________________
१२०
प्रस्तावना
लम्बे समासों का प्रयोग नहीं है । समासों में प्रायः संस्कृत नियमों का पालन हुआ है फिर भी कुछ समास ऐसे हैं जहाँ उनके पदों के क्रम से वे कुछ अटपटे हैं- इनमें पदों का क्रम छंदों की आवश्यकता के अनुसार बदल दिया गया है यथा
(अ) अडयाल- पयडि.सय-खविय-मोह १. २. १ (चाहिए-खविय-अडयाल-सयपयडि-मोह) (आ) विस-इंदिय-सुक्ख-लुध्धु ३. १३. ३ (चाहिए-इंदिय-सुख-विस-लुदु)
(इ) सयल-पुहवि-पुर-मंडिय-सुहकरि ५. १. ४ (चाहिए-मंडिय-पुहवि-सयल-पुर-सुहकरि-जिसने पृथवी के समस्त पुरों को शोभित किया था तथा जो सुख देनेवाली थी)।
(ई) परपक्ख-असेस-विमद्दणाहँ ६. ३. ९. ( चाहिए-असेस पर-पक्ख-विमद्दणाहँ) (उ) मणि-रयण-कणय-जाणिय-विसेसु ६. ७ ११. ( चाहिए-जाणिय-मणि-रयण-कणय-विसेसु) (ऊ) बहु-आहरण-विहूसिय-वत्थहँ ६. १३. ८ ( चाहिए—बहु-आहरण-वत्थ-विहूसियहँ )
इ, ई, उ, उदाहरणों में संस्कृत का वाहिताग्न्यादिषु (अष्टाध्यायी २. २. ३. ७.) नियम का पालन किया गया प्रतीत होता है जहां विस और मंडिय का स्थान उनके स्वभाविक क्रम से विपरीत हो गया है और पर निपात हुआ है। (१०) क्रिया विचार
(१) सामान्य वर्तमान काल
(अ) प्रथम पुरुष एक वचन के लिए 'मि' तथा 'उँ' प्रत्ययों का उपयोग किया गया है। इनमें से 'मि' अन्य की अपेक्षा अधिक प्रयुक्त हुआ है 'उँ' केवल इने गिने स्थानों पर हो आया है यथा— आणउँ १. १९. ८, करउँ ४. २. ७, विसहउँ ५. १०. १०, साहउँ १०. १. ९, पाडउँ १५. ५. ८, मि प्रत्यय के पूर्व कुछ धातुओं का अन्त्यस्वर हेमचन्द्र व्याकरण के नियम ८. ३. १५८ के अनुसार जब कब 'ए' में परिणित हो गया है यथा- पालेमि ३. १३. ९, आवेमि १०. २. ८, चिंतवेमि १४. १० ४. चुमेमि १४.१४. ८ आदि ।
(आ) प्रथम पुरुष बहुवचन का प्रत्यय हुँ है । इसके पूर्व भी जब कब धातु का अंत्यस्वर 'अ' 'ए' में बदल जाता है:सक्कहुँ ९.८. ९, देहुँ १३. ५. ३, जाहुँ ११. १०. १, दिक्खहुँ १३.१०. २ और लेहेहुँ ८. १४. ७, लेहुं ८. १४.७ ।
(इ) द्वितीय पुरुष एकवचन का प्रत्यय 'हि' तथा बहुवचन का 'हु' है। 'हि' के पूर्व भी धातु का अंतिम 'अ' जब कब 'ए' में परिवर्तित हुआ है यथा- वाहेहि १४. २२. २।
(ई) तृतीय पुरुष एकवचन में 'इ' प्रत्यय आता है । इसके पूर्व भी यदा कदा धातु का अंतिम 'अ' 'ए' में बदल जाता है यथा-रुंधेई; धरेइ ३. ९. ५, ५. ३. ९; ६.११.१०, गमेइ ४.१०.५, गजेइ १२.१२. २, गणेइ ९.११.४।
तृतीय पुरुष बहुवचन के दो प्रत्यय 'हिं' तथा ' अन्ति' हैं । दोनों का समान रूप से उपयोग हुआ है । क प्रति में हिं कई स्थानों पर ई में परिवर्तित है । कुछ स्थानों पर यह जानबूझकर किया गया है क्योंकि उसके बिना अन्त्य यमक नहीं बैठता है। इन स्थलों पर ख प्रति में भी हि का इँ रूप ही आया है अतः हमने उसे हि" में नहीं बदला और उसी रूप से सम्पादित प्रति में ग्रहण किया है देखिए-- (१) भरिउ महण्णव णावइ ।
जल उल्लोलहि धावइँ ॥ १४. २२. ११-१२
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org