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टिप्पणियाँ
[२१३ जैसे प्रतापी राजा हुए हैं। इस वंशके राजाओंकी राजधानी अयोध्या थी। आठवीं नौवीं शताब्दियोंमें राजपूतोंके अस्तित्व में आनेपर अनेक राजपूत वंश अपनेको सूर्यवंशी कहने लगे थे। ऐसे राजवंशोंमें प्रधान चित्तौडका गहिलोत वंश है। वप्पारावल इस वंशका संस्थापक माना जाता है। महाराणाप्रताप इसी वंशमें उत्पन्न हुए थे। सम्भव है यहाँ ऐसा ही कोई वंश कविकी दृष्टि में रहा हो। -मुंडिय-वर्तमान बस्तर प्रदेशकी एक जनजाति मणिया या मुडिया कहलाती है। सम्भव है इसी जनजातिके किसी राजाको यहाँ मुडियसे निर्दिष्ट किया हो । यहाँ शकोंके राजासे भी आशय हो सकता है क्योंकि वे शकमुरुण्ड कहे जाते थे, और कनिंघम महोदयके अनुसार जिन्हें आज मुडिया कहा जाता है वे ही पहिले मुरुण्ड नामसे ज्ञात थे (ला. इं. पृ. ३६३)। मुरुण्डवंश द्वारा भारतपर राज्य किए जानेका उल्लेख हमें ति. प. (४ १५०६) में प्राप्त होता ही है। संभव है कविकी दृष्टिमें वे ही रहे हों और उन्हें यहाँ मुडियसे निर्दिष्ट किया हो। -मोरिय ( मौर्य)-इतिहास प्रसिद्ध मौर्यवंश जिसमें सम्राट अशोक उत्पन्न हुआ था। एक मौर्य वंशने सातवीं और आठवीं शताब्दियोंमें चित्तौड़ तथा उदयपुरके आसपासके प्रदेशपर राज्य किया। कविका संकेत यहाँ अधिक प्राचीन और अधिक प्रसिद्ध मौर्यवंशकी ओर ही होगा। इक्खायवंस (इक्ष्वाकु वंश)-सूर्य वंशका ही दूसरा नाम इक्ष्वाकु वंश है। चूंकि सूर्यवंशके प्रथम राजाका नाम इक्ष्वाकु था अतः यह वंशको इक्ष्वाकु वंश भी कहा जाने लगा। जैनपुराणोंके अनुसार आदि तीर्थंकर ऋषभदेवने अपने शैशव कालमें, इन्द्र द्वारा लाये गये एक विशाल इक्षको देखकर उसकी ओर अपना हाथ बढ़ाया था तबसे उनका वंश इक्ष्वाकुवंश कहा जाने लगा (त्रि.च.१.२.६५५,६५९)। इक्ष्वाकुवंशके नामकी यह कथा यत्किञ्चित भेदसे आ. नि. (१८६) में भी पाई जाती है। आ. नि. (२०४) में क्षत्रियोंके इक्षभोजी होने के कारण उन्हें इक्ष्वाकु कहे जानेका भी उल्लेख है। पद्मचरित (५.४) के अनुसार भरत चक्रवर्तीके महा प्रतापी पुत्रका नाम अर्क था; चूँकि अर्कका अर्थ सूर्य होता है अतः इक्ष्वाकुवंश सूर्यवंश भी कहा जाने लगा। -सोमावतार (सोमावतार)-सोमवंशी राजाओंसे आशय है। इस वंशका संस्थापक पुरुरवा था। एक मतके अनुसार इस वंशका प्रारम्भ मनु वैवस्वतकी पुत्री इलाने किया था अतः इस वंशको ऐल वंश भी कहते हैं। इस वंशकी राजधानी प्रतिष्ठानपुर थी। इस वंशमें नहुष, ययाति, दुष्यन्त तथा भरत आदि प्रसिद्ध राजा हुए हैं। इसी वंशमें कुरु नामक एक प्रतापी राजा हुआ अतः यह वंश कुरु वंश भी कहलाया। दुर्योधन, युधिष्ठिर आदि इसी वंशमें उत्पन्न हुए थे। जैन पुराणोंके अनुसार बाहुबलोके पुत्र का नाम सोमयश था, इस कारणसे उसके द्वारा चलाया गया वंश सोमवंश कहलाया (पद्म. च. ५.११से १३)। दसवीं शताब्दिके प्रारम्भमें दक्षिण कोसल (वर्तमान महाकोसल) में एक राजवंश राज्य कर रहा था जो सोमवंश कहलाता था। इस वंशके प्रथम राजाका नाम शिवगुप्त था। (हि. पी. व्हा.४ पृ. १४५)। सम्भव है यह वंश भी कविकी दृष्टि में रहा हो। -बुडराय कुलिय- इसका अर्थ बुद्धराज कुलोत्पन्न होता है। छठवीं शताब्दिके उत्तरार्धमें कलचुरी वंशके राजा मालवा, महाराष्ट्र तथा गुजरातमें राज्य कर रहे थे। इसी वंशमें बुद्धराज नामका एक राजा हुआ था। इसके वंशज आठवीं शाताब्दिमें भी पश्चिम भारतपर राज्य कर रहे थे। सम्भवतः इन्हीं राजाओंसे यहाँ कविका आशय हो। किन्तु कलचुरि वंशका उल्लेख कविने अलगसे किया है। बुडाराय कुलियका पाठान्तर 'करवाल कुलिस' है । इसका अर्थ 'तलवारके समान कठोर' किया जाकर इसे पमारका विशेषण मानना होगा। -छिन्दा-अर्थ स्पष्ट नहीं है। -पमार-यह वंश परमार नामसे अधिक प्रसिद्ध है। यह दशवीं शताब्दिका एक प्रसिद्ध राजवंश है। इस वंशका राज्य मालवामें तथा राजधानी धारामें थी। दसवीं शताब्दिके दूसरे चरणमें इस वंशका राजा वैरिसिंह था जो वज्रट नामसे भी विख्यात था। उदयपुरप्रशस्तिसे हमें ज्ञात होता है कि वैरिसिंहने खड्गके बलसे यह सिद्ध किया था कि धारा नगरी उसीकी है। सम्भव है 'करवाल कुलिस' विशेषण पमारके लिए इसी सन्दर्भमें प्रयुक्त किये गये हों। इसी वंशमें भोज नामका प्रसिद्ध राजा हुआ था जिसका नाम साहित्य तथा दन्त
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