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अनुवाद
[२१ सम्मेदशिखरको गए। वहाँ शिव और शाश्वत सुखके पदपर पहुँचे हुए जिनवरोंकी निर्वाण-हेतु वन्दना करने लगे। वे मोहका क्षय कर तथा आचार और अनुष्ठानसे कर्मसमूहको दूरकर शक्ल ध्यानमें स्थित हो गये। उन्हें जगतको प्रकाशित करनेवाला केवल ज्ञान उत्पन्न हुआ और वे अविचल तथा शिव सुखके पदपर निवास करने लगे।
राजा अरविन्दका यह चरित्र पवित्र है। जो जन पृथिवीपर इसे सुनेगा वह श्रीसम्पन्न शरीर (पउमालिंगियदेहउ) प्राप्त कर समस्त सुखोंका अनुभव करेगा ॥१६॥
तीसरी सन्धि समाप्त
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