Book Title: Niti Vakyamrutam
Author(s): Somdevsuri, Nathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
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नीति वाक्यामृतम्
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विवाह समुद्देश
काम सेवन की योग्यता, विवाह का परिणाम, लक्षण, ब्राह्म, देवादि चारों विवाहों का स्वरूप :
द्वादशवर्षा स्त्री षोडशवर्षः पुमान् प्राप्तव्यवहारौ भवतः ।।॥ विवाह पूर्वो व्यवहारश्चातुर्वण्र्य कुलीनयति ॥2॥युक्तितोवरण विधानमग्नि देवद्विज साक्षिकं च पाणि ग्रहणं विवाहः 113॥स ब्राह्मयो विवाहो यत्र वरायालंकृत्य कन्या प्रदीयते।।4।स देवो यत्र यज्ञार्थमृत्विजः कन्याप्रदानमेव दक्षिणा 115॥गो मिथुन पुरः सरं कन्यादानादार्षः ॥6॥ त्वं भवास्य महाभागस्य सहधर्म चारणीति" विनोयोगेन कन्याप्रदानात् प्राजापत्यः । ॥ एते चत्वारो धा विवाहाः ॥8॥
अर्थ विशेष :- बारह वर्ष की कन्या एवं 16 वर्ष का पुरुष व्यवहार प्राप्त अर्थात् कामपुरुषार्थ साधने योग्य होते हैं In॥ अभिप्राय यह है कि इस अवस्था में कन्या व वर का विवाह होना न्यायोचित है । स्वाभाविक नियम का उल्लंघन नैतिकाचार का घातक होता है । वर्तमान पद्धति में सुधार करना अनिवार्य है । अन्यथा अत्याचार, अनाचार व व्यभिचार को प्रोत्साहन देना है जो धर्म और समाज व्यवस्था के प्रतिकूल है ।।
धर्म नीति पूर्वक विवाह होने पर कामसेवन करने से चारों वर्ण की सन्तान में कुलीनता उत्पन्न होती है । ॥ राजपत्र एवं जैमिनी का भी यही अभिप्राय है :
यदा द्वादश वर्षा स्यानारी षोडशवार्षिकः । पुरुषः स्यात्तदा रंगस्ताभ्यां मैथुनजः परः ॥ सुवर्ण कन्यका यस्तु विवाहयति धर्मतः
सन्तानं तस्य शुद्धं स्यान्नाकृत्येषु प्रवर्तते ॥2॥ अर्थात् अपने-अपने वर्ण-जाति में विवाह होने से कुलीन-शुद्ध सन्तान उत्पन्न होती है जो अपने कुलाचार का त्याग न कर शुद्धाचरणी होती है । अभिप्राय यह है कि कुलीन-सत्पुरुषों को जाति संकर व वर्णसंकर नहीं होकर अपने ही वर्ण-जाति में विवाह कर वंश परम्परा की शुद्धि रखना चाहिए । तभी शुद्ध-कुलीन सन्तान होगी 112
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