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युद्धवर्णन ।
विशाले, पयोधर सघन, उन्नत तथा पीन, त्रिवलि उत्कृष्ट, एवं नितम्ब विस्तृत होते हैं । स्त्रियां सर्वत्र और सर्वदा 'लडहजुवाणे, या अहिणव जुआण, कृशतनु, अतिसुंदर, शुभदेर्शी, आभूषणों से विभूषित , कामपीडा जागृत करनेवाली तथा मुनियों . के मन को मोहनेवाली होती हैं। जहां कविने स्त्रीके सौंदर्य को साधारण शब्दो में व्यक्त करना संभव नहीं माना वहां स्त्री को कामदेव का प्रथमप्ररोहे या कंदर्प का निवासस्थान बताकर संतोष किया है । किन्तु कवि की दृष्टि में इन बाह्यगुणों की शोभा नहीं । वह उत्तम स्त्री उसीको मानता है जिसमें आंतरिक गुण हैं जो विमलचित्त है और मतिमती है, जो कलाओं ओर गुणों से तथा नय ओर विनय से विभूषित है तथा उत्तम कुल में उत्पन्न है । तभी तो उसने जहां जहां उक्त बाह्य गुणों की चर्चा की है वहां वहां इन आंतरिक गुणों की भी की है । स्त्री को श्रेष्ठता अपने पति की प्रिया होने में है जिसके बिना उसके अन्य गुण व्यर्थ हैं, निरुद्देश्य हैं, निष्प्रयोजन हैं । इसी गुण को सर्वोत्कृष्ट बतानेहेतु उसने प्रभावती को अपने पति की वैसी प्रिया बताया है जैसी की जिनवर को शांति, शंकर को गौरी, राम को सीता, कृष्ण को रुक्मिणि, अनंग को रति, चन्द्र को रोहिणी प्यारी थी।" स्त्री को उक्त बाह्य एवं आंतरिक गुणों से समन्वित करने पर भी पद्मकीर्ति का मत उसके विषय में अच्छा नहीं। वह स्त्री को मूलतः लोभी तथा अन्यदोषों से युक्त मानता है जभी तो स्त्रियां जिसके पास रत्न देखती है उसके पास जाती हैं।
इन स्त्रियों की संगति से निर्मल भी दोषमय हो जाता है।" युद्ध वर्णन :
पा. च में युद्ध का विस्तृत वर्णन है जो दो संधियों में पूरा हुआ है । उसके पहले युद्ध की तैयारी के वर्णन में दो संधियां रची गई हैं । यह समस्त वर्णन विस्तृत होने के साथ अत्यंत व्यवस्थित भी है । युद्ध-यात्रा का वर्णन शिशुपाल वध के आधार पर किया गया है । युद्ध का प्रारंभ यवनराज तथा रविकीर्ति और पार्श्वनाथ की सेनाओं की मुठभेड से हुआ है । इस घमासान युद्ध में योद्धा अपने जीवन की आशा छोड़कर किन्तु जय की अभिलाषा लेकर दूसरों पर आक्रमण करते हैं। कोई योद्धा अन्य मृत योधा के सूने रथ पर चढ़ जाता है, कोई हाथी पर तो अन्य कोइ घोडे पर । कोई तलवार आदि टूट जाने पर शत्रु के शिर के बाल पकड़कर ही उसे झकझोर डालता है । कोई पराक्रमपूर्वक दूसरे के अलंकाररूप लटके हुए कृपाण को हथिया लेता है। कोई योद्धा अपने मित्र को बिना अस्त्र-शस्त्र के देखकर अपना हथियार उसे सांप कर कहता है-मित्र प्रहार करो और अपने यश से समस्त सेना को अलंकृत करो । कोई अपने असिपत्र से हाथियों के दांतों पर ही चोट करता है और उन्हें तोड गिराता है। इसके पश्चात् रविकीर्ति तथा यवनराज की सेना के अन्यान्य वीरों के युद्ध का एक एक कडवक में रोमांचकारी विवरण है । तदनंतर पार्श्वनाथ तथा यवनराज के युद्ध का निरूपण है। इन दोनों के युद्ध के वर्णन में कविने छंद की गति और शब्दों की योजना द्वारा नाद-सौंदर्य को उत्पन्न कर वीरता की अभिव्यञ्जना की है। ध्वन्यात्मक शब्दों के प्रयोग से उसका प्रभाव और भी बढ़ गया है । यवनराज के क्रोधोन्मत्त होकर युद्ध करने का वर्णन अत्यन्त खूबी से किया गया है
रह दलइ । किलकिलइ ॥ हय हणइ । जउ मणइ ॥
खणि लडइ । खणि भिडइ ।। खगि फरिसु । खणि कुलिसु ।। आदि (१२. १२). १. वही ५. २ ५। २. वही ५. २. ४ । ३. वही १. ९. ४, ५. २. ३। ४. वही ५. २. १, ५. २. ५, ६. ९. ५ । ५. वही ६. ९. ८। ६. वही ५. २. १। ७. वही ५. २. ५, ६. ९. । ८. वही ४. ४. । ९. वही ५. २. २। १. वही ५. २.६६. ९. ७ । ११. वही ६. ९.१० । १२. वही ५. २. ९ । १३. वही ४. ४. ८ । १४. वहि ५. ३. । १५ वही १. १.५-९। १६. वही १६. ५ ४। १७. पा. च. १०.१०.१०.१८. वही ११. ४. १२-१७.
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