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अनुवाद
[ES हुए प्रणामकर कहा-“हे परमेश्वर ! मैं पापकर्मी, अनेक दुःखोंसे युक्त तथा धर्महीन हूँ। हे देव ! मैंने जो आपका उपसग किया उस सबके लिए आज आप मुझे क्षमा करें । हे जगके स्वामी ! सुरोंके गुरु और देवोंके देव, हमारी सेवा आपको अर्पित है।" कमठासुरने यह कहकर हर्षित मनसे सम्यक्त्व ग्रहण किया। उसी समय उसके पापों और दोषोंकी ग्रन्थि छिन्न-भिन्न हो गई तथा जिनवरके चरणों में प्रणाम करनेसे कुमतिका नाश हो गया।
(सम्यक् ) दर्शन रूपी उत्कृष्ट रत्नसे विभूषित एवं पृथिवीपर प्रशंसित कमठासुर अपना मन कल्याणकारी और शाश्वत सुखमें लगाता तथा गुणोंसे समन्वित जिनवर स्वामीके उन चरणोंमें नमस्कार करता था जो पदमा द्वारा आलिङ्गित हैं ॥१८॥
॥सोलहवीं सन्धि समाप्त ॥
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