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पार्श्वनाथचरित "अक्षौहिणी" का प्रमाण है। गणितज्ञोंके अनुसार इक्कीस हजार आठ सौ सत्तर रथ और इतने ही मदमत्त और ऊँचे पूरे हाथी एक अक्षौहिणीमें होते हैं । उसमें गणनाके अनुसार सेनानायकोंने एक लाख नौ हजार और साढ़े तीन सौ पैदल रखे हैं तथा उस सैन्यबलमें पैसठ हजार छह सौ दस अश्व होते हैं।
इस एक (अक्षौहिणी सेना ) में अश्व, गज, रथ और पैदलोंकी संख्याकी गणना कर वह दो लाख अठारह हजार सात सौ कही गई है ॥५॥
पार्श्व द्वारा रथारोहण श्रेष्ठ नरोंने रणस्थलीमें और श्रेष्ठ देवोंने गगनमें तूर्य बजाये। वे (तूर्य ) रोमांचकारी थे, उत्कर्षकारी थे तथा जयश्रीकी आशाको पूरी करनेवाले थे।
इसी समय सहस्रों सामंतों द्वारा सेवित, सुरों, असुरों, मनुष्यों और नागों द्वारा प्रमाण माने गये, शत्रओंके लिए कालपाशके समान, कवचयुक्त, यमके समान आवेशपूर्ण तथा क्रोधाग्निकी सैकड़ों ज्वालाओंसे आवेष्टित पार्श्व ( रविकीर्तिके ) पराभवको देखकर कुपित हुए। इसी समय सारथीके द्वारा ऐसा रथ उपस्थित किया गया जिसमें छोटी-छोटी घंटियाँ रुनझुन कर रहीं थी तथा ध्वजाएँ और विजयपताकाएँ फरफरा रही थीं। वह रथ सुवर्णसे अलंकृत अतः शोभायुक्त था। उसमें (जड़े हुए) मणियों और रत्नोंसे किरणोंका समूह फैल रहा था। उसमें नाना प्रकारका खुदावका काम था। वह मेरुके समान ऊँचा और आकर्षक
सारथिक द्वारा उपस्थित किया गया वह रथ एसा था जो सग्राममें शत्रुओंको पौरुषहीन करता था। (पाश्व) कुमार उस रथपर आरूढ हुआ। वह उसमें गगनस्थित सूर्यबिम्बके समान शोभायमान हुआ। तृणोर बाँधकर उसने हाथमें धनुष लिया और रणमें इस प्रकार शीघ्रतासे चला मानो नभमें कोई काला ग्रह हो !
____ अश्व, गज और वाहनोंसे युक्त सेनाके साथ कुमारको देखकर शत्रु संग्राम भूमि छोड़कर ( अपने-अपने ) घरोंकी ओर भागे ( तथा आश्चर्य करने लगे कि )-"यह किस प्रकारसे (संभव ) हुआ कि गुणी सूर्यके उदित हो जानेपर भी यह अन्धकार आकाशसे दूर नहीं होता ॥६॥
पार्श्व द्वारा शत्रुके गज-समूहका नाश समर्थ योद्धाओंसे युक्त ( वह पार्श्व ) रविकीर्तिको अभय प्रदान कर वायव्व, वारुण तथा आग्नेय अस्त्रोंसे गजोंको मार गिराने लगा। कुछ वावल्ल और भालोंसे चीरे गये तथा चक्र और बीके प्रहारसे फाड़े गये। कुछ नाराच और सेल्लसे आहत किये गये तथा कुछ हाथी खड्गके आघातोंसे रणमें गिराये गये। कुछ गज कल्पद्रमोंके समान छिन्न-भिन्न कर दिये गये। वे घोर पीड़ासे कातर होकर जलाशयके तीरपर पहुँचे । कुछ अर्धन्दु बाणोंसे चोट खाकर दुष्ट महावतोंके द्वारा पीछेकी ओर चलाये गये । कुछ शक्तिके प्रहारसे चक्कर खाकर दाँत और अंकुशके टूटनेसे संग्राम भूमिसे भागे। कुछ तलवारकी नोकसे आहत होकर गर्जते और भागते थे तथा मुक्त होकर युद्धके बीच डोलते फिरते थे। कुछ त्रिशूलसे कुंभस्थलीपर बेधे गये मानो मेरुको उसकी चोटीपर आघात पहुँचाया गया हो। पार्श्वनाथने गजोंको उसी प्रकार त्रस्त किया जैसे इन्द्रने गगनमें पर्वतोंको नष्ट किया था।
शवकुमार रूपी सिंहने संग्राममें लम्बी सूंडवाले महागजोंको खदेड़ भगाया, अथवा जिसके दाँत निकले हैं तथा जो दसरेके वशमें है रणमें उसकी कौन चाकरी करेगा ॥७॥
पार्श्वसे युद्ध करनेके लिए यवनराजकी तैयारी पार्श्वकुमाररूपी सिंहके वाणरूपी नखोंसे भयभीत हुए समस्त गज रण छोड़कर वायुके द्वारा नभमें छिन्न-भिन्न किये गये मेघोंके समान भाग गये।
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