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पार्श्वनाथचरित
[११, ३हाथोंसे ग्रहण करते और कोई योद्धा हाथियोंके दो टुकड़े करते थे। (वे हाथी ) रुधिरकी धाराके साथ ही पृथिवीपर आ गिरते थे।
श्रेष्ठ सुभटों और नरेन्द्रोंके प्रहारके कारण निकले हुए रुधिर प्रवाहसे धूलि-पटलका शमन हुआ। तदनन्तर गजोंकी मदधारासे संग्राम भूमिपर उसका अन्त हुआ ॥२॥
युद्धकी भीषणताका वर्णन धूलि पटलके नाश होनेपर और आकाशके सभी ओर स्वच्छ हो जानेपर सुभटोंकी दृष्टि अत्यन्त निर्मल हुई। तब उन्होंने गज, अश्व, रथ, छत्र, चिह्न तथा श्रेष्ठ और तेजस्वी पुरुषोंको पहिचाना ।
कोई भट अभिमानसे, पौरुषके कारण या लज्जासे युद्ध करते थे और अन्य कोई योद्धा स्वामीके प्रसादसे रणमें प्राणोंको त्यागते थे।
घोड़ोंसे घोड़े और हाथियोंसे हाथी टकराये । रथ रथोंकी ओर बढ़े तथा पैदलोंने आवेशपूर्वक और उत्साहसे छलछलाते हुए पैदलोंपर धावा बोला।
झस, परशु, मुसंढि, अर्धेन्दु बाण, चक्र और तलवारसे आहत; बी, वावल्ल तथा भालेसे छेदे गये तथा त्रिशूलसे बेधे गये ( योधा ) युद्धके समय पृथिवीतलपर आ गिरे। सेल्लके प्रहारसे डरावने, भीषण और विशाल-काय ( वीर ) शोणितसे लथपथ हुए। (कुछ काल बाद ) वे पुनः युद्ध करने लगे मानो उन्हें चेतना प्राप्त हो गई हो। वे पीडापर ध्यान नहीं देते थे। महान् अस्त्रको घुमाकर उन्होंने अश्वों और राजाओंके वक्षस्थलपर आघात किया। उन आघातोंके कारण रथ रथीरहित हुए । सुन्दर और द्रुतगामी आहत गज लटकती हुई आँतों सहित संग्राम भूमिमें भागते-फिरते थे।
यशसे धवल, हृदयसे विरोधी तथा आपसमें जयश्रीके लोभी ( वीरों ) का युद्ध अनेक सुभटोंका नाश करनेवाला तथा भयंकर हो गया ॥३॥
रविकीर्ति के साथी राजाओं द्वारा युद्ध-प्रारम्भ दोनों शिविरोंके धवलोज्ज्वल तथा विमल-कुलोत्पन्न योद्धा राजलक्ष्मीको अपने हृदयमें स्थापित कर स्वामीके कार्यके लिए मरनेका ही निश्चय कर एक दूसरेके मरणकी चाह करते थे।
संग्रामके आवेशसे पूर्ण शत्रुके भटों द्वारा रविकीर्तिकी सेना तितर-बितरकर दी गई । वह पौरुष, अभिमान और यशको त्यागकर नगरकी ओर भागी।
( अपनी ) सेनाको यवनराजके योद्धाओं द्वारा आक्रान्त हुई देखकर रविकीर्तिकी सेनाके श्रेष्ठ योद्धा घातक प्रहारोंसे शत्रुका नाश करते हुए आगे बढ़े।
रणमें अपने भटोंको अभय देते हुए, गजोंके समूहपर बाणोंकी बौछार करते हुए वे नरश्रेष्ठ चारों ओरसे इस प्रकार टूटे जैसे सिंह हाथीके ऊपर टूटता है। रणमें धीर-वीर, जालन्धर, खस, हिमप्रदेशीय, कीर, मालव, टक्क तथा नेपाली सैनिक, जो कि शत्रके लिए यमतुल्य थे, सैंधव और पांचाल आदि महान् योद्धा अपने जीवनकी आशाको त्यागकर निर्भीकतासे प्रहार करते
और ( जयकी ) आशा करते थे। कोई भट बालोंको लोंचता हुआ रिक्त-आसन अश्व, गज या रथपर चढ़ता था। कोई भट रण-चातुरी प्रदर्शितकर दूसरेकी तलवार बलपूर्वक छीनता था । कोई भट दूसरे शस्त्ररहित भटको अपना शस्त्र पौरुषपूर्वक देता था
और फिर यह कहता था कि मित्र, प्रहार करो और अपनी कीर्तिसे समचे शिविरको अलंकृत करो। कोई भट अपने कराग्रसे आघातकर किसीकी थरहराती हुई दंतपंक्तिको गिराता था।
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