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पार्श्वनाथचरित
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तुम हमारे वचन, जो प्रामाणिक हैं उन्हें सुनो। नगर और पर्वतोंसे भूषित इस महान् जम्बूद्वीपमें षट्खण्डोंसे अलंकृत तथा अखण्ड भरतक्षेत्र है। उसमें धन-धान्यसे परिपूर्ण, मनोहर और विशाल काशी देश है। वहाँ वाराणसी नामकी नगरी है, जिसके समीपसे भुवन प्रसिद्ध गंगा नदी बहती है । उस नगरीमें हयसेन नामका राजा निवास करता है। वह सम्यक्दृष्टि और धनसम्पन्न है । उसको वामादेवी नामकी एक सुन्दर रानी है । वह अपने सौभाग्यसे त्रिभुवनको जीत चुकी है।"
"उसके गर्भ में पापोंका नाश करनेवाले, त्रैलोक्यके स्वामी, मोक्षगामी तथा मेरुपर जिनका अभिषेक-पीठ है वे भट्टारक जिनवर अवतरित होंगे" ॥३॥
इन्द्रको आज्ञासे वाराणसीमें रत्नोंकी वृष्टि; वामादेवीकी सेवाके लिए देवियोंका आगमन
"तुम वहाँ जाकर उस नगरीमें प्रतिदिन असंख्य रत्नोंकी वर्षा करो तथा वह करो जिससे कि सब निवासी धनधान्यसे परिपूर्ण हो जाएँ।" सुरेन्द्रकी आज्ञाको शिरोधार्य कर कुबेर वहाँ पहुँचा। उसी दिनसे प्रारम्भकर वह यक्षाधिप प्रभुके निवासमें पाँच प्रकारके श्रेष्ठ रत्नोंकी वर्षा करने लगा। इसी समय वामादेवीका गृह नाना प्रकारके मणि और रत्नों द्वारा प्रकाशित हो शोभा पाने लगा। तत्काल ही इन्द्रके आदेशसे सोलह अप्सराएँ वहाँ आई। श्री, ही, धृति आदि जो सुन्दर लहलहाते यौवनवाली और शशिमुखी थीं वे जहाँ वामा देवी थीं वहाँ अपने-अपने कार्यको निश्चित कर उसमें स्थिर हो गई।
जिनकी देह आभरणोंसे विभूषित थी, जिन्होंने साज-शृङ्गार किया था, जिनके नयन नीलकमलके समान और मुख रक्तकमलके समान थे ऐसी देवियाँ इन्द्रकी आज्ञासे मनुष्यके वेषमें रहती थीं ॥४॥
देवियों द्वारा किये गये कार्य । ___ कोई अत्यन्त सुगन्धित, मनोहर और आकर्षक वस्त्र अर्पण करती थी। कोई उत्तम उबटनका प्रबन्ध करती थी । कोई पवित्र चन्दन लाती थी। कोई आहारकी साज-सम्हाल करती थी। कोई हाथोंमें लेकर कुसुमोंको समर्पित करती थी। कोई नित्य स्नान और उबटनकी व्यवस्था करती थी। कोई निर्भीक पान लाकर देती थी। कोई विविध हावभावसे नृत्य करती थी। कोई अच्छे स्वरमें अनुराग पूर्वक गाती थी। कोई रसोंकी विशेषताकी अभिव्यक्ति करती थी। कोई घर और आँगनको सजाती थी। कोई उत्तम काव्य-प्रबन्धको पढ़ती थी और कोई जिनेन्द्रकी कथाओंको कहती थी। इस प्रकार जब छह माहकी अवधि व्यतीत हुई तब इस प्रकारकी घटना घटी।
_ ( वामाने ) शुभ तिथि, ग्रह और नक्षत्रमें, पावन, पुनीत, प्रशस्त और शुभ वेलामें रात्रिके चौथे प्रहरमें जिस प्रकार वर्णित है वैसी उत्कृष्ट स्वप्न परम्परा देखी ॥५॥
वामादेवीके सोलह स्वप्न सैंड ऊपर उठाये हुए, शरदकालीन मेघके समान विशालकाय हाथी अपनी ओर मुँह किए हुए देखा। प्रतिध्वनिसे पृथ्वीको मुखरित करनेवाला धवल वृषभ अपने मुँहमें प्रविष्ट होते हुए देखा। सघन अयालवाला, तेजस्वी, नखोंके कारण भयंकर तथा विशाल मुँहवाला सिंह देखा । आभरणोंसे भूषित, धवलवस्त्रधारिणी तथा कमलपर विराजमान लक्ष्मीको देखा। नाना प्रकारके फूलोंसे गूंथा गया तथा विविध प्रकारकी सुगन्ध देनेवाला माला-समूह देखा। सोलह कलाओंसे परिपूर्ण और निष्कलंक चन्द्रमा स्वप्नमें देखा। अन्धकारका नाश करनेवाला तथा सकल भुवनको प्रतिबोधित करनेवाला सूर्य स्वप्नमें देखा। मन और पवनके समान चपल तथा जलमें क्रीडा करता हुआ मीनयुगल उस परमेश्वरीने देखा । कांचन-तरुसे भूषित एवं जलसे भरे हुए पवित्र कुंभ देखे । कोमल पँखुडीवाला, मनोहर एवं पानी में डूबा हुआ हेमवर्णका कमल-समूह देखा।
सागर, श्रेष्ठ सिंहासन, अन्धकारका नाश करनेवाला पूज्य देव-विमान, धरणेन्द्र का भवन, और धूमरहित अग्निको स्वप्नमें देखा ॥६॥
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