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अनुवाद
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वामादेवी द्वारा वाद्य-ध्वनिका श्रवण जब हयसेन नृपके भवनमें शय्यागृहमें विश्राम करती हुई वामा देवी स्वप्नावली देख रही थी तब प्रभातके समय लाखों ही नहीं असंख्य तूर्य बज उठे। महानन्दी, नन्दिघोष तथा सुघोषकी झन् झन् टन टन् करती हुई उत्तम ध्वनि उत्कृष्ट थी, अत्यन्त सुन्दर थी, आकर्षक थी, प्रशस्त थी, महान् थी, गम्भीर थी और साथ ही भीषण भी थी। टट्टरी धीरेसे बजाई गई। मद्दल, ताल तथा कंसालका घोर कोलाहल हुआ। ताबिल, काहल, मेरी, भम्भेरी और भम्भाकी ध्वनि हुई। वीणा, वंश, मृदंग तथा उत्तम स्वरवाले शंखोंका शब्द हुआ। हुडुक्का और हाथसे बजाई जानेवाली झालरकी ध्वनि हुई । साथ ही नू पुर भी वज उठा।
अनेक प्रकारके तूर्योकी विशिष्ट और मांगलिक ध्वनिसे ईश्वरको गर्भमें धारण करनेवाली, उत्तम सौभाग्यवती, परमेश्वरी वामादेवी जागीं और फिर सिंहासनपर बैठीं ।।७।।
वामादेवी द्वारा हयसेनसे स्वप्नोंकी चर्चा स्नान और वंदनविधिसे निवृत्त हो (वामादेवीने ) अनेक स्तोत्रोंसे भगवानकी स्तुति की। फिर ताम्बूल, वस्त्र और आभरणोंको ग्रहणकर तथा याचक समूहको दान देकर वह वहाँ गई जहाँ हयसेन राजा थे। पहिले ( अपने ) आगमनकी सूचना देकर फिर वह परिजनोंके साथ प्रविष्ट हुई और आसनपर बैठी। अवसर देखकर उसने राजासे कहा-“हे प्रभु, हम कुछ कहना चाहते हैं आप उसे एकाग्रचित्त होकर सुनिए। मैंने आज सोलह स्वप्न देखे हैं। उसी समयसे मैं अत्यन्त सन्तुष्ट एवं प्रसन्न हूँ। मैंने स्वप्नमें हाथी, वृषभ, सिंह, लक्ष्मी, माला, चन्द्रमा, सूर्य, मीनयुगल, कुम्भ, कमल, सागर, सिंहासन, देव विमान, नागालय, रत्न और अग्निको देखा है।"
"हे परमेश्वर, आज मैंने रात्रिके उत्तर प्रहरमें कलिकालके पापोंका नाश करनेवाले, भुवनमें महान् और सुप्रशस्त ये स्वप्न देखे हैं । हे नरेश्वर, आप उनका फल बताइए" ॥८॥
स्वप्नोंके फलपर प्रकाश ___ उन वचनोंको सुनकर राजा सन्तुष्ट हुए और कहा-"देवि, ( इन ) सबका फल सुनो। तुम्हें ऐसे पुत्रकी प्राप्ति होगी जो त्रैलोक्यका उद्धार करनेमें समर्थ होगा। गजसे यह जानो कि वह गजके समान गतिवाला होगा । बैलसे, वह जगमें प्रधान और धुरन्धर होगा । सिंहसे वह शूर और धवल कीर्तिवाला, श्रीके दर्शनसे सुखका भण्डार, श्वेत पुष्पमालसे शुभ दर्शनवाला
और भुवनमें पूज्य, चन्द्रसे कान्ति और लावण्यका पुंज, सूर्यसे त्रिभुवनको प्रतिबोधित करनेवाला और मीनसे आकर्षक और सुन्दर होगा । कुम्भसे सब जनोंका प्रेम-पात्र और कमल समूहसे पापरहित होगा। सागरसे धीर और गम्भीर, सिंहासनसे शैलपर अभिषेक करानेवाला, देवविमानसे शुभचरित्र और स्वर्गसे च्युत होनेवाला होगा।
नागालयके देखनेसे तुम्हारा पुत्र इन्द्रके समान सुन्दर होगा । मणि और रत्नोंसे औरोंके लिए दुष्पाप्य तथा प्रिय और अग्निके कारण प्रखर तेज धारण करनेवाला होगा ॥९॥
कनकप्रभका स्वर्गसे च्युत होकर गर्भमें अवतरण ___स्वप्नावलीका पूरा फल सुनकर वामादेवी अत्यन्त सन्तुष्ट हुई। उसी समय कनकप्रभ देव वैजयन्त स्वर्गमें देवोंके साथ क्रीडाकर तथा अनेक सुख भोगकर वहाँसे च्युत हुआ । अनेक सुकृत कर्म करनेवाला, प्रखर तेजका धारक, बोधि प्राप्त एवं
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