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अनुवाद शोभाको प्राप्त थी। अथवा उस नगरका क्या वर्णन किया जाय ? जहाँ तीर्थकरके पुत्र निवास कर चुके थे, वहाँ दोष कौन निकाल सकता है ? परन्तु उस नगरीमें एक दोष था । वहाँ कोई भी अनर्थकारी मनुष्य नहीं पाया जाता था।
उस नगरमें चौशाला, ऊँचा, विशाल तथा विचित्र गृहोंसे घिरा हुआ राजभवन था जो महीतलपर उसी प्रकार शोभायमान था जैसे नभतलमें नक्षत्रों सहित चन्द्रमा ॥६॥
राजभवनका वर्णन वह राजभवन बहुत ऊँचा तथा चूनेसे पुता होनेके कारण श्वेत-काय था। नाना प्रकारके मणियोंसे उसकी रचना हुई थी। उसमें तोरण, कवाट और प्रवेशद्वार थे। उसकी शालाओंमें चारों ओर जालीदार खिड़कियाँ थीं। उसमें उँचे-ऊँचे मण्डप और रमणीक प्राकार थे। उसकी रचना विविध प्रकारकी उकेरी गई चित्रकारीके कामसे युक्त थी। वह भवन ऐसा विस्तीर्ण और ऊँचा था मानो आकाशके मध्यमें पहुँचकर सूर्यके रथके मार्गका अवरोध कर रहा हो । सुवर्णसे अलंकृत तथा मनोभिराम वह भवन लटकते हुए हारों द्वारा अपनी कान्ति फैला रहा था। चन्दन, धूप और कस्तूरीकी प्रचुरतासे वह भवन सब प्रकारसे मेरु पर्वतकी चोटीके समान था। कुछ स्थान छोड़कर वह चारों दिशाओंमें सामन्तों और विलासिनी स्त्रियों के सुन्दर महलोंसे घिरा हुआ था। उसके चारों ओर नयनोंको सुख पहुँचानेवाले अन्य प्रासाद भी थे।
ऊँचे, श्रेष्ठ, विशाल तथा सुन्दर शालाओंसे युक्त, मनोहर और विस्तीर्ण धवलगृहों द्वारा मानो सघन स्तनों द्वारा पृथिवी आकाशमें तप्तायमान अपने पुत्र सूर्यको दूध पिला रही हो ॥७॥
राजा अरविन्दका वर्णन उस नगरमें अरविन्द नामका राजा निवास करता था। वह लावण्य, कान्ति, कलाओं और गुणोंका निवास स्थान था। अपने ही दर्पणगत प्रतिबिम्बको छोड़कर उसके लिए अन्य कोई उपमा नहीं थी। वह श्रीवत्सचिह्नसे अलंकृत था। इसी भवमें मोक्ष प्राप्त करनेवाला था। उसका यश रूपी समुद्र चारों दिशाओंमें फैला हुआ था। उसके द्वारा एकछत्र रूपसे अपने वशमें की गई पृथिवी दासीके समान उसकी आज्ञा का पालन करती थी। उत्तम क्षायिक सम्यग्दर्शनसे उसका शरीर विभूषित था (प्रतीत होता था) मानो कामदेव महीतलपर अवतीर्ण हुआ हो। विनयसे युक्त वह न्यायपूर्वक प्रजाका पालन करता था तथा तृणमात्र भी अयोग्य कार्य नहीं करता था। वह उन स्त्रियोंके लिए पुत्र समान था जिनके पति प्रवासपर हों। जो स्त्रियाँ अपने पतियों के साथ रहती थीं उनके लिए वह बन्धु-बान्धव समान था । वह बान्धवों, मित्रों और स्वजनोंमें भक्ति रखता था तथा सम्मान और दान करनेमें तत्पर रहता था।
स्वर्गमें उत्पन्न होकर वहाँ तपके फलको भोगकर वह इस मर्त्यलोकमें अवतरित हुआ था । त्याग और शीलसे समन्वित तथा लक्ष्मी द्वारा अंगीकृत वह धन्य राजा पृथिवीतल पर राज्य करता था ॥८॥
राजमहिषीका वर्णन उसकी प्रभावती नामकी पत्नी थी। पृथिवी पर उसके समान कान्तिमती दूसरी कोई महिला नहीं थी। सुकवि की कविताके समान वह लोगोंके मनको हरती थी। हंसके समान उसकी चाल थी तथा उसके पयोधर उन्नत थे। नवीन नील कमलके समान सुहावने नयनोंवाली वह कामदेवके हृदयमें भी दाह उत्पन्न करती थी। घुघराले बालों और सुन्दर त्रिवलीसे विभूषित तथा अलंकारोंसे युक्त वह सुभाषित सूक्तिके समान (आकर्षक) थी। जैसे जिनवरको शान्ति, हरको त्रिभुवनमें श्रेष्ठ गौरी, रामके मनको क्षुभित करनेवाली जैसी सीता, कृष्णका मन मोहित करनेवाली जैसी रुक्मिणी, कामदेवकी मनवल्लभा जैसे रति, गगनमें चन्द्रमाको जैसे रोहिणी, वैसे ही प्रभावती महिला उसके मनको प्रिय मालूम होती थी।
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