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१०,४] अनुवाद
[ ५५ अकेले ही मुझे बालक कहते हैं। दूसरों ( के मुँह ) से यह शब्द नहीं निकलता । यदि मैं मन ( में निश्चय ) करूँ तो देवों और असुरोंपर भी विजय पा सकता हूँ, फिर बेचारे मनुष्यकी तो गिनती ही क्या ? अथवा युद्धसे दूर रहकर मेरे द्वारा गर्जना करनेसे क्या लाभ ?"
"हे राजन् , युद्ध करते हुए मेरे यश, पौरुष, विक्रम, कुल, बल, मान आदि सबको आप कल ही सुनेंगे" ॥३॥
पार्श्वका युद्धके लिए प्रस्थान पुत्रका अचिन्त्य बल, यश, पौरुष, कुलीनता तथा महान् कुलको दृष्टिमें रखकर हयसेन नृपने परिजनोंके साथ पाश्वनाथको शिबिरमें भेजा। उत्तम मुकुटधारी तीन सौ श्रेष्ठ पुरुष और नृप (साथमें ) तैयार हुए। उनसे परिवेष्टित तीर्थकर प्रस्थान किया। मानो देवों और असुरोंके समूहके साथ इन्द्र जा रहा हो। उनके साथ इक्कीस सहस्र उत्तम गज, उतनी ही संख्यामें उत्तम रथ, कुल मिलाकर दो लाख श्रेष्ठ सैनिक तथा चौंसठ सहस्र अश्व थे। शत्रुके दुर्दमनीय भटोंको वशमें लानेवाली उस पूरी सेनाकी यही संख्या थी । वहाँ रिपुका दमन करनेवाले तथा सिंह जुते हुए एक सौ रथ ( भी) थे।
मित्रों, स्वजनों, बान्धवों, हाथियों, घोड़ों और आकर्षक रथों तथा सब सैनिकोंसे घिरा हुआ राजकुमार रणभूमिके लिए चला ॥४॥
मार्गमें हुए शुभ शकुनोंका वर्णन चलते हुए उसे सामने ( शुभ ) शकुन दिखाई दिये—गज, वृषभ, सिंह और कोकिलकी कूक, कपोत, सारस और हंसका स्वर, स्वर्ण, रत्न तथा कमलपत्र, सरसों, गोरोचन, दूर्वा, पानी तथा तिल, ईख, शालि, यज्ञस्थ पुरुष, श्री खण्ड, धरणीफल, विविध शस्य, शुभ्र वस्त्र, केश, देवों द्वारा पुष्प वृष्टि, गोमय, प्रियंगु, भृङ्गार, कुम्भ, प्रज्वलित अग्नि, रत्न स्तम्भ, आलापनी, काहल, वंश, तूर्य, हय, गज तथा छत्र प्रभुके सामने ( दृष्टिगोचर हुए)। गन्धोदक, कुसुम, स्नान, पूजा, मोती, प्रवाल, प्रशस्त गुंज, पढ़ते हुए तथा हाथमें फूल लिये हुए ब्राह्मण, तन्दुल, कुमारियाँ, आभूषण और वस्त्र आदि शकुन जिस व्यक्तिको होते हैं वह हृदयेच्छित फल पाता है।
ये सब शकुन राह चलते हुए मनुष्यको जो फल देते हैं दिन, नक्षत्र, ग्रह, योग, सूर्य या चन्द्रका बल वह फल नहीं देता ॥५॥
भटोंकी शस्त्र-सज्जाका वर्णन शस्त्रधारी, रोमाञ्चित देह तथा कुपित योद्धा आवेग पूर्वक दौड़े। किसीका शस्त्र भयानक त्रिशूल है तो किसीका शर, तोमर या अर्धचन्द्र (बाण)। कोई बावल्ल, भाला या बऱ्या हाथमें लिये है तो कोई तलवारको यमके समान हाथमें धारण किये है। किसीके हाथमें रेवंगि या चित्रदण्ड है, तो किसीने प्रचण्ड मुद्गर हाथमें ग्रहण किया है । किसीने खुरुप्प या मुद्गररूपी प्रहरण (धारण किया है) तो किसीने घन, पट्टिस, सव्वल या धनुष । किसीका अस्त्र भयंकर प्रज्वलित शक्ति है जो कालरात्रिके समान दिखाई देती है। कोई निःशंक भट हाथमें असिपुत्रि ( कटार ) लिये है तो कोई अपने करतलसे चक्रको घुमा-फिरा रहा है। किसीके हाथमें नाराच या कनक ( अस्त्र ) है तो कोई समर्थ और श्रेष्ठ नर मुँह तिरछा किये हुए है।
___ समस्त प्रतापशाली कार्यक्षम नरवरोंने अपने स्वामीके कार्यके लिए नाना प्रकारके भारी एवं भयंकर प्रहरण धारण किये ॥६॥
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