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पार्श्वनाथचरित
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वह नराधिप प्रलयकालकी अग्नि के समान समस्त रिपुरूपी वृक्षोंका दहन करता हुआ रणमें कूर्मके समान अपनी रक्षा करता हुआ तथा मनमें अभिमान लिये हुए विचरण करने लगा ||६||
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रविकीर्तिकारण-कौशल
कुठार, सव्वल, सेल्ल, असि, बरछी, चक्र, शूल, शक्ति, प्रचंड मुद्गर, झस, कनक, शर, तोमर, अर्धेन्दु, गदा, चित्रदण्ड आदि आयुधों प्रहारोंसे कुशस्थली नगरका मुकुटधारी स्वामी अपने महान् शत्रुओंके उज्ज्वल शिरोंपर चोट करने लगा । इससे रण भीषण हो उठा ।
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अनेक प्रकारके चमकते हुए असंख्य बाणोंसे रणभूमि उसी तरह आच्छादित हो गई जैसे वर्षाकालमें काले और भयंकर मेघोंसे नभतल छा जाता है ।
भानुकीर्ति वैरियोंको, अपने मनमें तृण-तुल्य मानता हुआ नभमें बाण चलाता था । वह कान तक खींचे गये, दुस्सह और सरलता से दिखाई न देनेवाले बाणों को हजारों और लाखोंकी संख्या में छोड़ने लगा । वज्रदण्डके समान प्रज्वलित वे लोहा-युक्त और कठोर बाण शत्रुओं की देह में प्रवेश करते थे | आग्नेय, वारुण और वायव्य बाण आकाशसे उल्का के समान गिरते थे । ( उसने ) वावल्ल और भालोंसे ध्वजाओंको आकाशमें नष्ट किया तथा अर्धेन्दु बाणोंसे उत्तम खड्गों को काटा । महीतलपर गिराये ये श्वेत छत्र ऐसे प्रतीत होते थे मानो धवल फेनपुंज चमक रहा हो । बाणोंकी बौछारसे योद्धा मारे गये जैसे वनमें सिंहों द्वारा गजेन्द्र मारे जाते हैं । रथिकोंके सहित ही रथ दसों दिशाओं में विलीन हुए; परास्त हुए गजों के समूह और अश्व भाग खड़े हुए तथा सामन्त और योद्धा शरोंके प्रहारोंसे त्रस्त हो संग्रामको छोड़ क्षणमें ही ( अपने-अपने ) घरों में जा घुसे ।
शक्रवर्मा नृपके पुत्रने संग्राम - भूमिपर अपने दोनों बाहुओंको फैलाकर एक मनसे अकेले ही पूरी शत्रु सेनाको परास्त किया ||७||
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यवनराजके पाँच वीरोंका रविकीर्ति से युद्ध
उसी समय दुन्दुभि बजाई गई, जयकारकी ध्वनि हुई, ( रविकीर्तिके) मस्तकपर श्रद्धा से कुसुम बरसाये गये तथा सब देवोंने विजयी घोषणा की। युद्धके बीच में ही रविकीर्तिकी सेनामें योद्धाओंने सन्तोषपूर्वक तूर्य बजाये ।
वैरियोंकी, अश्वों, गजों और रथोंसे युक्त समस्त सेनाको जीतकर वह नृप युद्ध भूमिमें शत्रुओं का मार्ग रूँधकर
खड़ा रहा ।
सब कायर योद्धा रविकीर्तिके बाणोंसे संग्राम भूमिमें ध्वस्त हुए जिस प्रकारसे कि मंत्र, सुतंत्र तथा योगके बलसे युक्त ( व्यक्तियों ) द्वारा विद्यासे निशाकर ध्वस्त किये जाते हैं ।
वैरियोंके लिए मृगेन्द्ररूप, समर-सागर में शस्त्रोंसे भयंकर नृपोंको त्राण रहित हो भागते हुए देखकर कल्याणमाल, विजयपाल, एक अन्य (वीर ), गुर्जर और तडक ये पाँच वीर जो रणमें धीर, अभिमान के स्तम्भ और श्रेष्ठ योद्धाओं के विजेता थे, यवनको प्रणाम कर तथा आज्ञा लेकर अश्वों, गजों तथा योद्धाओंके सहित एवं मनमें क्रोधित होते हुए उसी समय दौड़कर आगे आये । रथोंपर आरूढ़ उन पाँचों पुरुषोंके द्वारा रविकीर्ति घेर लिया गया मानो घनोंके द्वारा पर्वत घेरा गया हो। वे अग्निके समान ( तेज ) बाण चलाने लगे । रविकीर्तिने नभमें सर्-सर् करते हुए चलते बाणोंको तृणके समान समझकर अनायास हँसते हुए शीघ्र ही काट गिराया । फिर उसी क्षण निश्चित मनसे अपने असंख्य बाण चलाकर ध्वज तथा छत्र काटा एवं रथ और अश्वोंको बेध डाला ( तथा ) -
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युद्धमें अनेक प्रकारके बाणोंके द्वारा उन श्रेष्ठ पुरुषों को पृथिवीपर गिराया मानो गगनमें अनेक और बड़े-बड़े इन्द्रों द्वारा श्रेष्ठ सुर मारे गये हों ॥ ८ ॥
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