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शब्दकोश
अंक मूल पाठकी क्रमशः सन्धि कडवक और पंक्तिका निर्देश करते हैं। जो सामान्य शब्द एक ही अर्थमें बहुधा प्रयुक्त हुए हैं उनके उन सभी स्थानोंका निर्देश नहीं किया गया जहाँ-जहाँ वे प्रयुक्त हैं। असामान्य शब्दोंके उन सभी स्थानोंका निर्देश किया गया है जहाँ-जहाँ वे प्रयुक्त हैं।
तत्सम शब्दोंको उनके आगे त. स. अक्षर लिखकर व्यक्त किया गया है। जिन शब्दोंको देशी शब्द माना है उन्हें तारक ( * ) चिह्नसे अंकित किया गया है।
क्रियाओंको इस चिह्नसे अंकित किया गया है। क्रियाओंके समस्त रूपोंका तथा जिन-जिन स्थानोंपर वे रूप प्रयुक्त हुए हैं उनका निर्देश किया गया है।
जो अपभ्रंश-शब्द संस्कृतसे उत्पन्न माने गये हैं उनके आगे संस्कृत-शब्दोंको भी दिया गया है। जहाँ आवश्यक प्रतीत हुआ है वहाँ शब्दोंका हिन्दी-अर्थ भी कोष्ठकमें दिया गया है।
जिस अपभ्रंश-शब्दकी हिन्दी या मराठीशब्दसे विशेष समता दिखाई दी है उस अपभ्रंशशब्दके साथ उस हिन्दी या मराठीशब्दको भी दे दिया गया है।
___ इस ग्रन्थमें प्रयुक्त किसी शब्दका समावेश यदि हेमचन्द्रकी प्राकृत व्याकरण या देशी नाममालामें हुआ है तो इन ग्रन्थोंका उल्लेख कर जहाँ वह शब्द उन ग्रन्थोंमें आया है उस स्थानका भी निर्देश किया गया है।
जिन शब्दोंकी उत्पत्ति या अर्थ संदेहात्मक है उनके आगे प्रश्नसूचक चिह्न लगा दिया गया है। निम्नलिखित संकेत-अक्षरोंका उपयोग किया गया है
आ० = आज्ञार्थ; ए० = एक वचन; क० = कर्मणि; कृ० = कृदन्त; क्रि० = क्रियार्थक; तृ० = तृतीयपुरुष; दे० ना० =देशी नाममाला; द्वि० = द्विवचन, द्वितीय पुरुष, पू० = पूर्वकालिक; प्र०= प्रथम पुरुष प्रे० = प्रेरणार्थक; ब० = ब भ० भविष्यकाल: भू० = भूतकाल; म० = मराठी; वर्त० = वर्तमानकाल; स्त्री० = स्त्रीलिंग; वि० = विध्यर्थ; हि० = हिन्दी; हे० = हेमचन्द्र प्राकृत व्याकरण ।
[अ] अइ-अति १.४.८% १.२२.३, १७.६.१ अइकंत-अतिक्रमका भू० कृ २.५.३ अइतम-अतितम (महातम =सातवाँ नरक) १६.४.३ अइरावय-ऐरावत १.३.१ ८.१३.४ अइस-ईदृश् ११.६.६ अइसय-अतिशय १५.८.११ अइसयमह-अति+शतभख ( = इन्द्रसे बड़ा) ६.१.२ . अउण-अपुण्य १६.१६.३ अउठव-अपूर्व ३.१.४
अंकिय-अंकित ५.१.३ अंकुस-अंकुश १२.२.८ अंकोल्ल-अंकोठ (= एक वृक्ष हे. १२००) १४.२.७ अंग-त स (1= आचारांगादि द्वादशांग) ३.१.४;६.१७.५
(२=शरीरावयव) ४.१.४, १३.१२.४ अंगण-अंगन २.२.२; १०.४.१०, ११.२.६ अंगरक्ख-अंगरक्ष(= अंगरक्षक ) २.३.६ अंगुट्ठ-अंगुष्ठ १.३.२
-अंगुठ्ठय ८.२३.१ अंगुब्भव-अंगोद्भव १०.८.२
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