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११, १० ]
अनुवाद
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यवनराजके नौ पुत्रोंका रविकीर्तिसे युद्ध जब संग्राममें उन पाँच योद्धाओंका संहार हुआ तो उसे सहन न कर भीमरूप और दुर्दम सुभटों, श्रेष्ठ वीरों तथा सैकड़ों सामन्तोंसे घिरे हुए यवनके नौ पुत्र मन और पवनकी गतिसे उसी क्षण दौड़कर आगे बढ़े।
विशाल रथोंपर आरूढ़, शत्रु सेनाका नाश करनेमें समर्थ वे ऐसे प्रतीत हुए मानो नौ ग्रह धनुष हाथमें लेकर आकाशसे अवतीर्ण हुए हों।
उसी समय उस युद्ध-क्षेत्रमें भानुकीर्ति यवनकुमारोंके समूहसे वैसे ही घेर लिया गया जैसे वनमें सिंह पर्वतके समान ( विशाल ) हाथियोंसे घेर लिया जाता है ।
प्रहार करते हए तथा हँसते हए उन कमारोंने राजासे कहा-"ह राजपुत्र, तुम विशाल सम्पत्तिके समह उस कान्यकुब्ज नगरमें किसी उपाध्यायके पास अथवा गुरुके समीप (रहकर) लोकमें पूज्य एवं प्रसिद्ध धनुर्विद्याको कुछ सीखकर ( उसे ऐसे ) महान् तथा असाध्य युद्ध में प्रकट करो।" उनकी व्यंगात्मक भाषाको सुनकर वह राजा घृतसे अवसिक्त अग्निके समान प्रज्वलित हो उठा । विशाल स्कंधवाला, सिंहके समान प्रतिकूल, रथपर आरूढ़, यमके समान योद्धा, वैरियों के लिए काँटा, त्रिलोकभरमें अधिक बलशाली, दुस्सह भट, रणमें दत्तचित्त, अभिमानका महान् स्तम्भ तथा ( शत्रु ) सैनिकोंका संहारक वह ( भानुकीर्ति) रणमें तेजयुक्त धनुषको ग्रहणकर (बाण चलाने लगा।)
उस महायुद्धमें रविकीर्ति नरेन्द्रने अनेक दुस्सह बाण छोड़े तथा दर्पसे उद्भट, उन नौ कुशल सुभटोंके सिरोंको पृथिवीपर ( काट ) गिराया ॥९॥
श्रीनिवासका रविकीर्तिसे युद्ध ( यवनराजकी ) सेनामें कलरव हुआ, सामन्त क्षुभित हुए, हलचल मच गई तथा यवनराजके हृदयपर चोट पहुँची। इसी समय रथको बढ़ाकर मलयनाथ स्वयं आगे बढ़ा। - वह नृप कठोर बाणोंसे हृदयमें आहत हो तथा वेदना पाता हुआ गजेन्द्रके समान पृथिवीपर गिरा ।
जब बाणोंसे बेधकर वह दुस्सह और भयावह मलयनाथ गिराया गया तब जयकार करता हुआ यवनके युद्धोंका अन्त करनेवाला श्रीनिवास उठा।
वे दोनों अभिमानी महारथी एक दूसरेसे असुर और इन्द्रके समान, उत्तर और दक्षिण दिग्गजोंके समान, सह्य और विन्ध्य पर्वतोंके समान, विषधारी तथा दुस्सह नागराजोंके समान (या) भयानक और तेजस्वी सिंहोंके समान जूझ गये। धनुषकी टंकार देकर श्रीनिवास आशापूर्वक बाण छोड़ने लगा। वज्र और अग्निके समान दुस्सह बाणोंसे वीर रविकीर्ति आच्छादित हो गया। फिर उसने हँसकर बाणसे धनुषको काट दिया तथा वक्षस्थलको सैकड़ों बाणोंसे भेद दिया और प्रचण्ड मुन्दर मारकर रथके टकडे-टकडे कर उसे पीस डाला । वैरी-सेनामें कल-कल ध्वनि हुई तथा स्वतःकी सेनामें हाहाकार हुआ। तब विषादरहित. महाबलशाली तथा यशस्वी भानुकीर्ति दूसरे रथपर बैठा और संग्राममें ही श्रीनिवाससे यह कहा कि तू ही एक सुभट कुलको अत्यन्त प्रकाशित करनेवाला है। तूने अपने माता-पिताके वंशोंको उज्ज्वल किया है । मैं पृथिवीपर तेरा ही निवास अत्यन्त सफल मानता हूँ । जो तूने मेरे ध्वज, छत्र और चिह्नको काट गिराया है अतः तेरे समान त्रिभुवनमें दूसरा कौन है ?
यह कहकर उस नराधिपने बाणोंके प्रहारसे शत्रुको आहत किया। वह रणमें व्याकुल हो रथके साथ पृथिवीपर गिरा और मूर्छित हो गया ॥१०॥
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