Book Title: Pasanahchariyam
Author(s): Padmkirti
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 506
________________ टिप्पणियाँ [२०१ स्वप्नेऽपश्यन्मेहीं ग्रस्तां मेरुं सूर्य च सोडुपम् ॥ सरः सह समधि च चलवीचिकमैक्षत | प्रा. पु.१५.१००,१०१ । भगवती सूत्र (५७७) तथा कल्प सूत्र (७४) के अनुसार चक्रवर्तीकी माता चौदह स्वप्न देखती है। ६. १. १२ चौसहि पवर लक्खण-तीर्थकरों तथा चक्रवर्तियोंके शरीरपर एक हजार आठ, बलदेव तथा वासुदेवोंके शरीर पर एक सौ आठ तथा अन्य भाग्यवान पुरुषोंके शरीरपर बत्तीस लक्षण रहते हैं। यहाँ चक्रवर्तीके शरीरपर चौसठ लक्षण होनेका उल्लेख है । सम्भवतः कविकी दृष्टि में ये चौसठ लक्षण रहे हों इह भवति सप्त रक्तः षडुन्नतः पञ्च सूक्ष्मदीर्घश्च । त्रि विपुल लघु गम्भीरो द्वात्रिंशल्लक्षणः स पुमान् ॥ सात रक्त-नख', चरण, हस्त, जिह्वा', ओष्ठ, तालु तथा नेत्रान्त हैं। छह उन्नत-कक्षा', हृदय', ग्रीवा, नासा, नख', तथा मुर्ख हैं। पाँच सूक्ष्म-त्वक्', केश', अंगुलिपर्व, नख तथा दन्त हैं। पाँच दीर्घ-नयन', हृदय, नासिका, ठोडो तथा भुज हैं। तीन विस्तीर्ण-भाल', उर तथा वदन हैं। तीन लघु-ग्रीवा, जंघा तथा मेहन हैं। तीन गम्भीर स्वर, नाभि तथा सत्व हैं। इन बत्तीस लक्षणोंके अतिरिक्त बत्तीस लक्षण छत्रं 'तामरसं, धनू रथवरो "दम्भोलिकुमाकुशा वापी-स्वस्तिक-तोरणानि च "सरः पञ्चाननः "पादपः। *चक्र'"शङ्खगजौ ६ समुद्रकलशौ८ प्रासादमत्स्या यवा" २यूपस्तूप कमण्डलून्यवनिभृत" सच्चामरों" दर्पणः ॥ २"उक्षा पताका कमलाभिषेकः सुदामकेकी 'धनपुण्यभाजाम् । (इस सम्बन्धमें बृ० सं०६०-८४ से ८८ भी देखिए) ६.१.१३. णवणिहि-नौ निधियोंके नाम ये हैं-काल, महाकाल, पाण्डु, मानव, शंख, पद्म, नैसर्प, पिंगल और सर्वरत्न या नाना रत्न कालमहाकालपंडू मारणवसंखा य पउमणइसप्पा । पिंगलणाणारयण गवणिहिणो सिरिपुरे जादा । ति०प०४.१३८४. -रयण-रत्न चौदह हैं। उनमें सात जीव रत्न तथा सात निर्जीव रत्न हैं। 'पवनञ्जय (अश्व), विजयगिरि (गज), भद्रमुख (गृहपति), कामवृष्टि (स्थपति), "आयोध्य (सेनापति), बुद्धिसमुद्र (पुरोहित) तथा सुभद्रा (युवति) ये जीव रत्न हैं पवणंजय विजयगिरि भद्दमुहो तहय कामउट्ठी य । होंति यउज्झ सुभद्दा बुद्धिसमुद्दोचि पत्तेयं ॥ ति०प०४.१३७७ , चक्र, काकिणी, चिन्तामणि तथा चर्म ये निर्जीव रत्नों के नाम हैंछत्तासिदंडचक्का काकिणी चिंतामणि त्ति रयणाई।। चम्मरयणं च सत्तम इय गिज्जीवाणि रयणाणि ॥ ति.प.४.१३७६ इन रत्नोंके विशिष्ट गुणोंके लिए देखिए. शा. स. पृष्ठ ७२,७३. ६.२.१० पढिज्जइ-यहाँ स्तूयतेके अर्थ में प्रयुक्त हुआ है। ६.३.१ इस कडवकमें चक्रवर्तीके अधीन जो देश, सैनिक, नगर आदि रहते हैं उनकी संख्याका निर्देश है। यह संख्या तिलोयपण्णत्तिमें निर्दिष्ट चक्रवर्तीकी सेना आदिकी संख्याके बराबर है, भेद केवल पुरों, कर्वटों और द्रोणामुखोंकी संख्या में है। ति.प. के अनुसार चक्रवर्तीके नगरोंकी संख्या ७५०००, खेटोंकी १६०००, कर्वटोंकी २४०००, मंटवोंकी ४०००, द्रोणामुखोंकी ९९००० तथा पट्टनोंकी ४८००० है (ति. प. ४.१३९३,४,५) ति. प. में सवलहणकारों तथा आकरोंकी संख्याका निर्देश नहीं है। कव्वडसुखेडदोणामुह-वृत्तिसे वेष्टित ग्राम, चार गोपुरोंसे रमणीक नगर, पर्वतों और नदीसे घिरा हुआ खेट तथा केवल पर्वतसे वेष्टित कर्वट कहलाता है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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