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ग्यारहवीं सन्धि भुजबली पार्श्व नरेन्द्रने हय, गज तथा रथोंसे समृद्ध तथा दर्पोद्धत महाभटको युद्ध-भूमिमें जीतकर बन्दी बनाया ।
रविकीर्तिकी सेनाकी साज-सज्जा सब श्रेष्ठ नर मिलकर चले जिससे परितुष्ट होकर सब हर्षित हुए किन्तु शत्रुकी सेना में भयका संचार हुआ। श्रेष्ठ सुभटोंका मान खण्डित करते हुए भानुकीति संग्राम-भूमिमें पहुँचा ।
विशाल रथपर सवार हो तथा भटोंको साथ ले, युद्धके लिए सुसज्जित एवं वैरियोंके लिए सिंहरूप वह नरेन्द्र ( भानुकीर्ति ) शत्रु-सेनाके सम्मुख आया।
उस समय वहाँ युद्धके समय रणके आवेगको तीव्र करनेवाले, मनोहर और आकर्षक तूर्य दशों दिशाओंमें बज उठे। उन ( तूयौँ ) ने श्रेष्ठ पुरुषोंके मानको चूर-चूर किया ।
तूर्यकी ध्वनि सुनकर दर्पोद्धत महाभट शस्त्र लेकर ( रणभूमि में ) आ खड़े हुए। कोई सुभट तलवार और भाला लिये थे तथा स्वर्णाभूषणों और वस्त्रोंसे विभूषित थे । कोई सुभट गदारूपी शस्त्रसे सुसज्जित होकर शत्रुसे पहुँचे । कोई सुभट ओंठको ( दाँतसे ) काटनेके कारण भयंकर तथा रवि, शनि और मंगल ( के योग ) जैसे नाशकारी थे । कोई सुभट शत्रुदलके लिए वडवाग्नि (तुल्य ) थे। कोई सव्वल, शक्ति, परशु, सेल्ल आदि शस्त्रास्त्र लिये थे। कोई सुभट आवेशसे ऐसे दौड़ रहे थे मानो वे सिंह हो जिन्होंने पिंजरेको तोड़ डाला हो। इस प्रकारके एवं एक दूसरेपर क्रोधित और यशके लोभी सुभट महासंग्राममें जूझ पड़े।
शत्रुसेनाका दमन करनेमें समर्थ रविकीर्ति नरेन्द्रकी सेना विविध शस्त्रोंसे सुसज्जित थी तथा अनेक प्रकारके आयुधोंको धारण किये थी ॥१॥
दोनों सेनाओंमें मुठभेड़ यवनराजके सुभटोंने कवच धारण किये; रथोंमें विविध अश्व जोते गये, विशाल और बलवान् गज सज्जित किये गये तथा नाना प्रकारके मन और पवनके समान वेगवान् , चपल और श्रेष्ठ अश्व तैयार किये गये।
__ अश्वोंने अश्वोंपर छापा मारा, गजोंसे गज भिड़े, रथोंने रथोंपर आक्रमण किया तथा सैनिकोंसे सैनिक जूझने लगे।
यशके इच्छुक, तीक्ष्ण बाण, तलवार, चक्र आदि आयुधोंसे सज्जित, रथ, गज और अश्वोंपर सवार नरश्रेष्ठ आवेशपूर्ण हो संग्राम-भूमिमें जूझने लगे।
___ जब दोनों सेनाएँ एक दूसरेसे भिड़ी तब आकाशमें धूलिका बादल उठा। अश्वों और गजोंके (पैरोंके ) कोटियों प्रहारोंसे आहत धूल अचिन्त्य रूपसे ऋणके समान बढ़ने लगी । वह ध्वज, छत्र और चिह्नपर बैठती हुई तथा दशों दिशाओंमें हर्षसे उड़ती हुई आकाशमें पहुँची और देवोंके समान अवलोकन करने लगी, अथवा जो स्वच्छन्द है वह क्या नहीं कर सकता ? जिस प्रकार कुपुत्रसे दोनों वंश मलीन होते हैं उसी तरह धूली-समूहसे सभी कुछ मलिन हुआ। सैन्यका विस्तार कहीं भी नहीं दिखाई देता था तो भी शर-योद्धा प्रहार करते थे। कोई योद्धा गजके कुम्भस्थलपर प्रहारकर रुधिरसे आरक्त मोतियोंको
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