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अनुवाद है और लोगोंमें रतिभाव उत्पन्न करता है । उस पापी (कमठ) ने भी गुप्तरूपसे मरुभूतिकी पत्नीसे संग किया । ( इससे ) उसके शरीरमें चौगुनी कामभावना बढ़ी।
वे कामवासनासे एकान्तमें मिलने लगे। मनमें अनुरक्त हुए वे दोनों निर्लज्ज हो गए। अथवा लोकमें मदोन्मत्त और महिलासक्त कौन पुरुष लज्जाको धारण करता है ? ॥१२॥
मरुभूतिका विदेशसे आगमन इस प्रकार मद और मोहमें प्रसक्त, लघुभ्राताकी पत्नीमें कामासक्त तथा लोक विरुद्ध कार्यका सेवन करते हुए उसके शरीरका वर्ण कान्ति रहित हो गया। रतिके रागरंगमें निरन्तर डूबे हुए कमठके घर की लक्ष्मी शीघ्र नष्ट हो गई। छोटे भाईकी पत्नीके चिन्तनमें उसका दिन दुःखसे तप्तायमान होते हुए व्यतीत होता था। रात्रिमें वह अपनी अभिलाषाकी तृप्ति करता था। इस प्रकार परधन और परस्त्रीमें सप्रयत्न लगे हुए कमठका कुछ काल व्यतीत हुआ। इसी समय अश्वों गजों और (अन्य ) वाहनोंसे युक्त राजा अरविन्दकी सेना नगरमें लौट आई। उसके साथ महामति मरुभूति भी घर लौट आया। आते ही उसने स्वजनोंको आश्वासन दिया। उसने स्नेहपूर्वक कमठको नमस्कार कर शुभभावसे कुशलवार्ता पूछी। फिर मनमें तुष्ट होकर रोमाञ्चित शरीरसे अपनी पत्नीके निवास स्थानमें उसी क्षण प्रवेश किया और खानपान, परिधान एवं बोलचाल सहित विविध सद्भावों द्वारा उसका सम्मान किया।
देश-देशमें भ्रमण करते हुए अपनी सेवा करनेके लिए राजा अरविन्दने जो कुछ दिया था उस सम्पूर्ण धनको लाकर उसने अपनी भार्याको गुणवती जानकर अर्पित किया ॥१३॥
१४
कमठकी पत्नी द्वारा रहस्योद्घाटन तदनन्तर वह यशस्वी तथा विमल-चित्त मरुभूति उचित समय पर अपनी भावज से मिलने के लिए गया। उसने विनययुक्त हो अपनी भावजके चरणोंमें प्रणाम किया। भावजने हँसकर उससे यह कहा-हे सज्जन, हे बुद्धिमान, हे विशालवक्ष वत्स तुम जब तक सूर्य और चन्द्र हैं तब तक जियो ।" फिर हाथ पकड़कर वह उसे एकान्तमें ले गई (और कहने लगी)- "हे देवर ! सुनो, मैं तुम्हें एक बात बताती हूँ। तुम्हारे विदेश जानेपर यहाँ जो कुछ हुआ उसे, हे बुद्धिमान, तुम एकाग्रचित्त होकर सुनो। मैने स्वयं पापिष्ठ, दुष्ट, खल, नष्टधर्म, दुर्जन, अज्ञान, चञ्चल और चण्डकर्म अपने पति कमठको तुम्हारी पत्नीके साथ शय्यागृमें एकासनपर बैठे हुए तथा मदन और रतिके समान क्रीडा करते हुए देखा है। तब गया है और अपने पतिके ऊपर अप्रीति हो गई है। जिसने अपने ही घरमें इतना बड़ा दोष किया है उसके साथ सद्धावसे बोलचाल भी कैसे किया जा सकता है ? हे वत्स, यदि तुम इसके लिए कोई दण्ड न देना चाहो, तो भी कमसे कम उसके साथ बोलना तो छोड़ ही दो।"
अपनी भावजके ये भयावने और अत्यन्त असुहावने वचन सुनकर उसने उन सब पर विचार किया और एक मुहूर्त तक शंकित रहकर अपने हाथोंकी अंगुलियोंसे अपने दोनों कान बन्द किए ॥१४॥
कमठकी पत्नीके कथनपर मरुभूतिका अविश्वास "हे भाभी यह अयोग्य वार्ता अनजानमें भी कभी किसी खल पुरुषसे नहीं कह देना । उत्तम जनोंके विषयमें न किया हुआ दोष भी लोगोंके कहनेसे सम्पूर्ण कुलको दूषित करता है। मेरी पत्नीके साथ तुम द्वेष करती हो, इसलिए मत्सरयुक्त होकर ऐसी बात कहती हो। तुम दोनों ही हमारे माता-पिताके समान हो और घरमें तथा परिवारमें समस्त रूपसे प्रमाण हो। यह तुम्हारा
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