षित है ।
रट्ठउड ( राष्ट्रकूट ) - यह दक्षिण भारतका एक अत्यन्त प्रसिद्ध राजवंश है । इस वंशके राजाओंने आठवीं तथा नौवीं शताब्दियों में पूरे दक्षिण भारतपर राज्य किया। राष्ट्रकूट राजाओंकी राजधानी मान्यखेट थी । अमोघवर्ष प्रथम इस वंश सर्व प्रसिद्ध राजा है । इस वंशका अन्तिम राजा इन्द्रायुध चतुर्थ सन् ९८२ में, चालुक्यवंशीय राजा तैलप द्वारा रणमें हराए जानेके पश्चात् मृत्युको प्राप्त हुआ ।
- सोलङ्किय - चालुक्यवंश सोलङ्की भी कहलाता था ( प्री. इं. पृ. २३० ) । चालुक्योंके चार वंशोंने भिन्न-भिन्न शताब्दियों में भारत के भिन्न-भिन्न क्षेत्रोंपर राज्य किया। सातवीं शताब्दिमें वातापीका चालुक्य वंश हुआ । दसवीं शताब्दी के मध्य में गुजरात में चालुक्य वंशी मूलराजने अन्हिलपट्टनको राजधानी बनाकर एक विशाल राज्यकी स्थापना की थी। इन दो प्रसिद्ध वंशोंके अतिरिक्त सौराष्ट्र, कल्याणी, तथा वेंगीके चालुक्य वंश भी हुए हैं। यहाँ किस वंश के राजाओंसे कविका आशय है कहना कठिन है । - चाउहाण - राजपुतानाका एक प्रसिद्ध राजवंश जिसे चाहमान तथा चौहान भी कहा जाता । आठवीं शताब्दि उत्तरार्ध में इस वंशका संस्थापक वासुदेव शाकंभरी (शाम्भर झील के आसपास के क्षेत्रपर राज्य कर रहा था। दसवीं शताब्दि के दूसरे चरणमें इस वंशका सिंहराज चौहान उस क्षेत्रका स्वामी था। चौहान नामके अन्य वंशोंने नड्डुल, ढोलपुर तथा परतापगढ़ में राज्य स्थापित किये थे। ये सब वंश नौवीं तथा दशवीं शताब्दियों में हुए हैं।
- पडिहार (प्रतिहार ) - राजपुतानेका एक प्रसिद्ध राजवंश जिसकी राजधानी पहिले भिनमाल तथा बाद में कन्नौज थी। इस वंशके राजा आठवीं शताब्दि के मध्यसे दसवीं शताब्दि के मध्य तक समूचे उत्तर भारत के स्वामी रहे। नागभट्ट इस वंशका प्रथम ख्यातिप्राप्त राजा था। राज्यपाल तथा त्रिलोचनपाल इस वंशके अन्तिम राजा थे । सन् २०२७ में सुल्तान महमूद के आक्रमणसे इस वंशका अन्त हुआ ।
— डुन्डु-इस नाम के वंश या राजाका पता नहीं चल सका। प्रभावक चरित (प्र. ३९) में कन्नौज की गद्दीपर आमके पुत्र दुंदुकके बैठनेका उल्लेख हुआ है । दुंदुक सन् ८९० में सिंहासनारूढ़ हुआ था । सम्भव है डुंडुसे कविका आशय इसी दुंदुकसे रहा हो।
- कलचुरी - यह मध्य भारतका एक प्रसिद्ध राजवंश है। इस वंशके राजाओंकी राजधानी त्रिपुरी थी जो आज मध्यप्रदेश में जबलपुर से छह मील दूर स्थित तेवर नामका गाँव है । इस वंशके राजक्षेत्रको दाहलमण्डल या चेदि कहा जाता था । कोकल्ल प्रथम इस वंशका प्रथम राजा था जो सन् ८४२ में गद्दीपर बैठा तथा ८७८ तक राज्य करता रहा । दसवीं शताब्दि के दूसरे चरण में युवराज प्रथम दाहलमण्डलका स्वामी था ।
९. ४.९ चन्देल - यह मध्य भारतका एक प्रसिद्ध राजवंश है । इस वंशके राजाओंने दसवीं शताब्दिमें बुन्देलखण्डपर राज्य किया। इस वंशके राजाओंकी राजधानी खर्जुरवाहक (खजुराहो ) तथा महोबा थी । नन्नुक इस वंशका संस्थापक था। इस कारणसे, जिस प्रदेशपर वह राज्य करता था उसे जेज्जाकभुक्ति तथा उसके बाद राजा जेजाकभुक्तिके चन्देल कहे जाने लगे (हि. पी. व्हा. ४५. ८२) । इस वंशका राजा यशोवर्मन् दसवीं शताब्दि के दूसरे चरण में जेजाकभुक्तिका स्वामी था ।
—भयाणा तथा सगणिकुंभ ये दोनों चन्देलके विशेषण हैं। सगणि कुंभका अर्थ शकोंको भयभीत करनेवाले या शंकोंका क्षय करनेवाले किया जा सकता है। खजुराहो के शिलालेखसे हमें ज्ञात होता है कि "यशो वर्मनने खसकी सेनाओंकी समानता की तथा काश्मीरी योधा उसके समक्ष कालकवलित हुए।” (हि. पी. व्हा. ४ पृ. ८४) । इस शिलालेख प्रकाशमें सगणिकुंभ विशेषण सार्थक प्रतीत होता है ।
— रणकङ्खिय- इसका अर्थ रणकी इच्छा करनेवाले होता है । चन्देलराज यशोवर्मन् तथा उसके पिता हर्षने अनेक युद्ध किए थे अतः चन्देलोंके लिए यह उपयुक्त विशेषण है ।
- इस शब्द का अर्थ विष्णु होता है ( दे. मा. ६- १०० ) किन्तु यहाँ वह विष्णुके भक्त के अर्थ में प्रयुक्त किया गया है । चन्देल राजवंश विष्णुका भक्त था जैसा कि चन्देल राजा यशोवर्मन् द्वारा खजुराहोमें एक प्रसिद्ध
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