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दशवों सन्धि अपनी सेनाको तथा देवों, असुरों और महीतल ( निवासियों ) को आनन्द देते हुए राजा हयसेनका पुत्र ( पार्श्वनाथ) शत्रुका सामना करने चला।
पार्श्वका स्वतः युद्ध में जानेका प्रस्ताव जब राजा हयसेन सब सामन्तोंके साथ जाने लगे तब यह समाचार जगत्के स्वामीने सुना । लक्ष्मीके निवासस्थान वे देवकुमारोंके साथ अपने पिता हयसेनके पास आये। उन सुभट और धुरन्धर तीर्थकरने हँसकर हयसेनसे कहा- "हे तात, आप वापिस जाइए और विस्तृत राज्य सम्हालिए । मैं संग्राममें जाऊँगा और आपका कार्य करूँगा । मैं आपकी प्रतिज्ञाको पूरी करूँगा और हे आर्य, आज ही सब शत्रओंका संहार करूँगा: युद्धमें यवन राजको योद्धाओंके साथ बन्दी बनाऊँगा तथा रविकीर्तिको अविचल राज्य , उत्तम पुरों और मण्डलोंको वशमें करूँगा तथा चन्द्रबिम्बपर आपका नाम लिखवाऊँगा और पुरों, ग्रामों, देशों, पट्टनों, नगर समूहों ( इस प्रकार ) पूरी पृथिवीपर आपका अधिकार कराऊँगा । हे तात, जो आपकी आज्ञाका उल्लंघन करेगा मैं युद्ध भूमिमें उसका दमन करूँगा, (तब फिर ) आप क्यों जाते हैं ?"
"हे तात, मुझ जैसे आपके सुपुत्रके होते हुए भी यदि आप स्वयं रणमें जायें तो इस लोकमें तथा परलोकमें मेरी बडी हँसी होगी" ॥१॥
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पार्श्वको समझानेका हयसेनका प्रयत्न पुत्रके युक्तियुक्त वचन सुनकर हयसेनने उसका आलिंगन किया और कहा- "हे पुत्र, तुम अभी बालक ही हो। यह (तुम्हारा ) कौन-सा समय है, ( तथा ) युद्धका कौन-सा काल होता है ? जिनके बाल कानों तक सफेद हो गये हैं. संग्राममें जो धीर हैं तथा तलवार और भाले ( के घावों) के निशान जिनके शरीरपर अंकित हैं, वे पुरुष भी संग्राममें भौंचक्के हो जाते हैं, फिर जो अभी अबोध बालक है उसकी क्या बात ? हे पुत्र, तुमने युद्ध अभी तक देखा नहीं, तुम अभी हमारी चिन्ता क्यों करते हो ? हे पुत्र, हमारे अनेक पुण्यों और मनोरथोंसे तुम उत्पन्न हुए हो, मैं तुम्हें युद्ध में कैसे भेजें ? मेरा कल्याण तो स्वयं जानेसे ही होगा । वैरियोंको जीतकर जबतक मैं वापिस आऊँ तब तक हे पुत्र, तुम घरमें ही सुखसे रहो।"
"शिश तथा बालकका लालन-पालन करना यह पिताका कर्तव्य है। इसके विपरीत, वृद्धावस्थामें पिताकी सेवासुश्रूषा करना पुत्रका धर्म है" ॥२॥
पार्श्व द्वारा अपने प्रस्तावका समर्थन; युद्धके लिए हयसेनकी अनुमति पिताके वचन सुनकर सरलतासे न माननेवाले कुमारने रूठकर कहा- "क्या बालकका पौरुष और यश नहीं होता ? क्या बालकको मारनेसे उसके ( शरीरसे ) रुधिर नहीं आता ? क्या बालक रण-पताका धारण नहीं करता ? क्या बालकके सामने रणमें शत्र नहीं आता ? क्या बाल-अग्नि दहन नहीं करती ? क्या बालकके द्वारा रणमें शत्रुका नाश नहीं होता ? क्या बाल-सर्प जनोंको नहीं काटता ? क्या बाल-भानु अन्धकारका नाश नहीं करता ? क्या बाल-मृगाधिप गर्जन नहीं करता ? हे तात, आप
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