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तेरहवों सन्धि भुवनको यशसे परिपूर्ण करनेवाले, श्री हयसेनके पुत्रने यवनराजको बन्दी बनाया तथा रविकीर्तिको राज्य प्रदान किया।
यवनराजके भटों द्वारा आत्मसमर्पण हथिनीके लोभी और मत्त महागजके समान यवन नरेन्द्रको रणमें वैसे ही बन्दी बनाया गया जैसे सिंह लाकर पिंजड़ेमें छोड़ दिया जाता है अथवा सर्प पकडनेवालोंके द्वारा सर्प निश्चल कर दिया जाता है। उस अवसरपर सब राजाओंने पार्श्वका अभिनन्दन किया, दुन्दुभी बजाई गई, तूर्यकी ध्वनि की गई तथा महीतलपर सब सेना आनन्दित हुई। रविकीर्ति नृप मनमें सन्तुष्ट हुआ। उसके मनमें हर्षका आवेग समाता नहीं था । इसी बीच यवनराजके बली, शस्त्रधारी, तेजस्वी
और शत्रुओंके लिए सिंहरूप नरपति आये, कुमारके चरणोंमें प्रणाम किया और ( निवेदन किया-) "हे परमेश्वर, आप हमें वचन और आश्वासन दीजिए, हम आप ही के सेवक हैं। आप हमें दिन-प्रतिदिन निर्भीकतासे आदेश दीजिए। हे स्वामिन् . आजसे लेकर सब समयके लिए हमारी सेवा आपको अर्पित है।
“भुवनमें विस्तीर्ण प्रतापवाले आप, जो ( कार्य ) किया जाना है, उसके लिए आज्ञा दें। हे शोभन स्वभाववाले, आपको हम भृत्योंके हितकी बहुधा इच्छा हो" ॥१॥
पार्श्वका कुशस्थलीमें प्रवेश उन शब्दोंको सुनकर वह दुर्निवार कुमार युद्धमें उन उत्तम पुरुषोंको अभय-दान देकर रविकीर्तिके साथ नगरमें प्रविष्ट हुआ । सामने ही अश्व, गज और योद्धाओंका समूह खड़ा था । उस समय कुशस्थल नगरके निवासी आभरणोंसे अलंकृत हो विविध वेष धारणकर और सजधजकर अपने-अपने घरमें आ खड़े हुए तथा कुमारको योद्धाओंके साथ प्रवेश करते हुए देखने लगे। (उस समय ) बाजार, गृह, मठ और उनके आस-पासकी भूमि मण्डित की गई, सब मन्दिर और विहार सजाये गये; चौराहों और राजमहलकी सजावट की गई तथा विशाल और शोभायमान तोरण बाँधा गया; स्वस्तिक और चौक पूरे गये तथा कुम्भ, दूर्वा और अक्षत रखे गए एवं रत्नस्तम्भ खड़े किये गये; भूमि सम की गई तथा गज, वृषभ, छत्र, पुआल, सरसों, दर्पण और पद्म-पत्र रखे गये। राजाके प्रवेश करते समय भिन्न-भिन्न अवसरोंपर मंगल सूचक तूर्य वजाये गये। रविकीर्ति नृपके साथ कुमारने गृहमें प्रवेश किया तथा साधुवादकी प्राप्ति की।
उत्तम पुरुषोंके साथ पार्श्वनाथने रविकीर्तिके राजमहलमें वैभवसे प्रवेश किया मानो सुरेन्द्रने स्वर्गमें प्रवेश किया हो ॥२॥
पार्श्व द्वारा यवनराजकी मुक्ति उस अवसरपर राजाने अपने परिजनोंसे युक्त पार्श्वनाथको ( नये वस्त्र ) पहिनाये, भोजन कराया तथा नाना वस्त्रों, अलंकारों और विभूषणोंसे सम्मानित किया। जो भी दूसरे कोई नृपति उपस्थित थे उन सभी विशिष्ट व्यक्तियोंका रविकीर्तिने
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