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प्रस्तावना
(ओ) जिन सामासिक शब्दों के पूर्व पद निर निस् या दुर दुस् हैं उनके उत्तरपद का प्रथम व्यंजन के द्वित्व किए जाने या उसे असंयुक्त में परिवर्तित कर उसके पूर्व स्वर को दीर्घ करने के संबंध में कोई नियम नहीं बर्ता गया है । लेखक ने इच्छानुसार- संभवतः छन्द की अपेक्षा से- उनमें परिवर्तन किए हैं । यथा--- दुस्सह १. ४. ४, दूसह २. ७. ८ तथा दुसह ५. १०. ९ आदि । यही स्थिति उन सामासिक शब्दों की हैं जिनके पूर्व पद 'चउ' (चतुस ) है । इन शब्दों के उत्तर पद के प्रथम व्यंजन को इच्छानुसार संयुक्त या साधारण रखा गया है। यथा-चउगुण १.१२. ९ तथा चउग्गुण १४. २९. १, चउदिस ६.११. ११. तथा चउद्दिस १. ६. ४, चउपह ७. ७. ८ तथा चउप्पह ४.१०.८, चउदह १४. ३०.८ तथा चउद्दह १७. ६.१० चउथय १७. ७. ३ तथा चउत्थय ४.१०८।
बहुत कुछ अंशों में उक्त स्थिति उन सामासिक शब्दों की भी है जिनके उत्तर पद के मूल संस्कृतरूप के आदि में संयुक्त व्यंजन था यथा गुणवय ३.१०. ७. तथा गुणव्वय ३.१०.१, अपमाण २. १२. ७ तथा अप्पमाण १.२. १, अणुवय ३. ७. ३ तथा अणुव्वय ३. ९.११, कणयपह ६. १. २ तथा कणयप्पह, आदि। (औ) कुछ शब्दों के मध्यवर्ती व्यंजनों को छंद की अपेक्षा से द्वित्व किया गया है यथा- पण्णाल (प्रणाल)
अक्किय (अकृत) १.१५.२, तिक्काल (त्रिकाल) ३.१३.९, अप्पमिच्चु (अपमृत्यु) २.१३. १२: उग्गत्तव ( उग्रतप) ३. २. ८, सच्चितु (सचित्त) ७. ७. ७., ८. १४. ५; पण्णव ८. २०. ७; एवड्डु ( एवडु) १३. १६. ५, ण किउ (न किउ) १४.१४. १२; पुच-क्किय १८. ८. ३. आदि।
(६) असामान्य स्वर या व्यंजन परिवर्तन जिनमें हुए हैं वे शब्द करिजं ( कार्यम् ) १. १८. ६, विहलंघल (विह्वलांग) १. २२. ३, ११. १०. २१, भेभल (विह्वल) १.२२. ७, आलि (अलीक) २. १०. २, पाहण (पाषाण) २. १२. ९; चलण (चरण) ४. ११. ४; जाण (ज्ञान) ३. १२. ८, अभितर (आभ्यंतर) ५. ८. ८; गणित्त (गणयित) ६. ७. ५; असरालय (आस्रव+आलय) ६. १६. ७. मुदुंगारय (मृदंग+क) ८. ७.६; वितर ( व्यंतर) ८. १७. ७; दियह (दिवस) ९. ४. १, पइज (प्रतिज्ञा) ९. १२. ९. जण्णत्त- ( यज्ञ+यात्रा) १०. ५. ३, उय (उअय-उदय) १०. १२. १, विण्णप्पय (विज्ञप्त+य) १२. ४. २, जोवसिय (ज्यौतिषिक) १३. ५. ८, बोरि (बदरी) १४. २. ९, कणीर (कर्णिकार) १४. २. १०, विभिय (विस्मृत) १४. ११. १०, मुच्छालंघिय (मू लिंगित) १४. १४. १०, विचिंतर (विचित्र) १६.८.१, दूहव (दूसम) १७. २१. ६, धीय (दुहित) १८. १८. १०, दूण ( द्विगुण) १६. १६. ६, किंचूण (किंचित् +ऊण ) १७. ६. १।।
संधि
(अ) सामासिक शब्दों में 'अ' तथा 'आ' की संधि की गई है। यथा-सीलालंकिय (सील+आलंकिय) २.६. ७; बद्धाउस (बद्ध +आउस) ३. ६. १०, रसफरिसासत्तय (रसफरिस+आसत्तय) १४. १४. १४, पुण्णावलेसु ( पुण्ण
+अवलेसु) १८. १५. ४. आदि । अन्य दो स्वरों में संधि छंद की आवश्यकता पर निर्भर है जिसके अनुसार बंमिंद (ब्रह्म+इन्द्र ) ४. ६. ५, तमोवरि (तम+ओवरि ) १०. १०. ७ तथा दिविडंघ ( द्रविड+आंध्र ) ११. ५. ११ में संधि की गई है किन्तु सुहिउ अयारहिं १८. ४. ९ में संधि करना आवश्यक नहीं माना गया है।
(आ) हे ८. १. १० के अनुसार सामासिक शब्दो के अतिरिक्त संधि यथा संभव नहीं की गई, जहां की गई है वे स्थल निम्न हैं- णामुक्कीरिवि (णामु+उक्कोरिवि) ६. ५. ७, गियणामुक्कीरिवि (णामु+उत्कीरिवि) ६. ५. ७, विहवेणाइसयमहो (विहवेण+अइसयमहो) ६. ९. १, जगस्सेव ( जगस्स+एव) ७. ९. ३, णिच्चुजल (णिच्चु +
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