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३२] पार्श्वनाथचरित
[६,६___ सब राजाओं तथा सुरोंको आनन्द पहुँचाता हुआ और सबका सम्मान करता हुआ पृथ्वीका स्वामी वह सम्राट अपने महलों में पहुँचा ॥५॥
कनकप्रभ द्वारा अधिकारियोंकी नियुक्ति वह पृथ्वीपर एकच्छत्र राज्यका उपभोग करता था, पुरों और नगरोंका पालन करता था, अन्याय करते हुए वैरियोंका नाश करता था तथा आगम और नयका ध्यान रखता था ।
उसी समय राजाने धर्माधिकरणपर विनयशील और बुद्धिमान व्यक्तियों को नियुक्त किया। शास्त्रमें दक्ष भक्तिमान और अत्यन्त महान् चार मन्त्रि नियुक्त किये। यशका इच्छुक, उत्तम दृढ़ शरीरवाला तथा युद्ध में सधीर एक सेनापति नियुक्त किया । जानकार, उद्यमी और बलिष्ठको राजाने कोट्टपाल बनाया । जो व्यक्ति वृद्ध थे, स्थिर (चित्त) थे, अलोभी थे और कुलसे शद्ध थे उन्हें स्थविर पदपर स्थापित किया। शास्त्रमें दक्ष और मर्मको जाननेवालेको उस विद्वान् राजाने निपुण-कर्ममें लगाया। पूरे ज्योतिष ( शास्त्र ) का जिसने अध्ययन किया था ऐसे ज्योतिषीको ग्रहविचारक बनाया। आगम पुराण और अनेक काव्योंके अध्येता तथा उत्तम गायकको पुस्तक-पाठक नियुक्त किया । दृढ़, शठताहीन, बुद्धिमान् और कुलोत्पन्न व्यक्तिको राजभवनमें दूत बनाकर रखा।
राजाने खान, पान, रस, भोजनकी समस्त ज्ञातव्य विधिको जाननेवाले तथा वंशपरम्परागत एवं गुणोंके भण्डारको रसोइया नियुक्त किया ॥६॥
कनकप्रभ द्वारा नौकर-चाकरोंकी नियुक्ति छंद, प्रमाण, देशी (भाषा), व्याकरण, आगम और नयको जाननेवाला, पुरुषोंमें प्रधान तथा धवलवस्त्रधारी सेवक राजगृहमें शोभा पाता था।
दया, धर्म, सत्य तथा अध्ययनसे युक्त और शुद्ध चित्तवाले (व्यक्ति) को पुरोहित पदपर प्रतिष्ठित किया । दृढ़, दक्ष, कोमल ( वाणी वाले) तथा दण्ड धारण करनेवालेको सिंहद्वारपर प्रतिहारी बनाया । शासन और गणित ( के जानकार), पत्र लिखने में कुशल, अच्छे अक्षरवाले लेखनीके धारकोको उसने लेखक नियुक्त किया । उत्तम कुल और गोत्रमें उत्पन्न, पवित्री स्नेही और न्यायोपार्जित धन रखनेवालेको भण्डारी बनाया । उद्यमी, अनालसी, स्वामीभक्त और विश्वासयुक्त (व्यक्ति ) को पानी लानेवाला बनाया । अनासक्त, अनुद्धत और कालका ध्यान जिसे रहता हो । ऐसे व्यक्तिको राजाने शय्यापाल नियुक्त किया। भय और मदसे विमुक्त और वैरियोंका नाश करनेवाला खड्गधारी वह निकट ही रखता था। अवगुण और प्रमादसे वर्जित, ज्ञानी तथा अलोभी नरको उसने दूध देनेवाला बनाया। मणियों रत्नों और सोनेकी विशेषता जाननेवाला पारखी उसने नियुक्त किया।
छत्तीस कर्मोके भिन्न-भिन्न पदोंपर उसने सुभट धुरन्धर और उत्तम व्यक्तियोंकी अपने राज्यमें नियुक्ति की मानो वे दिग्पर्वत हों ॥७॥
कनकप्रभके ऐश्वर्यका वर्णन श्वेत और विशाल नयनोंवाला, यशका इच्छुक, जयश्री और अन्य सबके द्वारा सम्मानित तथा बान्धवों और मित्रोंसे युक्त वह पूरे एकच्छत्र राज्यका पालन करता था।
वह सम्राट् , नरश्रेष्ठ, यशस्वी कनकप्रभ महीलामण्डलका पालन करता था। जो जिसके योग्य था वह उसका वैसा सम्मान करता था । विनययुक्त हो वह पाँच गुरुओंकी पूजा करता था, बन्धु-बान्धवों और साधुजनोंकी रक्षा करता था तथा
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