Book Title: Niti Vakyamrutam
Author(s): Somdevsuri, Nathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
View full book text
________________
नीति वाक्यामृतम्
अपात्र को दत्त दान निष्फलम्
भस्मनि हुतमिवापानेष्यर्थ व्ययः ॥1॥ अन्वयार्थ :- (अपात्रेषु) अपात्र-व्रत-सम्यक्त्व, तप शून्यों में (अर्थम्) धनादि दान (भस्मनि) राख में ढकी (हुतभुग्) अग्नि के समान है अथवा (भस्मनि) राख में (हुतमिव) हवन किये जाने के समान निष्फल होता है ।
विशेषार्थ :- नीति और धर्म से विमुख व्यक्ति द्वारा दिया गया दान व्यर्थ-निष्फल होता है । नारद भी यशस्तिलक में कहते हैं - खोटा नौकर, वाहन, शास्त्र, तपस्वी, ब्राह्मण और खोटा स्वामी इनके लिए धन खर्च करना भस्म में हव्य सामग्री अर्पण करने के समान निष्फल है । रत्नत्रय विहीन अपात्र कहलाता है । इनको दिया हुआ अन्न वगैरह ऊपर भूमि में वपित बीज के समान निष्फल जाता है ।
स्वाति नक्षत्र में वर्षा मेघ जल सीप को पाकर मुक्ता (मोती) रूप परिणत हो जाता है । मिथ्यात्व, अज्ञान, कषायादि से मलिन चित्त को दिया दान सर्पविष समान परिणत हो जाता है । अर्थात् भुजंग को दुग्धपान कराने पर वह हालाहल विष रूप परिणमन कर जाता है । कुत्सितों को दिया दान पाप बन्ध का कारण हो जाता है जिस प्रकार वरसा का शुद्ध मधुर जल नीम के वृक्ष में पहुँच कर कडुआ हो जाता है, सरिता का सुपेय नीर सागर में मिलकर अपेय-क्षाररूप हो जाता है ।
यदि कोई अपात्र-कुपात्र, रोगी, शोकी, विपत्ति ग्रस्त है तो उसे जीवनदान के लिए अन्न-वस्त्र, औषधि आदि दे देना चाहिए । यह दयादत्ति कहलाता है । इस दान को आचार्यों ने करुणादान कहा है । पात्र रूप मानकर मिथ्यादृष्टियों आदि को दान देने से सम्यग्दर्शन दूषित होता है जैसे कटुक पात्र में निक्षिप्त दुग्धादि मधुर पदार्थ भी कटु हो जाते हैं। अभिप्राय यह है कि दान, पूजादि कार्यों को करने से पूर्व पात्र, पूज्यादि को भी समझना अनिवार्य है । अतः अपात्र; कुपात्रों को दान देना व्यर्थ है । पात्रों के भेद
"पात्रं च त्रिविधं धर्मपात्रं कार्यपात्रं कामपात्रं चेति ।। 12॥" अन्वयार्थ :- (च) और वे (पात्र) दान देने योग्य महानुभाव (त्रिविधम्) तीन प्रकार के हैं (धर्मपात्र कार्यपात्रं कामपात्रं च) धर्मपात्र, कार्यपात्र और कामपात्र के (इति) भेद से ।
विशेषार्थ :- पात्र वे यति, मुनि, ऋषि, अनगार, आर्यिका, क्षुल्लक, क्षुल्लिका ऐलक कहलाते हैं जो रत्नत्रय की समाराधना में अपने को अर्पण करते हैं । ये तीन प्रकार के हैं - 1. धर्म पात्र 2. कार्य पात्र और 3. कर्मपात्र ।
बहुश्रुताभ्यासी, विद्वान, प्रबल और निर्दोष युक्तियों द्वारा समीचीन-सत्य धर्म का विवेचन करते हैं । माता के समान कल्याणकारी शिक्षा प्रदान कर सदाचार धर्माचार व शिष्टाचार सिखाते हैं । इन मोक्षमार्ग प्रणेताओं को धर्मपात्र कहते हैं । ये भव्यों के मोहतिमिर का नाश कर, सम्यग्ज्ञान प्रदान करते हैं ।
कार्यपात्र :- स्वामी की आज्ञानुसार चलने वाले, प्रतिभा सम्पन्न, चतुर और कर्तव्यनिष्ठ भृत्यों को कार्यपात्र कहत हैं । विशेष स्वरूप नीति वाक्यामृत की संस्कृत टीका पृ. 11-12 देखना चाहिए ।
कामपात्र :- इन्द्रियजन्य सुखानुभव के साधन स्वरूप कमनीय, सौम्य लावण्ययुत कामनियाँ व पुरुषों को । कामपात्र कहा है । ये पात्र अपने अपने नाम व स्वभावानुसार भिन्न-भिन्न फल प्रदान करते हैं । यथा