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व्याकरण।
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(६) प्रेरणार्थक :
(अ) धातु को प्रेरणार्थक बनाने के लिए उसके अन्त में 'आव' जोड़ा जाता है या उसके उपान्त्य स्वर को दीर्घ कर दिया जाता है । यथा
(१) खमाव०. १. २२. १, उड्डाव०. ३. १६. १ भणाव०. ९. ९. ६, कराव १०. १. १०, चिंताव० १४. १२. ३ ।
(२) वइसार० ८. १६. १०, भमाड०. ११. १३. ११, उज्जाल० ११. १०. १७, णाम० १२. ४. ८, भाभ० १५. ६. ६ ।
(आ) पूख० १०. १. ७ तथा दक्खव०. १.१८. ४ में 'आव' के स्थान में केवल 'व' आया है।
(इ) काराव० २. २. ४ में हेमचन्द्र व्याकरण (८. ३. १५३ ) की वृत्ति के अनुसार ' आव' जोड़ने के अतिरिक्त प्रथम स्वर भी दीर्घ किया गया है। (७) नाम धातु
मइलिज्जइ ( मलिनीक्रियते ) ३. ४.८. पहिलाइज्जइ (प्रथमीक्रियते ) ६. १६. ८. वइराइ (वैराग्यं आचरति) ४.२.९.
कलकलिउ (कलकलितम् ) ११.१०.१५. बहिरियउ (बधिरितम् ) ९. १.१०. (८) चि रूप
वसिकिय १. ८. ४, ५. १. ५, ६. ५. ३ वसिगय ९. ८. ९, वसिहूय ९. २. १, मसिकिय ६. १३. १०। (९) कृदन्त
(अ) वर्तमान कृदन्त- (१) अपभ्रंश धातुएं संस्कृत धातुओं के समान आत्मनेपद तथा परस्मैपद जैसे दो वर्गों में विभाजित नहीं है इस कारण धातु से वर्तमान कृदन्त बनाने के लिए प्रायः सभी में 'अन्त' प्रत्यय का उपयोग किया जाता है। यथा-करंत १.१३. १२, २. ४.६, जंत ४. ३.८, घरंत ३. १.६, भवंत ७.६.१ का प्रेरणार्थक कर्मणि वर्तमान कृदन्त रूप है ) लयंत ६. १८. ९, पइसंत १७. १०. १ ।
जिन धातुओं को अन्त में इ या ए है उनमें अंत प्रत्यय के अ का लोप कर दिया जाता है । यथा-णित ३. १. ८, एंत ४. २. ८, १२. ३. ८ देंत (दिंतु ) १. २१. ८, १. २३. ८ ।
वर्तमान कृदन्त को स्त्रीलिंग बनाने के लिए 'इ' जोड़ा जाता है यथा हसंति १. १६. १, करंति ८. २. १०, सुमति ८.२.१० ।
(२) धातु से कृदन्त बनाने के लिये जब कब माण प्रत्यय भी उपयोग में आया है यथा-पुज्जमाण ७. ५. ८, जंपमाण ५. १२. १, धावमाण १४. २०. ४, सेविजमाण (धातु के कर्मणिरूप के पश्चात् माण जोड़ा गया है ) १२. ६. ३ । भजंतमाण ११. ८. १० एक असाधारण रूप है जहां अंत तथा माण दोनों प्रत्यय एक साथ प्रयुक्त हुए हैं।
(आ) पूर्वकालिक कृदन्त- धातु से पूर्वकालिक कृदन्त बनाने के लिए अनेक प्रत्ययों का उपयोग हुआ है यथा
(१) इति- सुणिवि १. १८. १, करिवि १. २२. ८, उक्कीरिवि ६. ५. ५, उच्चाइवि १२. ३. १०, उढिवि १७. २३. ३।
(२) एवि - उठेवि १. १९. ५, धरेवि ८. १५. १ ।
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