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टिप्पणियाँ १.६.७. ऋषभदेवने अपने पुत्र बाहुबलीको पोदनपुर ( तक्षशिला) का राज्य दिया था। बाहुबली वहीं रहकर राज्य
करते थे
पौदनाल्ये पुरे तस्य स्थितो बाहुबली नृपः । पद्म. च.४.६७।। १. ६. ८. यहाँ व्याजस्तुति अलंकार है। कवि उस नगरमें निरर्थक पुरुषका अभाव बतलाकर यथार्थतः उस नगरकी
प्रशंसा ही कर रहा है (का. प्र. १०.११२)। १. ६.९. पट्टण-जो उत्तम रत्नोंका उत्पत्ति स्थान हो उस नगरको पट्टण कहा जाता था
वर-रयणाणं जोणी पट्टण-णामं विणिद्दिटं । ति.प.४.१३६६. १.७.९,१० यहाँ पृथिवीको माता, गृहोंको स्तन तथा सूर्यको शिशुकी उपमा देकर कल्पना की गयी है कि पृथिवी अपने पुत्र को
स्तन्यपान करा रही है। १. ८. ३. दप्पणगड.......। चूँकि राजाके योग्य कोई उपमान इस विश्वमें नहीं है अतः कवि राजाके दर्पणगत विम्बको
ही अन्य व्यक्ति मानकर उसे राजाका योग्य उपमान मानता है। यह अनन्वय अलंकारका उदाहरण है
(का. प्र. १०.९१)। १. ८. ७. अ. शा.में राजा दुष्यन्तने इसी आशयकी घोषणा करायी है
येन येन वियुज्यन्ते प्रजाः स्निग्धेन बन्धुना।
स स पापाहते तासां दुष्यन्त इति घुष्यताम् ॥ अ.शा.६.२५. १. ८. ९. भारविकृत किरातार्जुनीय काव्यमें दुर्योधनकी नीति भी इसी प्रकार वर्णित है
सखीनिव प्रीतियुजोऽनुजीविनः समानमानान्सुहृदश्च बन्धुभिः। स सन्ततं दर्शयते गतस्मयः कृताधिपत्यामिव साधु बन्धुताम् ॥ कि. अ.१.१०.
तथा-निरत्ययं साम न दानवजितं न भूरिदानं विरहय्य सत्कियाम् । कि अ.१.१२. १.११.६. बंभरोण-यहाँ षष्ठीके स्थानमें तृतीया प्रयुक्त हुई प्रतीत होती है। यदि ऐसा न माना जाये तो अर्थ होगा कि
उसे ब्राह्मणके द्वारा बुलवाया। १.१२.६. चक्षुरागसे प्रारम्भ कर पारस्परिक विश्वास उत्पन्न होनेतक प्रेमकी पाँच अवस्थाओंका उल्लेख यहाँ किया गया
है। कामकी दस अवस्थाओंके लिए देखिए स्वयम्भूकृत पउमचरिउ (२१.९.)। १.१२.१०. काम पीडित व्यक्ति द्वारा लोकलाजके त्यागपर अनेक लोकोक्तियाँ पायी जाती हैं।
यथा-(१) कामातुराणां न भयं न लज्जा ।
(२) कामार्तानां कुतो लज्जा निर्विवेकिनामिव । १.१४.११ अवराह (अपराध)-इस शब्दका सामान्य अर्थ कोई नियम-विरुद्ध कार्य होता है किन्तु यहाँ यह अपराधके
लिए दण्डके अर्थमें प्रयुक्त प्रतीत होता है। १.१५.४. जणिणिए समाण (जनन्या समम् )-माता और पिता दोनोंको एक शब्दमें व्यक्त करनेके लिए जिस प्रकारसे
'पितरौ'का प्रयोग किया जाता है उसीके समान यहाँ 'जननी'का उपयोग किया गया है। १.२०.४. पय-पूरण-पर-इसमें पय (पदका) अर्थ 'वर्तमान स्थिति' या 'यह जन्म' ग्रहण करना आवश्यक है। राजाके
कहनेका आशय यह है कि कमठ अपने पूर्व जन्ममें किये गये पुण्योंके फलसे मनुष्यगति पा गया है और वह अपने इस जीवनको पूरा कर रहा है, अन्य कुछ नहीं। परिस्थितिवश वह तपोवनमें प्रविष्ट हो गया है पर
उसका ध्येय पुण्योपार्जनका नहीं है। १.२१.१०. ज्येष्ठ भाईको पिता तुल्य तो सर्वत्र ही माना और कहा गया है पर यहाँ उसे पितामहके समान भी बताया
गया है। मरुभूतिका कमठके प्रति अत्यधिक आदरभाव प्रदर्शित करने के लिए कविने यह सूझ अपनायी है। १.२२.६. मरुभूतिका तिर्यग्योनिमें जन्म ग्रहण करनेका कारण उसकी आर्तध्यानकी अवस्थामें मृत्यु है। इसका उल्लेख
अन्य काव्योंमें किया गया है यथातत्प्रहाररुजा सार्तध्यानो मृत्वाभवत्करी । त्रि. च.६.२.५६. प्रहारातिसमुत्पन्नमहार्तध्यानधूसरः। पार्श्व. च.१.१६६. विन्ध्याद्रौ भद्रजातीयः सोऽभूबन्धुरसिन्धुरः। पार्श्व. च.१.१६७.
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