Book Title: Niti Vakyamrutam
Author(s): Somdevsuri, Nathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
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-[ नीति वाक्याभूतम् ।
(29)
षाड्गुण्य - समुद्देश
शम व उद्योग का परिणाम, लक्षण, भाग्य व पुरुषार्थ विवेचन :
शमव्यायामा योगक्षेमयो?निः ॥ कर्मफलोपभोगानां क्षेमसाधनाशमः कर्मणां योगाराधनो व्यायामः ॥2॥ दैवं धर्माधर्मी ॥३॥ मानुषं नयानयो । ॥ दैवं मानुषबच कर्म लोकं यापयति ।। तच्चिन्त्यमचिन्त्यं वा दैवम् ।।6।। अचिन्तितोपस्थितोऽर्थसम्बन्धो दैषायनः 17 ॥ बुद्धिपूर्व हिताहित प्राप्ति परिहार सम्बन्धो मानुषायत्तः । ॥ सत्यपि देवेऽनुकूले न निष्कर्मणो भद्रमस्ति ।।१॥ न खलु देवमीहमानस्य कृतमप्यन्नं मुखे स्वयं प्रविशति ।।10॥ न हि दैवमवलम्बमानस्य धनुः स्वयमेव शरान् संधत्ते ।।120 पौरुषमवलम्बमानस्थार्थानर्थयोः सन्देहः ॥12॥ निश्चित एवानों देवपरस्य ॥ आयुरावधयोरिव देवपुरुषकारयोः परस्पर संयोगः समीहितमर्थ साधयति ॥14॥
अन्वयार्थ :- (शम व्यायामौ) शान्ति और व्यायाम (योगक्षेमयोः) संयोग और कुशलता की (योनिः) स्थानभूमि हैं 1।1।। (कर्मफलोपभोगानां) कर्म और फल भोगने में (क्षेमसाधना) सन्तोष धारण (शम:) शम (कर्मणाम) कर्मों का (योगाराधन:) प्रारम्भ करने का उद्यम (व्यायमः) व्यायाम [अस्ति] है 112॥ (दैवम) शुभाशुभ कर्म (धर्माधमौ) धर्म और अधर्म [स्त:] हैं । 3 ॥ (नयानयौ) नय अनय विचार (मानुषम्) मनुष्यता पुरुषार्थ है । ॥ (दैवम्) भाग्य (च) और (मानुषम्) पुरुषार्थ (कर्म) कार्य (लोकम्) लोक को (यापयति) चलाता है । 5 ॥ (अचिन्तितः) विचारे (उपस्थितः) प्राप्ति (अर्थ सम्बन्धः) अर्थ-धन मिलना (दैवायत्तः) भाग्य से प्राप्त है ।7 ॥ (तत्) वह (दैवम्) भाग्य (चिन्तितम्) विचारपूर्वक (वा) अथवा (अचिन्तितम्) बिना विचारे हो । ॥ (बुद्धिपूर्वः) बुद्धि से (हिताहितम् ) हित और अहित (प्राप्ति परिहारः) उपलब्धि व त्याग (सम्बन्धः) सम्बन्ध (मानुषः) पुरुषार्थ से (आयत्तः) आया [अस्ति] है 18 ॥ (देवे) भाग्य के (अनुकूले) अनुकूल (सति) होने पर (अपि) भी (निष्कर्मण:) पुरुषार्थ बिना (भद्रम्) कल्याण (न) नहीं (अस्ति) है 19॥ (खलु) निश्चय से (दैवम्) भाग्य से (इह) यहाँ (आनीयमानस्य) लाये जाने पर भी (कृतम्) किया (अपि) भी (अन्नम्) अन्न (मुखे) मुख में (स्वयम्) अपने आप (न) नहीं (प्रविशति) प्रविष्ट होता Ino ॥ (हि) निश्चय से (दैवम्) भाग्य (अवलम्ब्यमानस्य) का सहारा लेने से (धनुः) धनुष (स्वयमेव) अपने आप (शरान्) तीरों को (न) नहीं (संधत्ते) तानता है In10 (पौरुषम्) पुरुषार्थ (अवलम्बमानस्य) आलम्बन लेने वाले का (अर्थानर्थयोः) अर्थ, अनर्थ का (सन्देहः) सन्देह है ।12।। (निश्चित) निश्चयपरक (एव) ही (अनर्थो) अनर्थ (दैवपरस्य) भाग्य के अधीन [अस्ति] है In | (आय:)
Rama
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