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छंद चर्चा ।
से हुई है । अंतिम गण प्रायः तीन लघु से और आपवादिक रूप से एक लघु गुरु से व्यक्त हुआ है
• पहिला तथा चौथा पाद-६+४+४ या ४+४+४+२ = १४. तीसरा तथा चौथापाद-६+४+UUU (या U-) = १३.
पहिली संधि के ७वें, बारहवीं संधि के ३, १३, १५; चौदहवीं संधि के १०, १६, पन्द्रहवीं संधि के ३ से ६वें कडवकों के धत्ते इस प्रकार के हैं । इन लक्षणों वाली षट्पदी का पता किसी छन्द ग्रंथ में नहीं चला ।
(VII) जिसके पहिले तथा चौथे पादों में १४ तथा तीसरे और छठवें पादों में भी १४ तदनुसार प्रत्येक पंक्ति में ३६ (१४+८+१४ ) मात्राएं हैं, उनके पादों में मात्रागणों की व्यवस्था ५३ वर्ग को षट्पदी के पहिले पाद के समान है। बारहवीं संधि के १ले कडवक का पत्ता इस प्रकार का है। इस प्रकार की षट्पदी का भी किसी छन्द ग्रन्थ में उल्लेख नहीं है।
इन सात वर्ग की षट्पदियों तथा स्वयंभू और हेमचन्द्र द्वारा वर्णित ३० से ३६ मात्रावाली द्विपदियों में बहुत कुछ समानता है । इन द्विपदियों की पंक्तियों में दो दो यतियां आती हैं जिससे यथार्थ में वह पंक्ति तीन खण्डों में व्यक्त होकर षट्पदी की पंक्ति के सदृश हो जाती है । भेद मात्रागगों की व्यवस्था में है । यहां पूरी पंक्ति की एक मात्रागण व्यवस्था दी है जिससे मात्रागणका अंत और यति की स्थिति एक स्थान पर नहीं आती। स्वयंभू तथा हेमचन्द्र ने द्विपदियों की पंक्तियों के भागों में अन्त्य यमक का भी निर्देश नहीं किया। इन सातों द्विपदियों के नाम, उनकी पंक्तियों में मात्राओं की संख्या तथा गणव्यवस्था तथा यतियों की स्थिति तात्कालिक अवलोकन एवं तुलना के लिए नीचे तालिका रूप से दी जा रही हैं
छंदका
क्रमांक
पंक्ति में मात्रा संख्या
मात्रागणों की व्यवस्था
यति की स्थिति
संदर्भ
नाम
| भ्रमररुत
६ पंचमात्रागण
रत्नकंठित मौक्तिकदाम ३२
७ चतुर्मात्रागण ___ एक त्रिमात्रागग ८ चतुर्मात्रागण
स्व. छं. ६. १७० छं. शा ४३ब १४, १५ स्व. छ. ६. १७३ छ. शा. ४३ब २० स्व. छ. ६. १७५ छ. शा. ४४अ ८.९ स्व. छ. ६.१८० छ. शा. ४४अ. १९, २० छ. स्व. छ. ६. १८६ छ. शा. ४४ब. ८ छ. शा. ४५अ६, ७
। रसनादाम
| १० तथा १८ मात्राओं
के बाद १२ तथा ८
मात्राओं के बाद १२ तथा ८
मात्राओं के बाद १२ तथा ८
मात्राओं के बाद १४ तथा ८
मात्राओं के बाद १४ तथा ८
मात्राओं के बाद १४ तथा ८
मात्राओं के बाद
ताराध्रुवक
९ चतुर्मात्रागण
१ पंचमात्रागण ८ चतुर्मात्रागण
१ द्विमात्रागण ८ चतुर्मात्रागण
१ त्रिमात्रागण ३ षण्मात्रागण ४ चतुर्मात्रागण
१ द्विमात्रागण
सिंहविक्रांत
संगीत
स्व. छ. ६-१९२ छ. शा. ४५ अ. १४, १५
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